समयचक्र – माधुरी गुप्ता : Moral stories in hindi

गिरधारीलाल जब से गांव से शहर आगरा आए थे उनकी किस्मत चमकने लगी थी।गांव में खेती बाड़ी करके घर का गुज़ारा होता था।जब तक उनके पिताजी थे तब तक तो ठीक था।कयोंकि खेती में मेहनत तो पूरी करनी पड़ती थी परन्तु नफा उतना नहीं मिलपाता था ।फिर कभी बारिश कम होने से सूखा या बारिश अधिक होने से फसल के खराब होने का डर बराबर बना रहता।

जैसे ही उनके पिताजी का देहावसान हुआ , गिरधारीलाल ने गांव छोड़कर शहर जाकर अपनी किस्मत आजमा ने का मन बनाया। क्योंकि कुछ साल पहले उनके ही गांवसे उनका परिचित मित्र शहर आया था,और उसने थोड़ी सी पूंजी लगाकर अपना व्यापार शुरू किया था,और कुछ सालों में ही वह एक बड़ा व्यापारी बन गया था।

गिरधारीलाल की उससे बातचीत होती रहती थी,उसके उकसाने पर वे आगरा आ गएथे।अधिक पढ़ें लिखे तो थे नहीं लेकिन दिमाग तेज था सो मसालों का काम शुरू करने की योजना बनाई,एक चक्की लगा कर मसाले पीस कर घर घर सप्लाई करने लगे।चूंकि मसालों की गुणवत्ता बहुत अच्छी थी अतः थोडे से दिनों में ही उनका मसाला उद्योग खूब फल-फूल ने लगा।

जैसे ही उनका व्यापार चमका,सबसे पहले किराए का घर छोड़ कर अपनी कोठी बनाने का विचार मन में आया।शहर की पॉश कॉलोनी कमला नगर में एक दो मंजिला कोठी बनाई उस समय कमला नगर की कॉलोनी नईं नई बसी थी सो वहां अधिक मकान नहीं थे। गिरधारीलाल अपनी कोठी को देख कर फूले नहीं समाते।

उनकी पत्नी एक धार्मिक स्वभाव की महिला थी पूजा पाठ व भगवान की भक्ति में उनका मन खूव रमता था।

शहर में आकर व व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होने से वेअव सेठ गिरधारीलाल बन गए थे ,तरह तरह के मसालों की नामचीन कम्पनी हो गई थी।इस बीच उनकी पत्नी वे दोजुड़वां बेटों को जन्म दिया।जिनका नाम सेठजी ने अजय विजय रखा।

उनके दोनो बेटे पढ़ाई में तेज थे दोनों ने कुशाग्र बुद्धि पाई थी। समयानुसार बच्चे बड़े हुए तो सेठजी ने उनको अच्छी कोचिंग दिलवा कर एम वीए की पढ़ाई करनेके लिए आई आई एम कलकत्ता में भेजदिया क्यों कि एनटरेंस परीपरीक्षा में पहले ही प्रयास में उनका चयन होगया था।

सेठजी आस लगाए बैठे हुए थे कि पढ़ाई पूरी करके उनके बेटे इस व्यापार को नई ऊंचाइयों तक लेजायेंगे।उनके बेटों ने नई तकनीक अपनाकर इस उद्योग को आगे बढ़ाने की सलाह दी, परंतु अपने दंभी पिता के आगे उनकी एक न चली, क्योंकि सेठ जी को सिर्फ आदेश देने की आदत थी ,किसी की राय मानना उनके स्वभाव के बिपरीत था। परंतु उच्च शिक्षा प्राप्त उनके बेटों को अपने पिता व्यवहार ठीक नही लगा। कुछ दिन घर में रह कर उनके बेटों ने विदेश जाने का अपना मन बना लिया।कई कम्पनियों से बातचीत करके उनको जॉव मिल गया। हालांकि बेटों के विदेश जाकर जॉव करने के फेबर में नहीं थे लेकिन उनका अहंकारी स्वभाव उनको रोकने को कहने की इजाजत नहीं दे पारहा था।

अपार धन संपत्ति आने सेठजी में अहंकार आगया था।अपने अड़ोसी पड़ोसी से भी वे अधिक सम्पर्क नहीं रखते थे।इस कॉलोनी में आए उनको काफी साल हो गए थे ,लेकिन कॉलोनी के लोगों से उनकी जान-पहचान ना के बराबर ही थी।जबकि उनकी पत्नी अड़ोस पड़ोस सभी से मेल-मिलाप रखती थी।सेठ जी काोअपनी पत्नी का उन लोगों से मिलना-जुलना अच्छा नही लगता था,उनका कहना था कि मेल मिलाप अपने बरावर बालों से ही रखना चाहिए,क्योंकि सेठ जी का गरूर अपने कॉलोनीवासियों। से मिलने में आड़े आता था।

जब भी अड़ोस पड़ोस में किसी की शादी का निमंत्रण आता व्यवहार के नाते अपने मुनीम के हाथों रूपयों के लिफाफे का शगुन भेज कर अपना व्यवहार निभाने लगे थे। कॉलोनी निवासी इस तरह के व्यवहार को अपना अपमान समझते थे, परंतु उनकी पत्नी के मिलनसार स्वभाव के कारण ही कोई कुछ नहीं कहता था।

सेठजी की भी उम्र बढ़ने के कारण अब पहले की तरह व्यापार की देखरेख नही कर पारहे थे।एक दिन अपनी फैक्ट्री से वापिस आए तो चक्कर खा कर गिर पड़े। सेठानी को चिंता हुई डॉक्टर से बात की त तो डॉक्टर ने कई टैस्ट कराने की सलाह दी।सारे टैस्ट की रिपोर्ट आने पर पता चला कि सेठजी को कैंसर है।

एक दिन सेठजी के घर के सामने एम्बुलेंस को खड़ी देख कर पड़ोस के शर्मा जी आये चूंकि वे उम्र में इन लोगों से काफ़ी छोटे थे, अतः बोले आंटी क्या बात है यह एम्बुलेंस क्यों आईं है क्या कोई बीमार है कया कुछ सीरियस बात है।

हां जी सेठजी को कैंसर हुआ है उनको हॉस्पिटल में एडमिट करना है ,आगे के ट्रीटमेंट के लिए। आपने अपने बेटों को खबर की सेठजी की बिमारी के बारे में।

हां फोन कर दिया है लेकिन अभी तक उन लोगों के आने का कुछ निश्चित नहीं है,नई नौकरी है,पता नहीं छुट्टी मिल पायेगी या नही।मैं अकेली कहां कहां तक दौड़ भाग कर पाऊंगी।

अरे आप अकेली कहां है हम सब हैं न आपके साथ यदि आपके बच्चे न भी आपाये तो हम सब मिल कर सम्हाल लेंगे

सेठानी को समझ नही आरहा था कि कैसे उन लोगों का शुक्रिया अदाकरें,जवकि सेठजी तो उन लोगों को अपने स्तर का ही नही समझते थे।

कहते हैं न #समय चक्र पर किसी का वश नहीं है।कब किस को किसी की जरूरत पड़ जाय यह किसीको नहीं मालूम होता।

सेठजी जितने दिन हॉस्पिटल में रहे उनके पड़ोसी बारी बारी से उनका ख्याल रखते।एक दिन सारे पड़ोसियों को अपने सामने देख कर सेठजी की आंखों से आंसू बह निकले सेठजी अपने हाथ जोड़कर कहने लगे मैं अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिन्दा हूं मैंने आपको कभी अपने बराबर नहीं समझा हमेशा अपने पैसे के गरूर में डूबा रहा।लेकिन #समय की मार ने मेरी आंखें खोल दी हैं आप लोगों का मेरे प्रति प्यार व अपनापन देखकर ।धन दौलत चाहे कितनी भी जमा करलो , लेकिन इंसान की जगह नहीं ले सकता।मै आप लोगो से माफी मांगना चाहता हूं अपने व्यवहार के लिए

अरे, सेठजी आप कैसी बात कररहे हैं,आप तो उम्र में हम सबसे बड़े हैं और हम सबको तो आपकी फैक्ट्री के प्योर मसाले खाकर स्वस्थ रहना है।बस आप ठीक हो कर जल्दी से घर आजाय यही हम सबकी दुआ है आपके लिए।

स्वरचित व मौलिक

माधुरी गुप्ता

नई दिल्ली

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