सुशीला अपनी पोती के होने से हमेशा दुखी रहती है ।वह बहू को हमेशा ताने देती रहती है, उसकी उंगली करने की आदत रहती है।वह उसे ही दोष देकर कहती हैं -अगर बहू पोता होता तो मैं मिठाई बंटवा देती।काश पोता होता।अब क्या कहूं किसी से••••उसे अंदर ही अंदर बहुत बुरा लगता है।
फिर एक दिन कालोनी की औरतें आती है, अरे सुशीला देख तेरी बहू की गोद भर गई और तूने मिठाई तक न खिलाई।
तब सुशीला देवी चिढ़ते हुए कहती-” काहे की खुशी बहनजी हमारे घर कोई पोता नहीं हुआ।जो घर- घरमिठाई बंटवा देती।”
वह रेनू की ओर उंगली करते हुए कहती हैं इसके लक्षण ही न थे। पोता जनेगी। रेनू के लड़की जन्मी है तो काहे की खुशी!
तब रेनू ने कहा- ” मम्मी मेरी क्या ग़लती ये तो भगवान की मर्जी ••”
फिर सुशीला देवी की हां हां मिलाते हुए औरतें उंगली करते हुए कहती हैं-” सही तो कह रही है सुशीला देवी कि लड़का कुल का दीपक होता है।ये लड़की तो बोझ ही होती है ,ये पराया धन होती है।”
तब रेनू हाथ जोड़कर कहती – मेरी बच्ची ही मेरी औलाद है ,मेरे जिगरी का टुकड़ा है।इसे आप लोग शगुन नहीं दे सकती तो न सही पर मैं इसकी मां हूं।
तब भी सुशीला देवी उसे गुनहगार ठहराते हुए बड़बड़ाते हुए कहती-” देख रेनू ,तूने मेरे घर का वंश न बढ़ाया कि मैं तेरी आरती करु। मुझसे कोई उम्मीद मत करना।
तब उसके मायके से फोन आता है,उसकी बेटी की कुशल मंगल पूछते हैं कि हमारी नातिन क्या कर रही है । तब वह बताती है कि हमारी सासुमा बिल्कुल खुश नहीं हैं।दिनभर वे उंगलियां ही करती है कि मैंने बेटी को जन्म क्यों दिया। ये तो मेरे हाथ न था।ये तो भगवान की मर्जी•••
तब उसकी मां समझाते हुए कहती- बेटा रेनू बड़े सौभाग्य की बात तू एक बेटी की मां है। जिनके औलादें नहीं होती उनका सोच••• तूने तो साक्षात लक्ष्मी को जन्म दिया है।हां मम्मी पर मेरी सासुमा खुश नहीं हैं वो कह रही है कि मैंने पोता नहीं जन्मा है।
तब उसकी मां कहती -“कोई बात नहीं बेटा मैं कल आ रही हूं।समधन जी को समझाऊंगी।”
फिर वह फोन रख देती है। उसके बाद कालोनी की औरतें भी चली जाती है।
और सुशीला देवी रेनू का ख्याल नहीं रखती है।ऊपर से ननद और ससुर भी उसे ही दोषी मानते हैं।वे भी उंगलियां करने से नहीं हटते।इधर उसका पति कहता है कि रेनू जो सबको कहना कहने दो।मेरे लिए मेरी बेटी मेरा अंश है। मेरी औलाद से बढ़कर कुछ नहीं है। फिर यह सब सुनकर उसकी मां अपने बेटे को जोरु का गुलाम तक कह देती। फिर भी रेनू का पति उसका पूरा ख्याल रखता है इस कारण रेनू इतनी खरी खोटी सुनने के बाद भी नहीं टूटती है।
फिर अगले दिन रेनू की मां जैसे ही पहुंचती है। तब सुशीला देवी कहती है-आ गई अपनी बेटी की वकालत करने•••
अरे बहन जी ये क्या कह रही है, मैं तो यहां इसलिए आई हूं बेटी के साथ और नातिन के साथ अन्याय न हो, उसे उसके हिस्से का प्यार मिल जाए बस इसीलिए ही•••••
फिर सुशीला देवी कहती हैं- अरे बहन जी ,जो सच है वो बदल नहीं सकता कि बेटा ही वंश बढ़ाता है।
अगर बेटा न हो तो वंश न बढ़े।तभी रेनू की मां कमला जी कहती हैं-हां आपने ये सही कही कि बेटा न हो तो वंश न बढ़े।पर ऐसे ही सब सोचे तो बेटियों की कमी न हो जाएगी। फिर अपना बेटा किससे ब्याहेगी? ये आपकी कितनी दकियानूसी सोच है।जबकिआजकल लड़की लड़का दोनों बराबर है।लड़की हो या लड़का, है तो आपके परिवार का अंश, आप ये क्यों नहीं सोचती कि लक्ष्मी जी आपके यहां आई है।
तब सुशीला जी कहती हैं-” बहन जी बेटियां तो पराया धन ही होती है, पर बेटा बुढ़ापे का सहारा होता है। मुझे कोई खुशी न है•••
इन बेटियों को पालने पोसने से लेकर पढ़ाने लिखाने में खर्चा करो और फिर ब्याह कर दो।
तब रेनू की मां उन्हें समझाते हुए कहती-अरे बहन जी आपकी इस सोच ने तो हमें शर्मसार कर दिया यदि हमारे मां बाप भी यही सोचते तो क्या ये हमारे माता-पिता का वंश आज जो दिख रहा है वह दिखता नहीं ना…हम औरतें ही वंश बढ़ाने वाली संतान को जन्म देती है न कि बेटा ,अगर बेटियां ही न जन्मेंगी तो हम अपने बेटों का ब्याह किससे करेंगे। इसलिए बेटियों का जन्म होना आवश्यक है।अगर दुनिया में बेटा ही वंश बढ़ा सके तो बताइए फिर लड़कियों की आवश्यकता ही न रहे, ऐसे में बेटियों की कमी ही हो जाएगी।हम भी मां है, हमारी मां ने हम जैसी बेटियों को जन्मा है, हमें बड़े ही नाजों से पाला है तो क्यों हम बेटी को कोसे••••
तब सुशीला देवी कहती हैं -मेरे यहां तो मैंने सदा ही बेइज्जती ही सहन की है, और मेरे घर में भेदभाव ही हुआ है।तब मैं समझ गई कि बेटा कितनी अहमियत रखता है।
और वो सिसक कर रोने लगती है।तभी रेनू की मां सुशीला जी को समझाती है देखिए अब समय बदल गया है, बेटियां तो दो कुल का मान बढ़ाती है इसलिए इतने बड़े पद पर पहुंच रही है ।हम आपसे यही कहेंगे कि बेटी के होने से घर में रौनक होती है।
यदि आप कहे तो मैं अपनी बेटी और नातिन को ले जाती हूं। फिर देखिएगा ,कुछ ही दिनों में महसूस होगा कि घर कितना सूना हो गया है ••••
इतना सुनते ही सुशीला देवी कहने लगती है हां बहन जी आपने मेरी आंखें खोल दी। मेरे साथ जो हुआ उसी की कसक मैं निकाल रही थी मुझे माफ़ कर दो। फिर उन्होंने बहू रेनू को कहा -अब मेरी पोती की किलकारियां इसी आंगन में गूंजेगी।
अब मैं कभी न ताने दूंगी ये तो भगवान ने हमारे घर में लक्ष्मी ही भेजी है। उसे गोद में पहली बार लेकर पुचकारने लगी।
फिर रेनू ने कृतज्ञ भाव से मां को देखा ।तब मां ने भी रेनू को गले लगाकर कहा -बेटा रेनू मैं तो एक मां ही हूं। कैसे न अपनी बेटी का दर्द न समझती।एक मां होने के नाते कैसे न दूसरी मां का दर्द समझती।
दोस्तों -हमें अपनी सोच बदलनी चाहिए, लड़का हो या लड़की, है तो परिवार का ही अंश। इसलिए बेटी के होने पर बहू को उंगलियां नहीं दिखाना चाहिए। उसे दोष देकर हम अपनी बहू बेटी पर ही अति करने लगते हैं।जबकि बेटी भी घर का, कुल का नाम रोशन करती है।बेटों से कम न होती है। इसलिए उन्हें भी भरपूर प्यार देना चाहिए जितना बेटों को देते हैं । क्योंकि ये बेटियां ही परिवार का रुप बढ़ाकर संतान जन्म देती है।उसी कारण परिवार का वंश बढ़ता है।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया