समझदारी – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  भुवन जी सरकारी नौकरी से आज सेवानिवृति पा रहे थे…। जो पैसा सेवानिवृति मे मिला था उसे बेटे अमन ने बैंक मे जमा करने बोल दिया।

भुवन जी और उनकी पत्नी का बहुत मन था एक दावत करे भले छोटी सी और बेटी – जमाई नाती- पोतों को उपहार दे पर बेटे ने सब मना कर दिया और कहा ” ये पैसा संभाल कर रखिये जो कभी कोई मुश्किल हुई तो काम आएगा वैसे भी बुढ़ापे मे खुद के पास पैसा हो तो आत्मविश्वास रहता है  !” 

“माँ… बाबूजी..कहाँ हैं आप ।” कुछ दिन बाद बेटी अदिति अपने ससुराल से आते ही माँ- बाबूजी के कमरे मे चली गई।

बहु आराध्या चाय – नाश्ता बना उन्ही के कमरे मे ले जाने लगी पर तभी अदिति की आवाज सुन दरवाजे पर ठिठक गई ।

 ” माँ बाबूजी की सेवानिवृति की दावत कब कर रहे है आप ? कितने दिन हो गये अब तो ।” अदिति पूछ रही थी।

“बेटा दावत करना चाहते तो हम भी थे पर अमन ने मना कर दिया.. उसने सारा पैसा बैंक मे डलवा दिया ये बोल की मुश्किल वक्त मे काम आएगा । और शायद उसका ऐसा सोचना सही भी है ।” बाबूजी ने जवाब दिया।

” ये क्या बात हुई बाबूजी मेरे ससुराल मे मेरी क्या इज्जत रह जाएगी । जब मेरे ससुर सेवानिवृत हुए थे तो उन्होंने कितनी बड़ी दावत दी थी और अपना सारा पैसा अपने बेटी जवाई और हम लोगो के उपहार मे खर्च कर दिया था।” अदिति बोली।

” बेटा ये भी कोई समझदारी तो नही इतने साल की मेहनत के बाद इकट्ठा किया पैसा यूँही खर्च कर देना । मुझे तो अमन की बात बिल्कुल सही लगी !” इस बार माँ बोली।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

नहीं पता था, तेरे भी दो चेहरे है – अर्चना कोहली “अर्चि”

 “अरे माँ बाबूजी आप बहुत भोले है आप जानते नही ये सब आराध्या की चाल है उसने ही अमन को कहा होगा दावत ना करने को जिससे सारा पैसा उनके हाथ मे रहे ।” अदिति ने कहा।

आराध्या ये सुन कर हैरान थी क्योकि ये फैसला खुद अमन का था वो भी सबके भले की सोच कर उसने तो सिर्फ अमन को राय दी थी पर वो राय भी अपने स्वार्थ के लिए नही थी। उसकी आँख मे आंसू आ गये।

खैर वो अपने आँसू किसी तरह रोकते हुए चाय- नाश्ता ले अंदर गई सब शांत हो गए।

उसने अदिति को नमस्ते किया और चाय दी । अदिति ने कोई जवाब नही दिया।

“मैं खाने की तैयारी करती हूँ ।” ये बोल आराध्या वहाँ से रसोई मे आ गई। क्योकि अगर वो थोड़ी देर भी वहाँ रूकती तो रो पड़ती। रसोई मे आ उसके आँसू बह् निकले ” दीदी मेरे बारे मे ऐसा सोचती है जबकि मेरी जबसे शादी हुई है मैने दीदी को हमेशा अमन की नही अपनी बड़ी बहन माना है फिर भी ! अगर उनके मन मे कोई शंका थी तो मुझसे पूछ लेती !” वो खाना बनाते बनाते सोच रही थी ।

 थोड़ी देर बाद उसने खाना बना सबको आवाज़ दी। अदिति खाने की मेज पर भी आराध्या से कटी- कटी रही। खाना खाकर वो चली गई पर पीछे अपने माँ बाप के मन मे आराध्या के लिए एक खटास का बीज बो गई। हालाँकि उन्होंने ना तो अमन से कुछ कहा ना आराध्या से पर आराध्या सब देख समझ रही थी।

समय गुजरने लगा …

4 महीने बाद अचानक अदिति के पति निखिल को व्यापार मे बहुत बड़ा घाटा हुआ ! और सब परेशान हो गये । अब अदिति और निखिल के पास कोई जुड़ा पैसा तो था नही छोटा सा व्यापार था जिससे घर खर्च आराम से चल जाता था बस । निखिल के पिता भी सेवानिवृत थे और उन्होंने भी अपना पैसा दावत मे खर्च कर दिया था। रिश्तेदारों ने भी मुँह मोड़ लिया। सवाल ये था बिन पैसे व्यापार को दुबारा कैसे शुरु किया जाए। अदिति के मायके मे भी सब ये सुनकर परेशान थे।

 ” माँ बाबूजी , अमन क्यो ना हम बाबूजी की सेवानिवृति के पैसे मे से निखिल जीजाजी को पैसे दे दे जिससे वो अपना व्यापार फिर से स्थापित कर सके। 

” पर आराध्या !” अमन ने कुछ बोलना चाहा।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बूढ़ी सास रसोई में खपे और बहू मजे करे- आरती झा आद्या

” देखो अमन वो पैसा हमने मुश्किल वक्त के लिए ही रखवाया था । अदिति दी भी तो घर की सदस्य है उनपर मुश्किल वक्त आया है तो ये पैसा उनके काम आ जायेगा । ।” आराध्या बोली । आराध्या की बात सुनकर मां बाबूजी को बहुत आत्मग्लानि हुई उन्होंने अदिति की बातो मे आ आराध्या को गलत समझ लिया था जबकि उसका वो फैसला आज उनकी ही बेटी के लिए कितनी बड़ी मदद साबित हो रहा है वरना तो अदिति के कहे पर वो दावत कर देते तो आज किसका मुंह देखते। वो दोनो आराध्या को ढेरों आशीर्वाद देने लगे। 

भुवन जी ने अदिति और निखिल को घर बुलाया और उन्हें चेक पकड़ाया।

” बाबूजी ये क्या है ?” निखिल ने पूछा। 

” बेटा ये मेरी सेवानिवृति का पैसा है तुम इसे अपना व्यापार स्थापित करने मे लगाओ !” भुवन जी बोले।

” पर बाबूजी ये आपका पैसा है जो आपने मुश्किल वक्त के लिए रखा था !” अदिति बोली।

” दी मुश्किल वक्त के लिए ही तो इस्तेमाल कर रहे है । क्या फर्क पड़ता है वो वक्त आपका हो या हमारा !” अमन बोला। 

अदिति और निखिल अभी भी संकोच कर रहे थे।

“अदिति दी उस वक़्त हम लोगों ने बाबूजी के पैसे ऐसे ही वक़्त के लिए बैंक मे डलवाये थे अपने निजी स्वार्थ के लिए नही दावत का क्या लोग खाते भूल जाते .. वैसे भी लोगों का काम बस कहना है साथ देना नही। आप निःसंकोच ये पैसा अपने व्यापार मे लगाइये यही हम सबका फैसला है !” आराध्या उन्हे संकोच करता देख बोली । आराध्या के मुंह से ये सुन अदिति को बहुत आत्मग्लानि हो रही थी वो समझ गई उस दिन आराध्या ने सब सुन लिया था। साथ ही उसे ये एहसास हो गया था कि उसने कितना गलत समझा था आराध्या को और चार महीने से उससे एक दूरी सी बना रखी थी । जबकि घर मे सबसे छोटी होते हुए भी आराध्या ने कितना बड़प्पन दिखाया था।

अदिति शर्मिंदा हो ” आराध्या मुझे माफ़ कर दो मैंने तुम्हे बहुत गलत समझा “

“कोई बात नही दी गलती अपनों से होती है माफ़ भी अपने करते हैं । अब आप ज्यादा परेशान मत होइए।” ये बोल आराध्या ने अदिति को गले लगा लिया!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मित्रता और पद – संजय मृदुल

” ठीक है आप सभी ये चाहते है तो मैं ये पैसा ले रहा हूँ पर जैसे ही सब ठीक होगा मैं आपको ये पैसा लौटा दूंगा और आपको लेना भी पड़ेगा !” निखिल बोला । सबको निखिल की बात माननी पड़ी। 

भुवन जी और उनकी पत्नी सरला जी दोनों की आँख मे ख़ुशी के आँसू थे अपने बच्चों का प्यार और समझदारी देख।

दोस्तों समझदारी इसी मे है कि हमें पैसा आड़े वक़्त के लिए बचा कर रखना चाहिए ना की फिजूल मे खर्च कर दूसरो से वाह वाही लूटनी चाहिए । क्योकि मुश्किल वक्त मे कोई काम नही आता और  लोगों का क्या उन्हे तो हम वैसे भी संतुष्ट नही कर सकते। 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!