समझौता – शिव कुमारी शुक्ला  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : बड़े ही खुशनुमा माहौल में माही और साकेत  का रोका हुआ। दोनों ही परिवार शिक्षित सभ्य एवं खुले विचारों के थे अतः कोई झंझट, दहेज की मांग किसी भी  प्रकार का कोई  दबाव लड़की वालों पर   नहीं था। माही घर की  बडी बेटी थी, एक छोटा भाई मेहुल था।

ऐसे ही साकेत अपने घर में बड़ा बेटा था,  उससे दो वर्ष  छोटा उसका भाई समित एवं उससे  दो वर्ष छोटी  बहन सिया थी।

साकेत एक मल्लीनेशनल कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत  था, जबकि माहि अपनी इन्जिनियरिंग की पढ़ाई कर जाब ढूंढने  में प्रयासरत थी। मेहुल अभी बारहवीं का छात्र था।  समित भी इंजीनीयरिंग कर एक साल से प्रतियोगि परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था। सिया भी एंट्रेंस परीक्षा की तैयारी कर रही थी। माही के पापा आखिलेश जी सरकारी विभाग में उच्च अधिकारी थे जबकि सुधीर जी बैंक में अधिकारी थे। दोनो मम्मी होम मेकर  थीं । 

रोका के बाद से साकेत माही को फोन करता किन्तु माही सकोंच वश खुल कर बात नहीं कर पाती। साकेत के बार बार टोकने पर वह धीरे-धीरे खुलने लगी। उसकी सासु मां नमिता जी भी उससे फोन पर बात करती और एक ही बात दोहराती कि बेटी अब तो तू जल्दी आजा सब्र नहीं होता। सोचती हूँ कब तू आये और कब मेरा घर गुलजार करे। यह सब सुन माही शर्मा  भी जाति और खुश भी होती कि उसे कितनी अच्छी सास मिली है। बरना तो जो किस्से उसकी सहेलियों ने सुनाये थे उन्हें सुन सुनकर वह मन ही मन सास के नाम से ही भयभीत हो जाती। सोचती भविष्य में कैसा जीवन होगा। किन्तु मेरी  किस्मत सब कुछ ठीक मिला। साकेत भी  मॄदुभाषी , विनम्र एवं सुलझा हुआ है एडजस्ट करने में शायद कोई परेशानी न आये। 

समय कब  किसके लिए रुका है।जैसे-जैसे शादी के दिन निकट आ रहे थे तैयारियाँ भी जोर शोर से चल रहीं थीं। रोज शॉपिग बुकिंग, मेरिज हॉल, बाजे वाले, केटरर्स, डेकोरेशन ब्यूटि पार्लर, और न जाने क्या क्या । तभी एक दिन नमिता जी का फोन माही की मम्मी सुजाता जी के पास आता है। बहन जी यदि आपको एतराज न हो तो हम माही बेटी को  अपने साथ दो-तीन दिन शॉपिंग पर ले जाना चाहते हैं। साकेत आकर  ले जाएगा और शाम को वापस छोड़  देंगे। हम चाहते हैं कि उन दोनों की पसंद से ही शॉपिग की जाए।

सुजाता जी बोली इसमें एतराज की क्या बात है माही अब आपकी भी बेटी है सो जब चाहें आप ले जाएं। 

दो तीन दिन खूब जी भर के शापिंग की  बाहर ही खाना  खाते और शाम को घर आ जाती।

आखिर वह चिर प्रतीक्षित समय भी आ गया और दोनों शादी के बन्धन में बंध गए। सब इतने खुश थे कि किसी को अन्दाज नहीं था कि वक्त उनके साथ क्या खेल खेलने वाला है। भविष्य के गर्भ में ऐसी अनहोनी छिपी थी कि उसने सब का जीवन बरबाद कर दिया। कहते हैं कि वक्त से ही कल  और आज का निर्माण होता है। कब  वक्त का मिजाज  बदल जाए कोई नहीं जानता। विदाई के बाद जिस कार में साकेत और माही बैठे  थे  उसे कोहरे  के कारण दिखाई न देने से सड़क पर तीव्र गति से आते   ट्रक ने पीछे से जोरदार टक्कर मार दी। साकेत को सिर में गहरी चोट आई  वहीं माही सीटों  के बीच में   फँस गई।

पीछे आती परिवार जनों की दूसरी गाडियों में उन्हें लेकर तुरन्त हास्पिटल पहुँचे। माही कामा में थी, साकेत आपरेशन  करने बाद भी तीन दिन मौत से संघर्ष करने के बाद  जिन्दगी की जंग हार गया । माही को अभी भी होश नहीं आया था। कोहराम मच गया। दोनों परिवार गम की खामोशी में डूब गये। किसी के पास भी बोलने को कोई शब्द नहीं थे। डाक्टर के अनुसार माही की स्थिती का कोई ठिकाना नहीं था कब तक होश आए सो साकेत का अन्तिम संस्कार कर दिया गया।

करीब दो माह बाद उसकी बेहोशी टूटी और साकेत को न देख कर उसने पूछा साकेत कैसे हैं।

अभी दूसरे वार्ड में है इलाज चल रहा है, किसी में हिम्मत नहीं थी उसे  सच बताने की।

सप्ताह भर  बाद जब वह घर आई सच्चाई स्वतः ही सामने आ गई। बसने से पहले ही उसकी दुनियाँ उजड चुकी थी। वह पथराई आँखों देख रही थी। आंसू का एक कतरा भी उनमें न था। सास-ससुर ,नन्द देवर सब उसका ध्यान रखते। उसका मन लगाने की कोशिश करते किन्तु वह तो एक निर्जीव मूर्ति की तरह हो चुकी थी।

एक दिन नमिता जी की पडोसन मातम पुर्सी करने आई तो वह बोली बहू के कदम तो बडे ही मनहूस  निकले घर पहुँचने के पहले ही पति को खा गई। उसे आपने यहाँ क्यों रोका है मायके वापस भेज दो। नमिता जी उन पर एक दम बिफर पड़ी-

खबरदार जो मेरी बेटी के खिलाफ एक भी लफ्ज कहा उसमें उस विचारी का क्या दोष क्या वह स्वयं अपना घर संसार उजाडना चाहती थी। कैसी बातें कर रही आप ,एक औरत होकर दूसरी औरत का दर्द भी  नहीं समझ पा रहीं हैं आप । वह अपना सा मुंह लेकर चलती बनी।  खैर समय सबसे बड़ा  मलहम  है घाव भरने के लिए सो माही भी  साल भर में अब कुछ सामान्य होने लगी थी। अब नमिता जी एवं सुधीर जी उसके भविष्य को लेकर चिन्तीत रहते। उसकी दूसरी शादी करने कि सोचते किन्तु  विचार आता कि यदि उचित घर वर नही मिला तो फिर  इसकी जिन्दगी नर्क  बन जाएगी।

अन्त में उन्होंने एक दृढ निश्चय किया ।पहले समित से पूछा  क्या वह  माही का हाथ थामने को तैयार है। समित को दुविधा  में देख उसे समझाया कि वे नहीं चाहते कि माही की जिदगी दुबारा किसी संकट में  पड़ जाए। थोड़ी ना नुकर के बाद उसने अपनी स्वीकृति दे दी। अब उन्होने माही के  मम्मी पापा को बुलाया उनसे  सलाह मश्विरा  कर उन्हें राजी किया। अब बारी थी  माही को मनाने की सो उसे  भी समझा बुझा कर अपने प्यार का वास्ता देकर राजी कर लिया और  एक सादे समारोह में उसकी शादी समित से होगई। सब परिजनों के सहयोग से धीरे-धीरे वह सामान्य हो गई और हंसी खुशी अपने परिवार के साथ सासू मां की बहू बनाम दुलारी बेटी बन कर रहने लगी। नमिता जी ने उसे ऐसे ही बेटी नहीं माना था, वल्कि मां बेटी  का रिश्ता कायम करके नई  मिसाल कायम की।

शिव कुमारी शुक्ला 

15-1-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

दोस्तों यदि असल जिंदगी में भी थोड़ी समझदारी से  काम लिया जाए तो यह इतना मुश्किल भी नहीं होता कि एक स्वस्थ  रिश्ता  कायम न किया जा सके। किन्तु ऐसा देखने में कम आता है कि जहाँ दोनों की सोच एक सी हो। अक्सर जहां सास बहू को बेटी मानना चाहती है वहाँ बहू साथ नहीं देती और जहाँ बहू बेटी बनना चाहती है वहाँ सास इस रिश्ते को मान्यता नहीं देती । कुछ सामजिक परिस्थिती में   बदलाव   आए और कुछ सोच में तो यह रिश्ता कायम हो सकता है। अपने प्रेरक कमेन्टस जरुर भेजें।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!