बरखा की नई-नई शादी हुई थी, तो वह अपने ससुराल में एडजस्ट होने की कोशिश कर रही थी साथ ही वहां के रीति रिवाज तौर- तरीके भी सीख रही थी। उसकी सासू मां भी उसे ससुराल में एडजस्ट होने में काफी मदद कर रही थी।
उसकी सासू मां नहीं चाहती थी की जो तकलीफ परेशानी उन्होंने अपने ससुराल में झेली है वह सब बरखा को नही झेलनी पड़े । इसलिए वह उसे अपनी बेटी की तरह ही दुलार करती थी । बरखा भी अपनी सास का सम्मान करती थी । दोनों सास बहू आपसी सूझबूझ और तालमेल से गृहस्थी की गाड़ी चला रही थी मगर इसी बीच कुछ दिनों के लिए उसकी बुआ सास रहने आई ।
बरखा और उसकी सास का तालमेल देखकर उन्हें कुछ ठीक नहीं लगा । क्योंकि उनके घर पर उनकी बहू है कभी उनका कहा नहीं मानती थी ना ही उन्हे सम्मान देने के लिए कोई बात कभी पूछती थी । मगर यहां पर बरखा हर बात अपनी सासुजी से पुछ कर करती थी । जैसा उसकी सास कहती वेसा ही वो करती थी ।
यहा तक की उनको भी सम्मान देने में बरखा ने कोई कोताही नहीं बरती थी, मगर फिर भी वो बरखा को नीचा दिखाने के लिए अब -बात-बात पर बरखा को टोक रही थी ।
एक दिन अपने ससुर जी को खाना खिलाते हुए सर पर पल्ला लेना भूल गई । इसी बात पर बुआ सास नाराज होकर बोली- आजकल की लड़कियों को ससुराल में रहने की जरा तमीज नहीं है । बहु यह मत भुलो कि यह तुम्हारा मायका नहीं बल्कि ससुराल है । अपने पापा को नहीं बल्कि मेरे भाई तुम्हारे ससुर को खाना खिला रही हो । सर पर पल्ला तक रखा नहीं है तुमने । अपने भाई का अपमान इस तरह बर्दाश्त नहीं करूंगी । भाभी जब से आई हूँ जब से देख रही हूं, तुमने भी इसे बहुत सर चढ़ा के रखा है । इस तरह तो बहू ओर बेटी का भेद ही खत्म हो जायेगा बुढ़ापे मे अपना भला चाहती हो तो बहू को दबा कर रखो वरना फिर मुझसे नहीं कहना कि तुम्हें समझाया नहीं था ।
अपनी बुआ सास की बातें सुनकर बरखा की आंखों में आंसू आ गए ।
बरखा को रोते देख ससुर जी नाराज होकर बोले- “दीदी आज से पहले आपने सुनैना और हमारी बेटियों के बारे में जो कुछ भी कहा मैंने चुपचाप सुन लिया। मगर अब अपनी बहू के लिए आपके मुंह से कोई भी बुरी बात नहीं सुन सकता। हमें अच्छी तरह से पता है कि घर में हमारी बहू बेटियों को हमें कैसे रखना है।”
भाई जो कभी आज तक अपनी बहन से कुछ नहीं बोला था ,बहू के लिए बहन को चार बातें सुना रहा था । यह देख बुआ जी गुस्से में बोली- क्यों री बरखा कोई जादू टोना जानती है क्या? मेरा भाई जिसके मुंह से कभी मैंने तेज आवाज तक नहीं सुनी, आज तेरे लिए मुझसे जबान लड़ा रहा है । मैंने कोई गलत बात तो नहीं की। तुम लोग मेरे अपने हो इसलिए तुम्हारा भला सोच रही थी ,मगर अब इस घर में कभी नहीं आऊंगी जहां मेरा कोई मान सम्मान ही ना हो । “
ननंद की बात सुनकर बरखा की सास बोली- अरे दीदी आप तो नाराज हो गई । इनका वह मतलब नहीं था यह घर आपका है और आपका रहेगा इसलिए इस घर में नहीं आने के बारे में कभी सोचिएगा भी नहीं । आप जैसा चाहते थे, वैसे मैंने मां बाबूजी का और इस घर का ख्याल रखा है मगर बरखा आज के जमाने की लड़की है आप खुद सोचिए, यदि हम अपने लड़कियों को जिस तरह रख सकते हैं बहू को क्यों नहीं?
बुआ सास नाराज होकर अपना सामान उठाने लगी- आजकल की सासूए और उनके चोचले जमाने के साथ तो हम भी चलते है, मगर रिश्तो में कुछ तो ऊंच-नीच होना चाहिए या नही । बहू की कितना ही सर पर बिठा लो बहू ,बहू ही रहेगी बेटी नहीं बन पाएगी ।
मेरे घर ही देख लो मेरी दोनों बहुएं मुझे कोई सम्मान नहीं देती । मैं नहीं चाहती कि मेरे घर में जो मेरी दशा है वह तुम्हारे घर में तुम्हारी हो । कहते हुए उनकी आंखों में से भी आंसू आ गए ।
सुनैना ने अपनी ननंद को चुप कराया और बोलने लगी- दीदी आपके घर के हालात हम से छुपे नहीं है । परिवार में सबको पता है, आपके घर आपकी बहूए आपको जरा भी मान नहीं देती । मगर सोचिए ऐसा क्यों हुआ होगा? मैं यह नहीं कहती की सारी गलती आपकी है ,मगर कुछ गलती तो आपकी भी है । आप हमेशा अपनी बहू को दबाकर रखने की कोशिश करती हो, मगर कभी सोचा है ,हम बहुओं को अपनी बेटी की तरह रखेंगे तो वो बेटी की तरह हमारे प्यार करे ना करे, मगर बहू की तरह सम्मान तो देंगे ही । हमें भी किसी से प्यार और सम्मान की आशा करते हैं तो बदले में हमें भी उसे प्यार और सम्मान देना चाहिए ।
भाभी की बात सुनकर ननंद को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह बोली- आप सच कह रही हो भाभी । बरखा वाकई में बहुत अच्छी है ,मगर उसकी यह अच्छाई मुझे कहीं ना कहीं बुरी लग रही थी । मगर अब मुझे एहसास हो गया की; बहू भी घर परिवार का हिस्सा होते हैं उसे भी मान सम्मान मिलना चाहिए।
लेखिका : विनीता मोहता
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