समय का फेर – संगीता त्रिपाठी : Moral stories in hindi

सुबह -सुबह फोन की घंटी बजी, उमा जी घबरा गई, इस समय किसका फोन आ सकता हैं, अभी तो पांच ही बजे हैं। फोन पर सना की आवाज सुन उमा और घबरा गई “सब ठीक हैं सना,उधर से सना की रूहासी आवाज उनको विचलित कर दे रही थी

     “क्या, तेरे सास -ससुर हमेशा के लिये रहने आ रहे..”कुछ तेज आवाज में उमा जी बोल पड़ी उनकी आवाज सुन देवेश जी भी उठ कर आ गये।”ऐसा कर तू कुछ दिनों के लिये यहाँ आ जा, फिर तेरे सास -ससुर का प्रोग्राम कैंसिल हो जायेगा”

    “क्या फालतू की बात सीखा रही हो”, देवेश जी क्रोधित हो उठे, और वहाँ से चले गये।

थोड़ी देर बाद उमा जी जब चाय ले कर देवेश जी के पास गई तो देवेश जी बोल पड़े,”देखो उमा, बच्चे देख कर ही सीखते हैं, तुमने भी अपने सास -ससुर को कभी अपने पास आने नहीं दिया, सना ने जो देखा वही कर रही, पर मेरा आग्रह हैं, तुम सना को गलत बात की शिक्षा मत दो।कोई भी रिश्ता बिना समर्पण के अधूरा होता है..,रोहन अपने माँ -बाप का अकेला बेटा हैं, वे लोग रोहन के पास नहीं आयेंगे तो कहाँ जायेंगे, कल को तुम्हारी बहू भी सौरभ से यही कहने लगे, तब तुम्हे कैसा लगेगा,” जिंदगी मौके कम और अफ़सोस ज्यादा देती हैं, “।

           देवेश जी की बात सुन उमा जी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, उनका दिमाग अभी इस बात पर उलझा हैं कि सना के सास -ससुर को किस तरह वहाँ आने से रोके। ये सब कुछ उमा जी की बहू खुश्बू सुन रही थी। शाम जब सौरभ ऑफिस से आया तो खुश्बू चाय देते हुये बोली -हम लोग भी अलग रहते तो कितना अच्छा लगता।

     “क्या बोल रही हो “सौरभ के हाथ से चाय का प्याला छूटते बचा। आश्चर्य से खुश्बू को देखने लगा। उनकी शादी के साल भर हुये हैं, और उमा जीके तेज मिजाज होने के बावजूद खुश्बू ने कभी भी सौरभ से कोई शिकायत नहीं की।

       “मै गलत क्या कह रही, वही कह रही हूँ जो घर में देख रही, आखिर बच्चे भी तो वही सीखते हैं, जो बड़े करते हैं। मम्मी जी ने भी दादी को यहाँ नहीं आने दिया, सना दीदी भी अपनी सास को अपने पास नहीं आने देना चाहती हैं तो मै ही क्यों सास के साथ रहूँ।”

           खुश्बू की तेज आवाज सुन उमा जी बोल पड़ी -खुश्बू क्या कह रही हो, सौरभ के बगैर हम नहीं रह सकते। “जब रोहन जीजा जी के बगैर उनके माँ -बाप रह सकते तो आप क्यों नहीं रह सकती, रोहन जीजू भी तो अपने माँ -बाप के इकलौते पुत्र हैं, उनकी तो कोई दूसरी संतान भी नहीं हैं,”उमा जी को कोई जवाब नहीं सूझा।

सुबह देवेश जी की बात याद आ गई।सही तो कह रहे थे। बहू की तरफ उनका ध्यान ही नहीं गया। अब उमा जी को याद आने लगा कर्मो का फल यही मिल जाता हैं। आँखों के सामने बूढ़े सास -ससुर के चेहरे घूम गये। ख्यालों में सास -ससुर की जगह बेटे की राह देखती प्रतीक्षा रत आँखों में उनको अपना और देवेश जी का चेहरा दिख गया। घबरा कर वो चीख पड़ी –ऐसा नहीं हो सकता।

         “क्यों नहीं हो सकता माँ, सना दीदी की तरह हम भी आजाद रहना चाहते हैं “बेटे की बात सुन उमा जी चीख पड़ी-तू भी बीवी की बातों में आ गया।”

 अब माँ, पापा और जीजू से सीख रहा हूँ “कह कर  सौरभ कमरे में चला गया।

                  उमा जी,देवेश जी के पास गई हाथ जोड़ बोली -मुझे क्षमा कर दीजिये, मुझसे गलती हो गई।

 “उमा, मुझसे नहीं अपने सास और बहू से माफ़ी मांगो, गलत बात ना खुद करो ना दूसरों को सिखाओ। सना का घर मत तोड़ो, उसे उसके कर्तव्य से विमुख मत करो, मै नहीं चाहता जो टूटन मैंने झेली वो मेरा दामाद झेले “।

माता -पिता को याद कर देवेश जी की आँखों में आँसू आ गये। घर की शांति के लिये वो कभी भी उमा के विरुद्ध नहीं जा पाये। हर साल एक हफ्ते के लिये गांव जा माँ -बाप से मिल आते थे, लौटते समय माँ की गीली ऑंखें देख वो खुद अपनी आँखों के कोरों को भीगने से बचा नहीं पाते थे, एक बेचैनी ले वो लौट आते थे।पिछली बार जब पिता बीमार पड़े थे, तब महानगर में रहते हुये भी पास के शहर में उनका इलाज करवाया। कभी -कभी मन में हूक उठता था -क्यों नहीं वो उमा से विद्रोह कर पाते, दाम्पत्य जीवन में सहना क्यों उनके हिस्से में ही आया..।सौरभ और सना को देख देवेश जी कोई कदम उठाने से रुक जाते थे। संतान ही माँ -बाप के पैरों की बेड़ियाँ होते हैं तभी तो वे इन बेड़ियों को तोड़ नहीं पाते। सोचते -विचारते दूसरी तरफ करवट लिये देवेश जी सो गये।

                 सुबह देर से नींद खुली, आज उमा जी ने चाय भी नहीं दी अभी तक। आँख मलते बाहर निकले तो, खाने की टेबल पर चाय पीते अपने माँ -बाप को देख चौंक गये। खुश्बू गर्म पराठे ला दादी सास -दादा ससुर को खिला रही थी, रसोई में उमा जी पराठे बनाने में मग्न थी। यूँ देवेश जी को हैरान -परेशान देख, सब हँस पड़े। उमा जी बोली ऐसे क्या देख रहे हैं, अम्मा -बाबूजी ही हैं। आँखों के आँसू छुपाने की कोशिश में देवेश जी वहाँ से हट गये। आँसू पोंछ रहे थे कि उमा जी कि आवाज आई -मुझे अपनी गलती देर से समझ में आई, समयचक्र को मैं भूल गई थी, जो हमारे कर्मो को ही दुहराता है,आपने सही कहा था “जिंदगी मौके कम देती अफ़सोस ज्यादा देती हैं। पर जो मौका मिला हैं उसे मै छोड़ना नहीं चाहूंगी,अम्मा -बाबूजी अब यही रहेंगे, मै बहुत गलती कर चुकी हूँ पर अब बाकी जीवन मै अम्मा -बाबू जी की सेवा में समर्पित है …।”

          रात टैक्सी कर सौरभ को भेज उमा जी ने सास -ससुर को बुला लिया।पैर पकड़ माफ़ी मांगी, माँ -बाप तो औलाद की हर गलती माफ कर देते हैं सो उमा जी को भी माफ़ी मिल गई। सना के घर भी वो रोहन के माँ -बाप को  पहुंचाने की तैयारी करने लगी। दो दिन बाद जब सना के घर देवेश जी और उमा जी पहुंचे तो सना की ऑंखें खुशी से चमक गई पर पीछे खड़े सास -ससुर को देख उसका चेहरा बुझ गया। रोहन के माँ -पापा को आगे कर उमा जी बोली -“अपने माँ -बाप को देख जो खुशी तुम्हे हो रही उससे कहीं ज्यादा रोहन को हो रही हैं। पति से प्यार हैं पर पति के माँ -बाप, भाई -बहन दुश्मन क्यों…?

तेरे  पास भी एक बेटा हैं कल को ये भी वही करेगा जो तुम्हे करते देखेगा। जब तुम अपने बेटे से दूर नहीं रह सकती तो दूसरे के माँ -बाप को,बेटे से क्यों दूर कर रही हो। देख सना मैंने बहुत बड़ी गलती की पर ये गलती तुम मत करो।”

      सना को बात समझ में आ गई। सास -ससुर को हाथ पकड़ अंदर ले आई। रोहन ने कृतज्ञ आँखों से उमा जी को देखा। उमा जी ने हाथ जोड़ लिया। उधर घर पहुँच देवेश जी ने खुश्बू को ढेरों आशीर्वाद और धन्यवाद दिया जिसके एक कड़े कदम ने कई लोगों को रोशनी दिखा दी। उमा जी ने भी अपनी समझदार बहू को गले लगा लिया।

           दोस्तों, हैं तो ये पुरानी समस्या, पर आज भी इसका समाधान होने की बजाय ये और बढ़ रहा।एकल परिवार में बच्चे और बुजुर्ग दोनों ही तन्हा हो गये। संयुक्त परिवार में अगर थोड़ी समस्या हैं तो ढेरों समाधान और सुरक्षा भी हैं। माता -पिता आपकी आजादी में रूकावट नहीं हैं.. आज जब पति -पत्नी दोनों वर्किंग हैं, बच्चे आया के भरोसे पल रहे, आया पर नहीं माँ -बाप पर भरोसा करिये, वे बच्चों को अच्छे संस्कार ही नहीं देंगे बल्कि चरित्र भी देंगे, बच्चे भी सुरक्षित रहेंगे और माँ -बाप भी…। इसलिये अवहेलना नहीं, सम्मान दें बुजुर्गो को…।मौके का फायदा उठाये जिससे अफ़सोस को जगह ना मिले.., क्योंकि जिंदगी मौके कम देती है,। माता -पिता को थोड़ा सा प्यार, मान -सम्मान और थोड़ी सी परवाह समर्पित करिये…, और उनकी दुआओं के साये में जिंदगी खुशनुमा बिताइये.., मत भूलिये समय का चक्र आपको भी वहीं ला खड़ा कर देगा, जहाँ आज आप अपने बुजुर्गो को खड़ा कर रहे..।

           .—-संगीता त्रिपाठी 

#समय चक्र

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