राखी की हम उम्र ननद (सुजाता) ने फोन पर बताया कि वह अपनी बेटी के साथ आ रही है।राखी की शादी के समय वह कुंवारी थी।ससुराल में आकर वही एक सच्ची सहेली बनी थी।राखी और सुजाता की खूब पटती थी।
ससुराल में सास-ससुर और पति के साथ सामंजस्य बिठाने में,सुजाता ने अपनी भाभी की बहुत मदद की थी।राखी के मायके से जब भी कोई आता,सुजाता उनकी भरपूर देखभाल करती।कभी दोनों के मध्य तकरार नहीं हुई थी।उसके अपनेपन से राखी को अपनी गृहस्थी चलाने में कभी परेशानी नहीं हुई।
राखी ने सुजाता की शादी अपनी जिम्मेदारी पर करवाई,ठीक अपनी बहन समझकर।भाग्य का विधान था या उसके प्रति अपार प्रेम,कि सुजाता की शादी के महीने में ही राखी की कोख में बच्चा आया।
मजे की बात और तब हुई जब राखी के बेटे के जन्म के चार महीने बाद ही,सुजाता की बेटी हुई।पहले बच्चे का जन्म मायके में ही हुआ,तो दो महीने फिर साथ में रहने का अवसर मिल गया था ननद -भाभी को।दोनों के बीच कभी ना ख़त्म होने वाली बातें चलती ही रहतीं थीं।
समय बीतने के साथ राखी और सुजाता दोनों के एक-एक और बच्चे हो गए।राखी की बेटी और सुजाता का बेटा। धीरे-धीरे सुजाता का मायके में आकर रहना लगभग सीमित ही हो गया।जिम्मेदारियां बढ़ने के साथ-साथ,मायके जाना भी कम ही हो जाता है बेटियों का।
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पहले तो सुजाता के पति की तकलीफे बढ़ जाती थी,उसके मायके आने से।बाद में बच्चों की पढ़ाई-परीक्षा के चलते आना कम ही होता गया।राखी तो जैसे तैसे अपने मायके हो आती थी साल में एक बार,क्योंकि छह घंटे का सफर था।सुजाता दूर थी,तो अकेले कभी छोड़ा नहीं पति ने।अब दोनों के बच्चे बड़े हो गए थे,कमाने लगे थे।
पिछले साल सुजाता की बेटी लेकर आई थी ,सुजाता को नानी और मामी से मिलवाने।मामा के जाने के बाद उसने वादा किया था अपनी मां से,कि साल में एक बार जरूर लेकर आएगी।
राखी ने उसे गले लगाकर कहा था”तेरे जैसी बेटी भगवान सबको दे।अपनी मां को मायके लेकर आना,तुझे तीर्थ का फल देगा।”मामी की लाड़ली ने हंसकर कहा “मामी,मैं हर साल मां को लेकर जरूर आऊंगी।बहुत सालों तक मां मजबूरी में नहीं आ पाई,अब कोई मजबूरी नहीं।”
राखी गर्व से बोली सुजाता से”तुम्हें बहुत बड़ा सुख दिया है ईश्वर ने,ऐसी बेटी देकर।अपनी मां के मन की इच्छा बेटी ही समझ सकती है।”सुजाता ने भी हामी भरी।तीन दिनों के लिए ही आए थे दोनों।
अब तो बच्चे बड़े हो गएं हैं दोनों के,समझदार भी हो गएं हैं।राखी और सुजाता ने सालों बाद फिर से अपनी कभी ना ख़त्म होने वाली बातें शुरू की ही थी कि सुजाता की बेटी आ गई”मां,आओ ना।नानी के पास बैठकर तुम्हारे बचपन की बातें सुननी हैं।”सुजाता को उठना पड़ा।
राखी ने बेर का स्पेशल मीठा अचार निकाला था ,दोनों के लिए।साथ में बैठकर खाएंगे पहले की तरह।तभी राखी का बेटा आ गया ऑफिस से।खाना गर्म करके परोसने के लिए राखी को उठना पड़ा।बातें करने का समय ही नहीं मिला ,दो दिन निकल गए।सुजाता की बेटी को घूमने का भी बहुत शौक था।जैसे ही शाम होती,दोनों अपने-अपने बच्चों के साथ घूमने निकल पड़ते।
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सुजाता और राखी के अंतर्मन में ना जाने कितनी ही बातें थीं करने को,पर अकेले बैठने का समय ही नहीं मिला सुजाता को।कभी बेटी को नाश्ता,कभी दवाई,कभी एल्बम देखना।राखी ने आज कहा ही दिया सुजाता से”दो मिनट के लिए भी शांति से बैठ नहीं पाती हो तुम।कैसे बेटी को इतना पिछलग्गू बना दिया तुमने।अब बहुत बदल गई हो तुम।”
उसने हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए कहा”मैं ही नहीं बदली हूं भाभी,तुम भी तो बदल गई हो।पहले कितना बोलती थी तुम।चहकती रहती थी सारा समय।अब तो बिल्कुल शांत हो गई हो।जानती हो ,अब हमारे बच्चे समझदार हो गएं हैं,बड़े हो गए हैं ना।”रागिनी ने बात पूरी की”हां और हम नासमझ हो गएं हैं।हमारे बच्चों को अब हमें लेकर चिंता बनी रहती है।कहीं कुछ गड़बड़ ना कर दे।”
दोनों खिलखिलाकर हंसने लगी,तभी सुजाता की बेटी ने आकर पूछा”अच्छा,मामी से मेरी शिकायत हो रही है ना?मामी,पूछो मां से आप,कितनी लापरवाह हो गई है?दवाई तक समय से नहीं खाती।नाश्ता भी कभी कभार ही करती है।और तो और पिछले हफ्ते अपना पर्स गिरा आई थी बाजार में।हमेशा साथ में रहना पड़ता है इनके।”
अभी उसकी बात खत्म भी नहीं हुई थी कि राखी का बेटा बोल पड़ा”अरे,तू पर्स घुमाने की बात करती है, मम्मी ने तो अपना ए टी एम घुमा दिया कब,पता ही नहीं।इतना ज्यादा एक्साइटेड हो जातीं हैं किसी के आने से,कि कुछ भी करने लगतीं हैं।”दोनों बच्चे अपनी समझदारी और मां की नासमझी पर खुश हो रहे थे।दोनों मांओं की विवशता भी रही कि अपने बच्चों की बुराई कर नहीं सकते।
सुजाता ने ,राखी का हांथ पकड़ा और बोली”चलो,मैं कॉफी बनाती हूं।तुम्हारी बिना शक्कर की ना?”
“हूं”राखी भी उठ गई।रसोई में आकर सुजाता ने धीरे से कहा”भाभी,बुरा मत मानना अपनी लाड़ली की बातों का।एक मिनट भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती।शादी भी दूर करना नहीं चाहती।कहती हैं तुम्हें कौन देखेगा?तुम्हारे ननदोई भी मुंह फुलाए रहते हैं।कहीं बाहर साथ में जाने नहीं देती।
जब भी खुद के कहीं बाहर जाने का मन होता है,मुझे साथ लेकर ही जाती है।होटल का खाना अब इस उम्र में सूट नहीं करता,पर मना नहीं कर पाती।शादी के लिए कितने रिश्ते आए,सभी में कुछ ना कुछ कमी निकाल ही लेती है।घर में क्लेष मचा रहता है हम पति-पत्नी में।बेटा छोटा है
इससे तो,कुछ कह नहीं पाता दीदी से।तुम ही इसे समझाओ ना।तुम्हें बहुत मानती है।वैसे बहुत ध्यान रखती है मेरी छोटी-छोटी खुशियों का,पर खाना मेरे हांथ का ही चाहिए।सोती भी मेरे ही साथ है।समझदार तो है,पर समझदारी दिखती ही नहीं इसकी।बुराई करने लायक दोष नहीं है,पर समझाना तो पड़ेगा ना।”
ननद की बात सुनकर राखी को हंसी आ गई।सास ने बहुत पहले एक कहावत सुनाई थी”बहू,अपनी कोख का जाया और अपना पति ही सबसे बड़े दुश्मन होतें हैं मांओं के।इन दोनों की बुराई ना करना अच्छा लगता है और ना ही सुनना।”आज उन अनुभवी बूढ़ी मां की बातें चिर सत्य प्रतीत हुई।ननद ने तो कम शब्दों में कह भी दिया,
वह तो कह भी नहीं पाई अपने शांत हो जाने का कारण।कैसे कहें कि अब बड़े हो गए बेटे के सामने सोच-समझकर बोलना पड़ता है।समय से कोई काम पूरा ना कर पाने का अपराधबोध मन ही मन डराता रहता है उसे भी।अपने किसी रिश्तेदार या परिचित से फोन पर बात करते समय संयमित शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है।
कहीं बाहर घूमने जाने पर उसके ऑफिस से आने के पहले पहुंचने का द्वंद चलता रहता है।खाना देना होगा बिचारे को।किसी आयोजन में जाने की हामी भरने से पहले,बेटे की रजामंदी लेनी पड़ती है।ऐसा इसलिए नहीं कि डरती हूं ,पर हमें भी तो नासमझी नहीं करनी चाहिए ना।हमारी देखभाल अब बच्चों के जिम्मे है।
सुजाता की बेटी रात के खाने के समय खाने की तारीफ करने लगी तो,राखी ने मौका देखकर कहा “रिमी,मां को कुछ दिनों के लिए छोड़ जा ना यहां।बाद में दादा छोड़ आएगा।
बहुत दिनों के बाद आई है।मैं भी नहीं जा पाती,नानी की जिम्मेदारी है।हम दोनों का मन ही नहीं भरा रे।”चकित होकर उसने जवाब दिया”क्या बात करती हो मामी!मां को अकेले छोड़ ही नहीं सकती।प्रेशर है बहुत। ऊटपटांग खाने से एसिडिटी बढ़ जाती है।दवाई तो बिल्कुल नहीं लेती समय पर।मैं फिर लेकर आऊंगी ना अगले साल।आप आना ना ,रहना कुछ दिन हमारे साथ।”
रिमी की बातें सुनकर,राखी के बेटे ने अपनी नाराजगी आंखों से दिखाकर समझा दिया कि, मां ने गलत बात बोल दी।राखी भी “अच्छा-अच्छा,ठीक है” कहकर चुप हो गई।ख़ुद पर ही हंसी आ रही थी,क्यों बोल दिया रिमी से।सुजाता यहां अकेली हो जाएगी क्या?घर में तो सारा दिन बच्चे लैपटॉप पर ऑफिस करतें हैं।
फुर्सत में मूवी,या सीरीज देखते हैं,तब मां अकेली नहीं होती क्या?सारा दिन सबकी फरमाइश पर तरह-तरह के खाना बनाने में थकती नहीं क्या?समय-असमय होटल में ऊटपटांग खाना खाकर एसिडिटी बढ़ती नहीं होगी क्या?अकेले सफर करने में डर लगता है मां का,और किसी भी सफर में जाने की पूरी तैयारी जब वही करती है?कौन सी ड्रेस कहां ,कब पहननी है,ये तक मां तय करके रखती है।
सुबह-सुबह ट्रेन थी।अगले साल और ज्यादा दिनों के लिए आने का वादा करके रिमी अपनी मां को लेकर चली गई।यहां आकर नानी के साथ रहने और राखी के अपने घर जाने की व्यवस्था निश्चित कर गई थी रिमी।अब इस साल फिर से आ रही थी अपनी नासमझ मां को साथ में लेकर।नानी और मामी से मिलवाने की जिम्मेदारी निभाना आता है उसको।सुजाता ने बताया कि इस बार पांच दिनों के लिए आएगी।साथ में जरूरी सूचना भी दी गई यह पूछकर”वाई फाई है ना भाभी घर पर?रिमी वर्क फ्रॉम होम लेकर आ रही है।”
राखी ने बेटे को भी खुशखबरी सुनाई और अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार रहने को कहा।
शुभ्रा बैनर्जी