आज शाम से ही राम रतन जी की दुकान पर बहुत भीड़ थी । कारण कल से नवरात्रि व्रत स्थापना है । सब अपने सामान के लिए जल्दी कर रहे हैं ।
रामू भी अपने हाथ पैर जल्दी-जल्दी चल रहा था । जल्द से जल्द सामान ला ला कर ग्राहकों की मांग पूरी कर रहा था । परंतु फिर भी राम रतन जी गुस्से से रामू को चिल्लाये जा रहे हैं । रामू सब सुनकर चुपचाप अपना काम करता जाता है । राम रतन जी गुस्से में उल्टा सीधा भी बोलते जाते हैं । ग्राहक लोग भी उनके गुस्से को देखकर मुस्कुराते । रामू सब कुछ सहन करता । मन में उसको भी बहुत गुस्सा आता पर अपनी मां बापू के दिए संस्कार याद आ जाते।
बेटा हमेशा बड़ों की इज्जत करो । उनका मान सम्मान करना चाहिए । कोई कितना भी कुछ करें, परेशानियां आए, अपनी हिम्मत न हारना। वक्त पर विश्वास रखना।
रात को जब रामू घर आया तो उसका चेहरा उतरा उतरा सा था । बहन ने पूछा क्या बात है भाई आज तबीयत ठीक है । वह बोला सब ठीक है । और वह बाथरूम में चला गया । हाथ मुहं धोकर सबके साथ खाना खाने के बाद सब मिलकर बातें कर रहे थे । तब भी रामू सुस्त ही रहा । यह देखकर मां ने पूछा रामू आज कुछ बात तो है । क्या सेठ राम रतन जी ने कुछ कहा । यह सुन रामू के दिल की भड़ास एक साथ निकल पड़ी । वह बोला मां अब और समझौता मैं नहीं कर पाऊंगा । “समझौता अब नहीं” । मां बापू तुम लोगों के दिए संस्कारों को मध्य नज़र रखते हुए सहन किया । अब मैं हिम्मत हार गया हूं । “समझौता अब नहीं” कर पाऊंगा । मैंने उनकी नौकरी छोड़ दी । उसका बापू भी आ गया । दोनों ने कहा तू चिंता ना कर ।
रामू एक मजदूर परिवार का बेटा है । बापू माधव सिंह मां सरला बहन कुसुम चार लोगों का परिवार है । बहन बड़ी है । मां बापू अपने काम के लिए सुबह 8:00 बजे निकल जाते हैं । शाम को 7:00 बजे आते हैं । बहन घर का काम करती है । इस कारण ही रामू ने पास की दुकान रामरतन जी की दुकान में नौकरी करने का मन बना लिया । घर भी पास ही है तो दिन में खाना खाने के लिए आ जाता है । भाई बहन दोनों साथ में खाना खाते बातें करते रहते हैं । आधे घंटे बाद रामू दुकान पर चला जाता फिर 10:00 बजे रात को आता है ।
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रामू पढ़ाई में होशियार था । उसको आगे पढ़ने का भी मन था । परंतु वह अपने मां-बाप के ऊपर ज्यादा पढ़ाई के चक्कर में काम का ज्यादा लोड नहीं डालना चाहता था । दूसरा कारण उसकी बहन कुसुम भी अपनी युवा सीढ़ी पर कदम रख चुकी है । भगवान ने रूप देने में कोई कमी नहीं छोड़ी । उसके मां-बाप तो सुबह निकल जाते । शाम को आते । दिन भर बहन अकेली रहती । रामू को पढ़ाई के लिए दूसरे बड़े शहर में रहना पड़ता । इस कारण रामू ने अपने बापू से कह दिया । मैं अब अपना काम करना चाहता हूं ।
अब दोनों भाई बहन यहीं काम की प्लानिंग करते । बहन ने सुझाव दिया हम अपने घर के पास ही एक ढाबा खोल लेते हैं । भाई को कुछ-कुछ तो ठीक लगा । वह बोला तेरे पर काम का बहुत लोड पड़ जाएगा । कुसुम ने बताया पड़ोस में मेरी सहेली रमिया रहती है । वह भी दिन भर अकेली रहती है । उसके मां-बाप तो काम पर निकल जाते हैं । शाम को आते हैं । कुछ पैसे मेरे पास हैं । रामू बोला कुछ पैसे मैं बैंक से निकाल लाता हूं । मैंने कुछ पैसे अपनी प्यारी बहन की शादी के लिए जमा किए थे । बहन की शादी खूब धूमधाम से करूंगा । दोनों बातें करते-करते प्लानिंग करते जाते । उनकी आंखों में आंसू झरने की तरह बह रहे थे । भाई बहन को हंसाने के लिए फिल्मी गीत गुनगुना उठा ।
मेरी प्यारी बहनिया
बनेगी दुल्हनिया
सज के आएंगे दूल्हे राजा
भैया राजा बजाएगा बाजा
रामू को नाचता और गाता देख बहन उसे मारने के लिए आई । दोनों भाई बहन गले लग कर रोते-रोते हंसने लगे ।
रामू ढाबे के हिसाब से सामान ले आया । अपने मकान के बगल में जगह खाली थी । रामू को जानते तो मोहल्ले के अधिकतर लोग थे । उसके मालिक से रामू मिला । शाम को बापू के आने के बाद उनको लेकर बात की । वो राजी हो गए । उनके सहयोग से वहां एक कमरा और छोटी सी रसोई हो गई । उनसे रामू को बहुत सहयोग मिला । धीरे-धीरे रामू का ढाबा चलने लगा । रमिया और कुसुम दोनों मन लगाकर काम करती । सब बहुत तारीफ करते खाने की ।
एक दिन अजय टीचर जी भी खाना खाने आए । वह अकेले ही रहते हैं । उनका परिवार गांव में रहता है । बहुत देर तक रामू से बातें करते रहे । उनको भी खाना बहुत पसंद आया । बातों बातों में घर परिवार की बात भी होने लगी । रामू ने मास्टर जी से पूछा आपकी बीवी बच्चे सब परिवार गांव में रहते हैं । अजय ने कहा मेरे पिताजी नहीं है । मां एक भाई एक बहन है । मैंने शादी के लिए मना कर दिया । जब अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा तब शादी करूंगा । मां ने छोटे भाई की शादी कर दी । छोटे भाई की पत्नी आशा ने अच्छे से पूरा परिवार संभाल लिया । बहन की भी शादी हो गई । मां अब मुझसे कहती है शादी के लिए । रामू उनके व्यवहार से मन ही मन बहुत खुश हुआ ।
अपने मन में कुसुम की शादी के बारे में सोचने लगा । शाम को मां-बाप को जब सारी बात बताई तो वह दोनों भी मन ही मन खुश होने लगे । उन्होंने अजय की शादी का प्रस्ताव रखा । उन्होंने कहा कल मैं गांव जा रहा हूं । आप लोग भी साथ में चल सकते हैं । वैसे अजय ने कुसुम को देखा हुआ है । मन ही मन वह भी उसको भा गई है । अजय ने अपनी मां को सारी बात बताई । मां ने और आशा ने सबका अच्छे से आदर सत्कार किया । दूसरे दिन अजय सबको लेकर वापस आ गया ।
लड़की देखने का कार्यक्रम हुआ । लड़की कुसुम सबको बहुत अच्छी लगी । अजय की मां ने कहा मुझे लड़की पसंद है । मैं तो ऐसी ही पारिवारिक संस्कारी लड़की चाहती हूं जो पूरे परिवार को अपने प्यार के बंधन में बांधकर रखें । रामू के मां बापू ने कहा आपका आशीर्वाद सदा बच्चों पर रहे । और हम लोगों को क्या चाहिए । अजय की मां ₹5000 देकर बात पक्की कर गई । शादी का मुहूर्त निकलवा कर दोनों की शादी हो गई । विदाई का समय आया । बहन मां बापू के गले लग कर रो रही थी । इधर रामू ने गाना लगवा दिया ।
मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया । खूब डांस किया । उसको देखकर बहन उसके पास आकर उसके गले लग कर हंसते रोते रहे । रामू ने बहन को गाड़ी में बैठा दिया ।
अब रामू के मां-बाप को रामू के घर बसाने की चिंता होने लगी । रामू के दिल में रमिया की कार्य कुशलता व्यवहारिकता मन को भा गई । परंतु कह नहीं पाया । जब कुसुम आई । चाय नाश्ते के दौरान दोनों की आंखों की नजरों में कुछ अलग की झलक देखी । उसने दोनों से बात करके दोनों की रजामंदी लेकर मां बापू से कहकर शादी की बात की । कुछ दिनों पश्चात रमिया रामू की दुल्हनिया बन गई रामू का ढाबा अब होटल के रूप में परिवर्तित हो गया । दोनों के परिवारों में खुशियां ही खुशियां लहराती छोटे बच्चों के साथ ।
समझौता अब नहीं
जीवन का लक्ष्य है । समझौता समर्पण संस्कार सुख का स्त्रोत
लेखिका
सरोजनी सक्सेना