समझदार मां – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

रघु को रति बहुत पसंद आई थी। इंस्टाग्राम पर परिचय हुआ।सुंदरता के साथ-साथ कुशाग्र बुद्धि की भी धनी थी,रति। ग्रेजुएशन में चार गोल्ड मिले थे, यूनिवर्सिटी से।पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद अच्छी कंपनी में नौकरी कर रही थी।रघु भी इंडियन नेवी में पोस्टेड था।परस्पर परिचय होने पर दोनों ने महसूस किया कि वे एक दूसरे को पसंद करतें हैं।रघु ने रति को प्रस्ताव दिया शादी का तो रति ने कहा “हमारी जाति अलग है। उम्र में मैं कुछ महीने बड़ी ही हूं तुमसे।मेरे परिवार में अभी तक अपनी पसंद से ,दूसरी जाति में शादी हुई नहीं।तुम भी घर के बड़े बेटे हो।तुम्हारी मां कभी नहीं मानेंगीं।यह रिश्ता असंभव है।हम दोस्त ही रहें,यही ठीक होगा।”

रघु ने हंसकर कहा”आप  किस दुनिया में जी रहीं हैं रति? आज-कल ये जात-पात नहीं देखते माता-पिता।सोच काफी बदल गई है।जहां तक मेरी मां की बात है,वे बहुत ही समझदार हैं।हमारे परिवार को उनकी समझदारी ने ही एक सूत्र में बांधकर रखा है।मुझसे बहुत प्यार करतीं हैं।मेरी खुशी में ही उनकी खुशी है।आज तक मैंने कभी कोई अनुचित मांग नहीं की,अपने माता-पिता से।मेरी पसंद का वो जरूर सम्मान करेंगीं।आप देखना,आप जरूर पसंद आएंगीं उन्हें।मैं कल ही बताने वाला हूं उनसे,हमारे बारे में।हम एक दूसरे को तो पसंद करते हैं ना?मैं आपको पसंद हूं ना?आप भी अपने घर में बता सकतीं हैं,हमारे बारे में।”

रति मन ही मन रघु को पसंद तो करती ही थी।लगभग साल भर से दोनों के बीच बातचीत चल रही थी।रति के साथ रहने वाली रूम मेट(नलिनी) को भी उनके बीच के प्यार के बारे में पता था।

यह संयोग ही था कि रघु ,नलिनी के स्कूल का सहपाठी रह चुका था।एक कॉमन दोस्त के जरिए ही रति और रघु का परिचय हुआ था।नलिनी और रति पिछले सात सालों से एक साथ ही थे।पहले कॉलेज में,फिर नौकरी लगने के बाद से।नलिनी रति की जूनियर थी।दोनों के पारिवारिक संबंध अति घनिष्ट थे।रति नलिनी की मम्मी को बहुत स्नेह करती थी।जैसे ही रघु से शादी की बात हुई,रति ने सबसे पहले नलिनी की मां को ही बताया”आंटी,आपसे एक जरूरी बात करनी थी,फ्री हैं आप?”मैं अर्थात नलिनी की मां चौंक गई।

गुस्से से जवाब भी दे दिया”अच्छा,तुझसे बात करने के लिए,मुझे समय निकालना होगा अब?कैसी बात कर रही रति।बोल ना क्या हुआ”रति ने तब रहस्योद्घाटन किया अपनी पसंद बताकर।मैंने भी हंसते हुए पूछा”कौन है रे वह लड़का?”एक और झटका मुझे तब लगा जब उसने बताया”आंटी,आप जानतीं हैं उसे बहुत अच्छी तरह से।आपका छात्र है वो।नलिनी का सहपाठी।अभी मैंने घर में मम्मी -पापा को नहीं बताया है।भैया को बताऊंगी।सबसे पहले आप ही को बता रहीं हूं।आप ही हमारे बंधन को बांध सकती हैं।आपकी जरूरत पड़ेगी हम दोनों को।शायद उनकी मां भी आपको फोन करें।”

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मैं फिर से अचरज में थी।कौन है वो?जिसे मैं जानती हूं,पढ़ाया भी है।मेरी बेटी के बैच का है।नलिनी ने भी पहले कुछ नहीं बताया।जब उससे पूछा,तब जाकर बताया उसने”मम्मी,रघु है वो।वो भी बहुत सहमा हुआ है।डरता है अब तक तुमसे।उसकी मम्मी को उसने बता दिया है अपने और रति के बारे में।बहुत जल्दी ही वो भी तुमसे बात करेंगीं।तुम संभाल लेना मम्मी।दोनों बहुत प्यार करते हैं ,एक दूसरे से।”

बेटी के मुंह से रघु का नाम सुनकर खुशी तो बहुत हुई,पर एक अनजाना डर भी सताने लगा।रति का परिवार ग्रामीण परिवेश से था। उनके परिवार में प्रेम विवाह!असंभव सा लग रहा था।रघु की मां को भी मैं जानती थी।बेटे की पढ़ाई और कैरियर को लेकर बहुत उत्साहित रहने वाली ,समझदार महिला थीं वे।अपने बड़े बेटे की शादी विजातीय और उम्र में बड़ी लड़की से होना कैसे स्वीकार कर पाएंगीं?

अब तो मानो तलवार मुझ पर ही लटक गई।मोटिवेशनल बातें कर-कर के रति को हिम्मत तो बंधा रही थी,पर भावी आशंका से भी घिरी रहती थी।रति के घर वालों को कुछ समय बाद बताएगी रति,ऐसा कहा था उसने।अब जब भी उन्हें पता चलेगा,क्या सोचेंगे मेरे बारे में?मुझे पता था और मैंने उन्हें नहीं बताया।मेरा ही छात्र,मेरी बेटी का सहपाठी उनकी बेटी को पसंद आना मात्र संयोग कैसे हो सकता है? अवश्य ही इसमें मेरा या मेरी बेटी का योगदान रहा होगा।यही सोच-सोच कर मैं चिंतित रहने लगी थी अब।

कुछ दिनों बाद रति ने बताया”आंटी,आज शाम को रघु की मां से वीडियो कॉल पर बात होगी।रघु ने सब सच बता दिया है उन्हें।वो पहले मुझसे बात करेंगी,फिर बताएंगी। क्या-क्या पूछ सकतीं हैं वैसे वो?”रति गंभीर थी बहुत।मैंने बड़ी आसानी से समझा दिया था उसे कि सामान्य रहना,सच बात बताना,दिखावा मत करना

इत्यादि।रात को ही उसने बताया”आंटी,रघु सच कहते थे।उनकी मां बहुत समझदार हैं।बहुत प्रेम से बातें की उन्होंने।ऐसा लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिल रहें हैं। उन्होंने अपनी देवरानी(रघु की चाची)से भी मेरी बात करवाई।उनकी बातों से लगा ,जैसे मैं पसंद आ गई उनको।एक ही बात कही उन्होंने कि दोनों की कुंडली मिलानी पड़ेगी।कुंडली मिल गई ,तो वो मेरे मम्मी -पापा से भी मिलेंगीं।आंटी,मैं तो मम्मी से अभी अपनी कुंडली मंगवा नहीं सकती।ना ही बता सकती हूं कुछ।आप कुछ कीजिए ना।”

मैंने जन्म तारीख व समय लेकर अपने परिचित के पंडित जी से दिखवाया तो उन्होंने बताया कि इस विवाह में बहुत अड़चन होगी।रति को सीधे -सीधे बता भी नहीं सकती थी।एक ही उपाय था कि रति अपने घरवालों से बात करें।मेरी सलाह मानकर रति ने अपने भैया से इस बारे में बात की।उसके भैया ने भी वही आपत्ति जताई,विजातीय विवाह की।बहन की पसंद को प्रत्यक्ष सम्मान ना देना भी दिल दुखाने जैसा ही था। मम्मी -पापा को ना बताकर ,रति के भैया ने पहले खुद ही रघु से बात की।अब रति सामान्य थी।भैया से बोलकर अपनी कुंडली की फोटो मंगवाकर रघु की मां को भेज दी गई।

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देखते-देखते साल भर से ज्यादा बीत गए।रघु की मां की रति से कभी-कभार बात हो जाती थी।कुंडली मिलाना अब तक नहीं हो पाया था।मुझे दाल में काला लगने लगा था।ऐसे काम तुरंत किए जाते हैं।इतना समय कुंडली मिलाने में तो लगना नहीं चाहिए।अनजाने में एक स्नेह का बंधन जो बंध गया था,वह कोंपलें बढ़ाने लगा था।

रति के भैया भी रघु से बात तो करते थे,पर अपनी बहन को समझाते भी रहे।मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी।रति के मम्मी -पापा के कोप का भाजन एक ना एक दिन तो बनना ही पड़ेगा।

रति को ही समझाती रहती थी,मां की तरह”बेटा,प्रेम परिवार से बड़ा नहीं होता।ज्यादा भविष्य की चिंता करके आज मत खराब करना। मम्मी -पापा को धोखे में मत रख।रघु से जल्दी बात करके,उन्हें बता दे सब सच।”रति ने भी माना कि अब मम्मी -पापा को बता देना चाहिए।भैया पता नहीं क्यों रोक रहें हैं?”नलिनी से बात करके मैं ही बोलती कि उसे समझाएं।कुंडली ,लगता तो नहीं कि मिल पाएगी दोनों की।जितना ज्यादा बंधेगी इस रिश्ते में,टूटने पर उतना ज्यादा दुख पाएगी।नलिनी समझती थी ,पर रति को रोक तो नहीं सकती,प्यार करने से।कुंडली मिलाकर थोड़े ना होता है प्यार।

समय समस्या के साथ ही समाधान का अनुसंधान स्वत:कर देता है।एक स्थानीय वैवाहिक आयोजन में संयोग से रघु की मां से मिलना हुआ।मेरे साथ में बेटा भी था,जो कि इस पूरे घटनाक्रम से अनभिज्ञ था।रघु की मां को देखते ही मेरी छठी इंद्रिय ने संकेत दे दिया था कि रति और रघु की बात उठेगी जरूर।रघु की मां और मैं एक ही कॉर्नर से खाना ले रहे थे।प्लेट लेकर दोनों एक ही मेज पर बैठे।रघु के पापा ने अभिवादन जिस तरह से किया,वह इस बात का प्रमाण था कि उन्हें सब पता है।बेटा भी अपने दोस्तों के पास जाकर खाने लगा।अब बारी थी रघु की मां के मुंह से कुछ निकलने की।

मेरी कुशल क्षेम पूछकर उन्होंने नलिनी के बारे में भी पूछा।बड़ी तारीफ की नलिनी की।मैंने भी रघु के बारे में पूछा तो उन्होंने संजीदगी से बताया”आप तो जानतीं हैं ना उसे,मेरी कोई बात नहीं टालता।उसके ऊपर तो मैं आंख बंद कर विश्वास कर सकती हूं।मेरा स्वाभिमान है वह मैम।आपका छात्र है वह।कभी कोई गलत काम नहीं कर सकता।बहुत ख्याल रखता है मेरा,पापा का ,अपने चाचा-चाची का और छोटे भाई का।वही कोचिंग दिलवा रहा है कोटा में।आज तक कभी कुछ अनुचित नहीं मांगा उसने मैम,ना कभी मांगेगा।

चांद को दूर से देखना ठीक है,पर उसे पाने की चाह बेवकूफी है।शादी -ब्याह की बात करो तो टाल जाता है।मैंने भी कह दिया है,अपने परिवार और बाप -दादा की इज्जत का ख्याल करके ही शादी करना।हमारे पंडित जी ने अभी चार साल तक शादी का योग नहीं बताया है।दीवाली में आएगा ,तो आएगा आपसे मिलने।उसे सही शिक्षा दीजिएगा आप ,जैसे हमेशा दी है आपने।परिवार से छूटकर कोई बंधन कहां बंध पाता है मैम?”

उनकी समझदारी देखकर मैं अवाक थी।एक बार भी रति के नाम का उच्चारण नहीं किया था उन्होंने।कितनी शालीनता से मुझे यह समझा दिया कि रति को क्या समझाना है?एक बार भी शादी के लिए मना नहीं किया पर पंडित जी की बात कहकर अपनी मंशा भी बता दी।बेटे की पसंद को अयोग्य घोषित भी नहीं कर सकती थी वह,और ना ही बेटे की पसंद को स्वीकार कर सकती थी।एक औरत मां बनकर किसी  बेटी को मना कैसे करें,अपनी बहू मानने से?बेटे का विश्वास कैसे तोड़े जो उन पर है।”

रति और रघु की कहानी अभी तक दोराहे में ही खड़ी है।रति के परिवार में अब उसकी शादी के लिए दवाब बनाया जा रहा है।रति भी मानसिक रूप से तैयार हो रही है,भाग्य और समय की धारा में बहने को।रघु की मां ही अब मुख्य सूत्रधार है स्नेह के बंधन की।

शुभ्रा बैनर्जी 

स्नेह का बंधन

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