बाजार में अचानक अपने बचपन की
सहेली को देख मुझसे रहा नही गया । मैने उसे आवाज़ लगाई।
उसने मुड़कर देखा भी ,पर न जाने क्यूं मुझे अनसुना कर वो तेजी से आगे बढ़ गई । मुझे लगा वो मुझे नज़रअन्दाज़ कर रही है ।
बारहवीं तक मै और विशाखा साथ साथ पढ़े थे ।स्वभाव से चंचल , बातूनी और दबंग स्वभाव की विशाखा पढ़ाई में भी तेज़ थी । कोई लड़का अगर किसी लड़की को छेड़ देता तो वह पंगे लेने से भी न हिचकिचाती थी। वह हमेशा हम सबसे कहती,”विशाखा के होते हुए तुम सबको किसी लड़के से डरने की ज़रुरत नही हैै ।”
फिर एक दिन उसने हमें अपनी शादी का कार्ड देकर चौंका दिया । बहुत खुश लग रही थी । सारी मित्रमंडली उसकी शादी की रौनक देख खुश थे । राजसी ठाठबाट से वो विदा हुई।
और अब जब इतने वर्षों बाद अपनी पक्की सहेली को देखा तो उससे मिलने की चाह में मैं भी तेज़ कदमों से उसके पीछे -पीछे चल पड़ी।
कई आवाजें लगाने पर भी उसका मुड़कर न देखना मुझे संशय में डाल रहा था।
पता नहीं क्यों मैंने उसे पकड़ ही लिया और जैसे ही मैने उसके कंधे पर हाथ रखा तो उसका चेहरा देख मैने चौंकते हुए पूछा,”विशाखा तुम्हारे चेहरे पर ये निशान ?”
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सुन कर विशाखा फूट-फूट कर रो पड़ी।
मैं उसे पास के एक रेस्टोरेंट ले गई । बहुत पूछने पर उसने सिर्फ इतना कहा कि अभी उसे कुछ ज़रूरी काम है और वह जल्दी ही मुझसे मिल कर सब बताएगी।
मैने कहा कि ठीक है अगर तुम नहीं बताना चाहती तो जैसी तुम्हारी मर्जी।
करीब दो महीने बाद मेरी डोरबैल बजी।
दरवाजा खोला तो सामने विशाखा खड़ी थी ।
न हाथ में चूड़ी थी और न ही माँग में सिन्दूर। उसका हाथ पकड़े उसके साथ खड़ी थी दस – बारह वर्ष की मासूम सी बच्ची।
मैने अन्दर आने का इशारा किया तो वह दोनों अन्दर आ गई।
जहाँ विशाखा के चेहरे पर एक अजीब सी शान्ति छाई थी , वहीं बच्ची सहमी व डरी हुई सी थी और माँ की उँगली कस कर पकड़े हुए थी।
मैने इशारे से बच्ची को अपनी तरफ बुलाया । लेकिन वह अपनी माँ से और ज्यादा चिपक कर बैठ गई।
मैने विशाखा से पूछा,”तुम ठीक तो हो ना ?
जवाब में जो उसने बताया, वह तो और भी चौकाने वाला था।
उसने बताया,”शादी के लगभग एक महीने तक मेरे पति रोज़ ही अपने किसी न किसी दोस्त के यहाँ पार्टी में ले जाते और उन्हें मेरे साथ कुछ भी करने के लिए कहते। मेरे मना करने पर मारपीट पर उतारू हो जाते ।
जब मैंने जाने से इन्कार किया तो उसने मेरे माँबाप को शिकायत की कि मैं उसका ख्याल नहीं रखती, मेरा चाल चलन ठीक नहीं है , मुझे मायके छोड़ देगा।
उसने मेरे माँ बाप को धमकी दी कि अगर अपनी छोटी बेटी तान्या को उसका ख्याल रखने के लिए मेरे घर नहीं भेजा तो मुझे और मेरी बच्ची को मार डालेगा ।
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तान्या को किडनैप कराने की धमकी दी
इस डर से मैं वो सब करती रही। लेकिन अब वो हमारी बेटी से भी वही सब कराना चाहता है । मैंने मना किया तो उसने गरम गरम चाय मेरे चेहरे पर फेंक दी । मेरी बेटी यह सब देख बेहद घबरा गई।
लेकिन मैंने ठान लिया कि # समझौता अब नहीं । जो मेरे साथ हुआ , अपनी बेटी के साथ हरगिज़ नहीं होने दूँगी। मैंने उसके खिलाफ़ रिपोर्ट लिखा दी ।आज जब पुलिस घर आई तो वो बचने के लिए सड़क की ओर भागा । पीछे से एक ट्रक आया और ……और …..हमेशा हमेशा के लिए मैं उसकी कैद से आजाद हो गई। ।
कहते हुए उसकी सूखी आँखों के कोर से एक आँसू लुढ़क गया ।
विशाखा कहती हुई बाहर निकल गई और मैं सोच रही थी कि विशाखा ने #समझौता अब नहीं कहने में इतनी देर क्यूँ लगाई ? मानती हूँ कि मेरी जजमेंट गलत है उसके बारे में लेकिन फिर भी…
अगर उसका पति आज भी ज़िंदा होता तो..।? ये कशमकश मेरे दिमाग में चल ही रही थी विशाखा की हिम्मत की दाद देने लगी… देर ही सही, अब बस कहा तो…
समिधा नवीन वर्मा
Samidha Naveen Varma
सहारनपुर (उ० प्र०)