सम्मान की सूखी रोटी – अमित रत्ता  : Moral Stories in Hindi

आज आप फिर कोई सब्जी लेकर नही आए क्या बनाऊंगी मैं आपको तो पता है ना माँ जी को सर्दी हुई है भला हम तो लस्सी और आचार के साथ खा लेंगे मगर माँ जी को क्या बोलूंगी कैसे  दूंगी खाना। आज फिर मुझे चार बात सुननी पड़ेंगी। चलो देखती हूँ उनके लिए चाय अचार के साथ दे देती हूं हम लोग लस्सी के साथ खा लेंगे।

चमन सिर झुकाए धीरे से बोला आज फिर ठेकेदार ने पैसे के लिए कल पर टाल दिया बोला आज नही हैं कल बैंक से निकाल कर दे दूंगा आज का दिन जैसे कैसे सँभालो कल को पक्का सब्जी ले आऊंगा। कांता मुहँ चिढ़ाते हुए बोली उसका कल कभी आता है भला रोज कल कल करके टाल देता है अब मुझे ही मां जी को बातें सुननी पड़ेंगी।

कांता दो रोटी और थोड़ा सा अचार और चाय बनाकर सासु मां (कमला) के पास जाती है और उसकी चारपाई पर बैठकर उसकी टांगे दबाते हुए पूछती है माँ जी अब तबियत कैसी है कुछ फर्क है क्या? सास टांगे सिकोड़ते हुए कहती है बिना दवाई के कैसे आराम आएगा भला अब तो लगता है आखरी समय आ गया है मेरा छोटा बेटा होता यहां तो शायद.. कहते कहते रुक जाती है।

कान्ता रोटी की थाली आगे करते हुए कहती है माँ जी आप ऐसा क्यों बोल रहे हो आज की बात है कल को उन्हें पैसे मिल जाएंगे दवाई भी ले आएंगे और आपकी मनपसंद सब्जी भी बना दूंगी बस आज आप ये चाय और खाना खा लो।

कमला बेमन सी थाली पकड़ती है और धीरे से एक टुकड़ा काटकर मुहँ में डालती है कान्ता उसकी टांगे दवाना जारी रखती है। एक रोटी खाकर वो थाली कान्ता को पकड़ा देती है और कहती है बस आज इतनी ही भूख थी ये रोटी बापिस ले जा और जाकर सो जा।

कान्ता सास की बात का कभी बुरा नही मानती थी हमेशा हंसकर टाल देती सास के पास बैठकर बातें करना सास को खाना देना हो या नहलाकर उसकी कंघी करना हाथ पैरों की मालिश करना सारे काम मन से करती थी बस एक ही कमी थी कि उसका पति चमन उतना नही कमाता था कि घर मे रोज सब्जी बन सके जैसे कैसे घर गाय के दूध लस्सी के सहारे चल रहा था।

कमला को अपने छोटे बेटे बहु से ज्यादा लगाब था वो हमेशा उनके बारे में ही बात करती थी होता भी क्यों न आखिर छोटा जो था शहर में जिस फैक्ट्री में काम करता था उसकी मालकिन से ही शादी कर ली थी

उम्र में काफी ज्यादा थी मगर जगन खुश था तो किसी को क्या परेशानी हो सकती थी शहर से जब कभी भी कुछ दिन के लिए आते तो माँ के लिए कपड़े जूते फल फ्रूट बगैरह ले आते थे और जितने दिन रहते मां की खूब सेवा करते पूरा ख्याल रखते थे।

कुछ दिन बाद छोटा बेटा जगन और उसकी बीबी निर्मला बच्चों के साथ घर आए तो कमला ने उनके साथ जाने की जिद्द पकड़ ली बड़ी बहू और बेटे ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि इस उम्र में कहाँ शहर में धक्के खाओगी शहर का हवा पानी भी अलग है अगर सही न बैठा तो बीमार पड़ जाओगी मगर कमला नही मानी। आखिर में वो बहु बेटे के साथ शहर में आ जाती है।

आलीशान बंगला है नौकर चाकर चमचमाती गाड़ियां हैं

हर चीज चुटकी बजाते हाजिर। एक दो दिन तक तो कमला को खाना उसके रूम में मिलता रहा लेकिन उसके बाद सुबह नौकर आता है घण्टी बजाता है कमला दरवाजा खोलती है नौकर नमस्ते करके कहता है कि मां जी मैडम जी ने कहा है कि आप नाश्ते के लिए नीचे डाइनिंग टेबल पे आ जाएं सब एकसाथ खाना खाएंगे।

कमला जल्दी से हाथ मुहँ धोकर पहुंच जाती है टेबल पे फ्रूट सलाद ब्रेड आमलेट चाय हर चीज है मगर कमला की नजरें न जाने क्या ढूंढ रही थीं। तभी निर्मला बोल पड़ती है माँ जी आप लीजिए न आप शर्मा क्यों रही हैं जो मन करता है उठा लीजिए सबकुछ आपका ही तो है। कमला धीरे से एक परांठा और थोड़ा दही कटोरी में डालकर अंदर जाने लगती है

और कहती है कि मैं बाद में खा लुंगी अभी भूख नही है। निर्मला गुस्सा होते हुए कहती है कि मां जी ये क्या बात हुई ये इतना खाना बनाया है और आप एक परांठा लेकर अंदर जा रही हैं यहीं हमारे साथ बैठकर खाइए न। कमला धीरे से कहती है कि नही बेटा कोई बात नही मैं बाद में खा लुंगी और अंदर चली जाती है।

शाम को खाने के समय फिर नौकर कमला को बुलाने आता है कमला जाती है देखती है कि टेबल पर तरह तरह की सब्जियां सलाद पड़े हैं वो कुछ खाना तो चाहती है मगर डर रही है वो सोच रही है कि कोई थाली में डालकर दे दे तो कुछ खा लूं। मगर ऐसा नही होता निर्मला अपनी थाली में खाना परोसकर चमच कमला के हाथ मे पकड़ा देती है

ये लीजिए मां जी जो खाना है डाल लो। कमला धीरे से थोड़े से चावल और थोड़ी दाल अपनी थाली में डाल लेती है और जैसे ही खाने लगती है निर्मला टोक देती है अरे मां जी ये आप क्या कर रही हैं कोई देखेगा तो क्या बोलेगा इतने चमच कांटे पड़े हैं

और आप हाथो से खाना शुरू हो गए ये गांव नही है ये तो अच्छा हुआ कि कोई बाहर का नही है नही तो हमारी क्या इज्जत रह जाती। अब आप ये गांव वाले काम छोड़कर यहां के तौर तरीके सीख लो। कल को यहां कोई मेहमान आएंगे तो क्या बोलेंगे अगर आपको इस तरह खाते देखेंगे।

कमला कांपते हाथों से एक चमच उठाते हुए थाली से चावल भरती है उसके हाथ कांप रहे हैं और चमक बार बार थाली से टकराकर आवाज कर रहा है। अब निर्मला से रहा नही गया और बोल पड़ी की ये क्या टकटक की आवाज कर रही हो मां जी आप खाना खा रही हो कि पूरे मोहल्ले को बता रही हो हमे देखो हम भी तो खा रहे हैं

किसी के चमच की आवाज आ रही है क्या? धीरे से उठाइए आराम से खाईए कोई आपके पीछे भाग रहा है क्या जो इतनी जल्दी में हो। कमला अबकी धीरे से चमच में चावल भरती है और अपना मुहँ थाली के पास ले जाकर चमच मुहँ में डालती है कि निर्मला फिर टोक देती है माँ जी ये क्या आप जानवरों की तरह मुहँ नीचे करके खाना खा रही हो ऐसे खाते हुए आपको कोई देखेगा तो पहले ही समझ जाएगा

की कोई गांव की अनपढ़ गंवार है खाना खाते बक्त आपका हाथ मुहँ की तरफ आना चाहिए न कि मुहँ हाथ की तरफ जाना चाहिए। निर्मला सास की पीठ पर हाथ रखते हुए सीधा करती है और कहती है अपनी पीठ सीधी रखिए और कोशिश करिए की चमच्च आपके मुहँ की तरफ आए।

कमला एक चमच चावल भरके अपने मुहँ की तरफ लाने की कोशिश करती है मगर कांपते हाथों से वो चमच्च मुहँ तक आने से पहले ही उसके कपड़ों पे गिर जाता है। अब निर्मला का पारा हाई हो गया वो चिल्लाते हुए अपने नौकर से कहती है जीतू बाहर आओ तुम लोगों के दिमाग मे कोई बात क्यों नही आती अपने आप से कोई काम नही कर सकते क्या ,

हर काम सीखाना पड़ेगा सबको यहां ,जब तुम्हे पता है उसे नही पता खाना कैसे खाना है तो आपको नही पता कि नैपकिन उसके गले मे लगा दें वो अनपढ़ गंवार है, क्या तुम भी अनपढ़ गंवार हो सब के सब निक्कमे हो बस खाने को मिल जाए और महीने के बाद सैलेरी, किसी काम के नही हो, जाओ एक नैपकिन लेकर आओ और मां जी के कपड़े साफ करो।

निर्मला बेशक ये सब नौकर को बोल रही थी मगर उसकी एक एक बात नश्तर की तरह कमला के दिल मे चुभ रही थी उसे लग रहा था कि वो  नौकर के बहाने उसी को सुना रही है कमला एक दो चमच्च जैसे कैसे खाती है और पानी का गिलास लेकर दो घूंट पीकर अपनी थाली में हाथ धो लेती है। अब तो निर्मला का पारा जैसे सर फटने वाला हो गया और सिर पर हाथ रखते हुए बोली डिसगस्टिंग छि, ओह माय गॉड ,ये क्या है आप पागल हो कम से कम इतनी अक्ल तो हर किसी को होती है कि हाथ वाशफेशन में धोने चाहिए आपको क्या लगता है कि ये इतना महंगा वाश फैशन देखने के लिए बनाया है कम से कम किसी को पूछ ही ले इंसान।अभी अगर कोई बाहर का आदमी  होता तो क्या सोचता वो क्या इज्जत रह जाती हमारी। हमारी ही गलती है जो हमने तुम्हे खाने के लिए बाहर बुलाया इससे अच्छा तो अंदर ही ठीक थीं आप कम से कम जैसी भी हरकत करो किसी दूसरे का मूड तो खराब नही करोगी।

इतना कहकर निर्मला उठकर हाथ धोने चली जाती है कमला अपने बेटे की तरफ देखती है जो सिर झुकाकर बैठा था मगर दोनों ने एकदूसरे को कुछ नही कहा और कमला धीरे से उठकर अब वाशफेशन की तरफ जाकर हाथ धोने लगती है। टेबल पर कितने ही तरह के खाने थे मगर कमला भूखी ही उठी थी चार चमच्च चावल जैसे कैसे अंदर गए थे। अब ये अपमान कमला के लिए रोज की दिनचर्या बन गया था कभी कपड़ों को लेकर, कभी नहाने को लेकर, कभी खाने को लेकर। पन्द्रह बीस दिन जैसे कैसे गुजरे होंगे कि अब कमला को घर की याद आने लगी अब वो सोचने लगी की जब मैं अपने घर मे थी तो मालकिन की तरह रहती थी कभी कोई नही कहता था ये क्यों किया ऐसा क्यों किया और बड़ी बहू मुझे मेरी बेटी की तरह ख्याल रखती थी यहां हर चीज है मगर मेरा कुछ भी नही बिना पूछे में किसी चीज को हाथ भी नही लगा सकती और एक मेरी बड़ी बहू थी जो मुझसे पूछे बिना कोई काम नही करती थी।

भले ही बड़ा बेटा गरीब था दो रूखी रोटी ही देता था मगर सम्मान के साथ, मेरी बहु भले अचार से रोटी देती थी मगर इज्जत के साथ यहां बेशक दसियों सब्जियां पकबान बनते हैं मगर खा एक भी नही सकते। अब कमला को अपनी गलती का एहसास हो चुका था उसने अपने बेटे जगन को सुबह बुलाया और कहा कि जैसे भी करके आज के आज मुझे घर भेज दे यहां मेरा मन नही लग रहा। जगन भी जानता था कि मां ऐसा क्यों कह रही है इसलिए उसने भी ज्यादा कुछ नही बोला और उसने कहा ठीक है माँ जी मैं अपने ड्राइवर को बोल दूंगा वो आपको घर छोड़ आएगा। शाम को ड्राइवर उसे घर छोड़ आता है माँ को देखकर बड़ी बहू की खुशी चेहरे से छलक रही थी आज बहु ने मां की पसंद की चने की सब्जी बनाई थी और मां के पैर दबाते हुए बोली माँ जी उनको ठेकेदार ने पैसे के साथ साथ तरक्की भी दे दी अब वो सुपरवाइजर बन गए हैं अब आपको अचार के साथ रोटी नही खानी पड़ेगी अब हम रोज आपकी पसंद की सब्जी बनाया करेंगे। कमला बहु के सिर पे हाथ रखकर अपने गले से लगा लेती है।

           अमित रत्ता

     अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

Leave a Comment

error: Content is protected !!