अपने माता पिता के एकलौते बेटे चक्रधर सरकारी स्कूल में पढाते थे। घर में उनके अलावा उनकी एक छोटी बहन थी जिसका ब्याह हाल ही में हुआ था। नई नई नौकरी नया जोष बहुत ही मेहनत से काम करते थे। उनका बात करने का तरीका हर किसी को मोह लेता था। यहीं स्कूल में ही उनकी मुलाकात शषि से हुई।
शषि अक्सर अपने भाई को स्कूल भेजने और लेने आती थी। सावंले रंग और तीखे नयन नक्ष वाली शषि चक्रधर को भा गई। अब उनसे अक्सर मुलाकाते होने लगीं। यह मुलाकातें कब जान पहचान से बदल कर प्यार में बदल गई दोनो को उस वक्त समझ आया जब दोनो ही एक दूसरे को देखे बिना नहीं रह सकते थे। चूंकि दोनो ही उम्र के उस पडाव पर थे कि ब्याह कर घर बसाया जा सकता था तो दोनो से ब्याह करने के सोची।
घर में दोनो के ब्याह का सुनते ही चक्रधर के घर में हंगामा हो गया वह किसी भी हाल में शषि को अपने घर की बहु नहीं बनाना चाहते थे। एक तो उसकी जाति अलग थी लेकिन इस बात को अनदेखा भी कर दिया जाये तो वह जानते थे कि भले ही शषि हर काम में निपुण हो व्यवहार कुषल हो फिर भी अपने आप को साबित करने के लिये वह झूठ सच का सहारा लेने में बाज नहीं आती है, इसके लिये वह किसी भी हद तक चली जाती थी।
घरवालों का यह इंकार चक्रधर को रास नहीं आया उन्होने से घरवालों की मर्जी के बिना ही शषि से ब्याह कर लिया जिसकी वजह से चक्रधर के पिता ने उन्हे घर से निकाल दिया। चूंकि चक्रधर के पिता उनके ब्याह से खुष नहीं थे तो गांव के लोगो ने भी उनसे दूरी बना ली जिसकी वजह से चक्रधर ने अपना तबादला दूसरे गांव में करा लिया और उसी गांव में किराये का मकान ले कर अपनी पत्नि और सास के साथ रहने लगे। दोनो के शुरूआती हालात घर से अलग होने के कारण बहुत अच्छे नहीं थे लेकिन धीरे धीरे पार्ट टाइम काम करके घर के हालात में सुधार आने लगा। शषि और चक्रधर के व्यवहार से उन दोनो का पूरे गांव के ज्यादातर घरों में आना जाना हो गया था।
शषि के मायके वालों का आना जाना लगा रहता था किन्तु चक्रधर के घर से कोई नहीं आता था।यहां तक कि चक्रधर के घर में किसी दुख के मौके पर भी चक्रधर अकेले हो कर वापिस आ जाते थे। चक्रधर की मां अपनी जवान बेटी और पति की मौत के बाद लगभग ग्यारह साल के बाद पहली बार उनके घर आईं। इतने समय में उनके यहां दो बेटियां और एक बेटा पैदा हुआ। सास के आने से शषि खुष नहीं हुई। उसने उनको परेषान तो नहीं किया लेकिन उनका कोई खास ख्याल भी नहीं रखा। वह अक्सर शषि से कहती बेटा समय का चक्र बहुत ही खतरनाक होता है उससे सजग रहना लेकिन शषि को लगता कि मै इनकी पसन्द की नहीं हूं इसलिये यह एसा बोलती हैं।
उस गांव में रहते हुये दोनो को ग्यारह साल से भी ज्यादा का समय हो चुका था। यहां भी शषि अक्सर बहुत ही सफाई घरों में आग लगा जाती थी किसी मां को बेटी के खिलाफ भडका देती वहीं बेटियों से सहानुभुति हासिल करती रहती। जिन लोगों ने शषि की इस हरकत को समझ लिया उनसे सजग हो गये। कई लोग तो शषि को चलता फिरता रिकरर्डर भी कहते थे। लेकिन जो लोग उनके हरकतो से सजग नहीं हुये उन घरों में शषि का आना जाना बरकरार था।
बच्चे बडे हो रहे थे उनके लिये चक्रधर को पैसा कमाने के लिये और मेहनत की जरूरत थी। चक्रधर ने सोचा कि क्यों न एक छोटा व्यापार डाल दिया जाये जिसमें मेहनत भी कम हो और पैसा भी आता रहे। यह सोच कर चक्रधर ने गांव में एक टेंट हाउस डाल दिया जिसमें हर तरह के बर्तन किराये पर दिये जाते थे। इसमें मेहनत भले ही कम हो लेकिन कई बार वक्त बेवक्त लोग अचानक से बर्तन लेने आ जाते थे और वह नहीं होते थे तो लोग खाली हाथ लौटते थे।
इसके लिये चक्रधर ने गांव के एक व्यक्ति रमा को अपना पार्टनर बना लिया। शुरू के दिनों में रमा इस काम के लिये जब चक्रधर नहीं होते थे तब आकर बर्तन निकाल कर दे देता या वापिस ले लेता था फिर अपने घर चला जाता इससे उसके हाथ में भी पैसा आने लगा।
अब रमा भी आगे की सोचने लगा। शषि जिसकी आदत में अपना महत्व मनवाना शामिल था अक्सर रमा से उसके घर परिवार के बारे में बात करने लगती उसको सुझाव देती। रमा को लगता कि शषि उसकी हमदर्द है इसलिये अपने घर में होने वाले भाई बहन मां बाप के बीच छोटे छोटे झगडे भी शषि को बताने लगा और उसकी हमदर्दी हासिल करने लगा।
इधर रमा के घर वाले चाहते थे कि रमा या तो कुछ कमाई धमाई करे तो उसका अपना घर संसार बसाया जाये लेकिन वक्त बीतने के साथ रमा को शषि की हमदर्दी सही और अपने परिवार वाले गलत लगने लगे और उसने अपना घर छोड कर उसी घर में अपना आषियाना बना लिया। रमा चूंकि उसी घर में रहने लगा था
इसलिये उसने चक्रधर से अलग से पैसे लेने भी बन्द कर दिये थे। इन सब चीजों को देखते हुये भी चक्रधर मौन थे न ही वह शषि की हरकतों को रोक रहे थे। रमा कि उम्र और शषि की बेटी की उम्र में ज्यादा फर्क नहीं था तो रमा के घर वाले बोलते थे कि अगर रमा को उसके घर से अलग करके अपना बनाना है तो उससे अपनी बेटी का ब्याह कर ले। बदनामी भी नहीं होगी और सहारा भी रहेगा। लेकिन शषि का जवाब होता यह मेरी बेटी के लायक नहीं है।
एक दिन रमा बर्तन देने के लिये निकाल रहा था वहां अचानक एक सांप आ गया जिसने रमा को काट लिया, सांप का जहर इतनी तेजी से रमा के शरीर में फैला कि असपताल पहुंचते तक उसकी मौत हो गई। चक्रधर के परिवार का कोई भी सदस्य उसको अस्पताल ले जाने में या अन्तिम क्रिया में शामिल नहीं हुआ।
रमा के घर वालों को काफी आष्चर्य हुआ कि जो लोग रमा के नजदीकी होने का दंभ भरते थे वह इस समय भी उपस्थित नहीं थे। रमा के लिये कुछ आवष्यक चीजों के लिये चक्रधर के परिवार वालों से पैसे मांगे गये वह उन्होने देने से मना कर दिया यहां तक कि रमा ने जितने दिन काम किया था वह पैसा भी उन्हीं लोगों ने यह कह कर रख लिया कि इसमें उसका कोई हक नहीं है वह जितना भी काम करता था हम उसे पैसे दे देते थे
वह उनका क्या करता था हमें नहीं मालूम। रमा कि मां ने शषि से कहा कि वक्त का पहिया बहुत तेजी से घूमता है किसी मां से उसकी औलाद को अलग करके बहुत पछताओगी। शषि को लगता था कि वक्त हमेषा उसका साथ देगा उसने जो चाहा जैसा चाहा उसे मिला तो आगे भी मिलता रहेगा लेकिन समय चक्र हर हिसाब सामने करता है भले कोई समझे या न समझे। चक्रधर भले शषि का साथ न देता हो लेकिन वह उसके किसी भी काम का विरोध भी नहीं करता था जिससे शषि और निरंकुष हो गई थी।
इधर शषि के बच्चे भी बडे हो रहे थे उनकी बेहतर पढाई लिखाई हुई बडी बेटी की शादी तय कि और शादी का सामान लेने के लिये मार्केट गई हुई थी घर में दोनो बेटियां थी किसी बात पर आपस में तकरार हुई बडी बेटी ने अपने ऊपर तेल डाल कर आत्म हत्या कर ली।
बेटे ने गलत संगत पकड ली पढाई लिखाई ढंग से की नहीं सारे दिन मारा मारा फिरता है पिता के पैसे उडाता है। पिता ने एक टैक्सी दिला दी है वही चलाता है।
दूसरी बेटी घर से दूर हास्टल में रह कर पढाई कर रही थी आय दिन अलग अलग कोर्स के नाम पर घर से पैसा मंगाती। जब काफी पैसा ले चुकी तो एक दिन पता चला कि वह किसी लडके के साथ रह रही थी। उसका कोई अता पता नहीं है काफी ढूंढा जा चुका है अब शषि सबसे कहती है कि बस इतना पता चल जाये कि मेरी बेटी जिन्दा भी है या नहीं। जहां कहीं पता चलता है बेटी करे को ढूंढने चल देती है।
गांव वालों को शषि की हालत पर तरस भी आता है कहने वाले कह भी देते है यह समय का चक्र है घूम कर वापिस आता है।
डा. इरफाना बेगम
नई दिल्ली