समय का पहिया – आरती झा

माँ.. मैं नहीं जाऊँगी ससुराल अब.. पहली बार विदाई के बाद ससुराल से आई सुहाना की जेठानी की बेटी मालिनी की बात सुनकर सब अवाक रह गए। जेठ जी तो कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे.. मानो वज्रपात हुआ हो उन पर। 

पर क्यूँ.. जेठानी ने ही पूछा। 

क्यूँ जाऊँ मैं.. वहाँ सब कुछ मेरी जेठानी से पूछ कर ही होता है.. यहाँ तक कि मेरे हनीमून के बारे में पूछने पर सुहास ने कहा भाभी को बुरा लग जाएगा.. हम कहीं नहीं जाएंगे… दिन रात कड़वे बोल के साथ मेरा मज़ाक बनाती रहती हैं और सब उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहते हैं.. जेठ जी उनकी बात काट दें.. मजाल ही नहीं है उनकी। पता नहीं मुझसे चिढ़ी रहती हैं.. कुछ समझ नहीं आता मुझे.. मैं नहीं जाऊँगी बस… मालिनी ने अपना फरमान सुना दिया। 

मालिनी की बात सुनकर सुहाना की आँखों के सामने चलचित्र की भाँति उसके विवाह से लेकर अब तक की सारी बातें घूमने लगी। 

सुहाना जब से शादी होकर इस घर में आई है..हो क्या रहा है यहाँ समझ नहीं रही थी । हर बात में सब सिर्फ उसकी जेठानी विभा की हाँ का इंतजार करते हैं। जेठानी को अपने पति के पद और पैसे का ऐसा घमंड था कि छोटे तो छोटे बड़ों को भी एक ऊँगली पर कड़वे बोल के साथ नचा रही थी। जेठ जी तो बस उनके मन का ही करते हैं.. फिर भी सुहाना से हमेशा खार खाए रहती हैं। सुहाना के आए तो चार दिन ही हुए थे और जब साथ होती हैं खुद का गुणगान और सबकी बुराई ही करती रहती थी। हर जगह और हर समय हर बात पर सुहाना को नीचा दिखाना उनका शगल ही हो गया था। यहाँ तक कि सुहाना का पति विनोद हर बात में भाभी बुरा मान जाएंगी बोल सुहाना के मन का कुछ भी करने से मना कर देता था। धीरे-धीरे सुहाना समझने लगी थी कि जेठानी के कड़वे बोल और उनकी अमीरी  के कारण ही सब उनके मन का करते हैं और खुश रखने की कोशिश करते हैं। समय के साथ सुहाना दो बच्चों की माँ बन गई.. सबके खासकर पति के इस व्यवहार से जब तब आहत होती रहती और धीरे धीरे इसे ही अपनी नियति मान बच्चों के साथ खुश रहने की कोशिश करने लगी। सुहाना कभी ये नहीं समझ सकी कि सबके द्वारा इतनी इज्जत मिलने के बाद भी विभा सबका जीना मुहाल क्यूँ किए रहती है .. आखिर लोगों को खुश क्यूँ नहीं देख पाती है .. औरत होकर औरत को ही खुश नहीं देख पाती.. तकलीफ में देख कैसे खुश हो जाती है … क्यूँ नहीं जियो और जीने दो सोचती है .. यही सब सोचती सुहाना को आज जेठानी की बेटी मालिनी की बात सुनकर समय का पहिया घूमता हुआ नजर आया और सुहाना की जेठानी का चूर चूर हुआ घमंड उसे आज सुहाना से आँखें मिलाने नहीं दे रहा था। बेटी की जिद्द के आगे उसके पति का पैसा और पद किसी काम का नहीं रह गया था और उसके कड़वे बोल के कारण विभा से किसी को कोई सहानुभूति नहीं रही थी। समय हर किसी के घमंड का नेस्तनाबूद कर हॅंसता हुआ प्रतीत होता है।

#घमंड

आरती झा आद्या

दिल्ली

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