उद्विग्न रमेश ने निश्चय कर लिया कि वह आज रात को हर हाल में घर छोड़ देगा।उसे कही भी रहना पड़े,किसी भी आश्रम में, किसी भी तीर्थ स्थान पर,वह चला जायेगा या फिर उसे आत्म हत्या ही कर लेगा।
75 वर्षीय रमेश उसकी पत्नी जाह्नवी अपने बेटे मुन्ना के साथ ही रहते थे।मुन्ना और उसकी पत्नी उन्हें पूरा सम्मान देते,उनकी हर आवश्यकता का भी पूरा ध्यान रखते, कही किसी प्रकार की कोई कमी नही।पर इस जाह्नवी का क्या करे? प्रेम से सरोबार जाह्नवी परिवार में किसी का जरा भी दुःख नही देख पाती।कोई बीमार पड़ जाता तो जमीन आसमान एक कर देती।पोता तो बिना जाह्नवी के सोता ही नही था।मुन्ना और उसकी पत्नी अपने ऑफिस कार्य से 10 दिन के लिये भी बाहर चले जायें तो भी पोता जाह्नवी के पास ही रहता।फिर ऐसा क्या हो गया जो रमेश ऐसे स्वर्ग जैसे घर से चले जाने का मन बना चुका था।
रमेश ने हाथ मे बंधी घड़ी में समय देखा शाम के चार बज रहे थे।उसे रात्रि 8 बजे घर से निकलना था,सो अभी 4 घंटे का समय शेष था।रमेश ने मुन्ना और जाह्नवी को बहाना बना दिया था कि वो कुछ वरिष्ठ साथियो के साथ उज्जैन महाकाल दर्शन को जा रहा है, चार दिन में वापस आ जायेगा।
ये चार घंटे रमेश को व्यतीत करने मुश्किल पड़ रहे थे।पलँग पर पड़े पड़े रमेश कब अपने अतीत के झरोखों में झांकने लगा पता ही नही चला। जाह्नवी से शादी के बाद से ही रमेश बहुत खुश था, तब तो रमेश के माता पिता भी जीवित थे वो भी जाह्नवी जैसी बहु पाकर अपने को धन्य पाते।जान्हवी भी अपने सास ससुर का पूरे मनोयोग से ध्यान रखती शायद मुन्ना में वो ही संस्कार थे जो आज रमेश और जान्हवी को वैसा ही प्यार और सम्मान मिल रहा था।
सब कुछ ठीक था पर जान्हवी जरा जरा सी बात पर रमेश से जुबान लड़ाने लगाती और उसे अपमानित कर देती।रमेश भी पलट कर उसे के खूब बुरा भला कह देता और अपने काम पर चला जाता। समस्या ये थी कि समझाने पर भी दो तीन दिन बाद फिर वो ही आचरण।इससे रमेश तनाव में आ जाता।किसी चीज की कमी नही फिर भी जान्हवी ऐसा व्यवहार क्यो करती है, ये समझ ही नही आ रहा था। कभी कभी रमेश के मन में आता कि शायद जान्हवी उसे प्यार नही करती।वो उससे ना खुश है।
एक बार रमेश गंभीर रूप से बिमार पड़ गया हॉस्पिटल में दाखिल कराना पड़ा।जान्हवी तो जैसे पागल हो गयी, रात दिन रमेश की तीमारदारी में लगी रही,किसी अन्य की सहायता भी नही ली।एक मिनट को भी रमेश को नही छोड़ती।रमेश के सो जाने पर उसी के हाथों पर सिर रख झपकी ले लेती।रमेश यह सब देख जान्हवी को अपने से चिपटा लेता।उसके मन के विपरीत भाव दिल से निकल जाते।सोती हुई जान्हवी को रमेश देखता कि वो कितनी मासूम है। पर कुछ ही दिनों बाद जान्हवी का व्यवहार फिर वैसे ही हो जाता।इसी तरह जीवन के साहचर्य के पचास वर्ष बीत गये।शादी की स्वर्ण जयंति।जान्हवी बहुत खुश थी
75 वर्ष का रमेश72 वर्ष की जाह्नवी और 45 वर्ष का मुन्ना, फिर भी रमेश के प्रति जान्हवी का व्यवहार नही बदला, कभी भी उसको कुछ भी बोल देती।रिटायरमेंट के बाद अब अधिकतर दोनो को एक साथ ही घर पर रहना होता तो यह समस्या रमेश के लिये अब मानसिक हो चुकी थी।वो प्रायः शांत रहने लगा था जरूरत पर ही बोलता।जान्हवी से भी उसके मूड के हिसाब से बात करता।उसे लगता कि कही वो अपमानित ना हो जाये।उसने जाह्नवी से कहा भी कि जाह्नवी तुम मेरा सम्मान न करो कोई बात नही पर इस उम्र में कम से कम अपमान तो मत किया करो। 50 वर्ष साथ गुजारने पर भी रमेश जाह्नवी के व्यवहार का विश्लेषण कर ही नही पा रहा था। रमेश के खान पान, सेहत का ध्यान अब भी इस उम्र में रखती, पर अपनी जबान जोरी से एक तनाव का वातावरण बना देती।
यह सब रमेश अब बर्दास्त नही कर पा रहा था।घर मे मुन्ना और बहु के होने के कारण रमेश अंदर ही अंदर घुटने लगा।आखिर उसने घर त्यागने का मन बना लिया। कब तक समझौता किया जाये।
अचानक ही मस्तिष्क को झटका लगा जो जान्हवी उसके सिर दर्द से ही बावली सी हो जाती है,उसके इस तरह जाने से उसका क्या होगा?वो तो मर ही जायेगी।सोती जान्हवी का मासूम सा चेहरा रमेश की आँखों के सामने घूम गया।उससे दूर जाने की कल्पना से ही रमेश सिहर उठा।50 वर्षो बाद रमेश को आज समझ आया कि बिन माँ बाप की जान्हवी मुझमें में ही अपनी दुनिया खोजती है, रूठना झगड़ना, मनाना सब कुछ रमेश से ही।आज रमेश को जान्हवी पर नही अपने पर क्रोध था ये बात समझने में 50 वर्ष लग गये, जान्हवी के हक को वो क्यूँ नही समझ पाया?
आंखों में आंसू लिये रमेश बंद सूटकेस को खोल धीरे धीरे कपड़े निकाल करीने से आलमारी में लगा रहा था,बेतरतीब होने पर जान्हवी फिर उससे लड़ेगी।इस बार उसके दिल मे जान्हवी के प्रति कोई शिकवा नही था।
बालेश्वर गुप्ता
पुणे(महाराष्ट्र)
मौलिक एवम अप्रकाशित