ये समय चक्र है हमेशा एक सा नहीं रहता कभी किसी का पलड़ा भारी तो कभी किसी का। लक्ष्मी आंटी का बड़ा रूतबा था अपने घर पर , अपने बहुओं पर , रिश्तेदारों में , मुहल्ले पड़ोस में।हर समय बस वो अपनी अपनी ही कहती रहती है घर के बाहर थोड़ी देर को खड़ी हो जाए तो सारे मुहल्ले को पता लग जाता था कि लक्ष्मी आंटी खड़ी है ।एक तो तेज आवाज और उसपर लगातार बोलना उनकी आदत थी । कभी कभी उनसे लोग बच कर निकलने की कोशिश करते ।सबके बहू बेटियों पर कमेंट करना ,सबके कपड़ों और पहनावे पर कमेंट करना सबके रीति रिवाज रहने सहन पर उनको बहुत शिकायत थी । खुद तो चाहे जैसी रहती थी न साड़ी का होश रहता था न ब्लाउज का खुद के कपड़े तो अस्त व्यस्त रहते थे लेकिन दूसरों के लिए उनको बोलना है।
अपने बड़े बेटे की शादी कि तो बहुत सारे मंसूबे बना रखे थे हमारे यहां ऐसा नहीं होता वैसा नहीं होता । फिलहाल बहू पढ़ी लिखी इंजीनियर थी और आंटी का बेटा भी इंजीनियर था । शादी के बाद बेटा तो चला गया जहां सर्विस करता था लेकिन आंटी ने बहू को रोक लिया अभी वो नौकरी पर नहीं थी कि घर के रीति-रिवाज सिखायेंगे ।अब भला बताओ दूसरे शहर में रहकर नौकरी के साथ कौन इतना रीति रिवाज निभाता है जो जरूरी हुआ बस वही हो जाता है।
बहू को घूंघट में रहना है बाहर नहीं जाना है ,छत पर नहीं जाना है किसी के सामने खुले मुंह से नहीं जाना गाउन नहीं पहनोगी ,सूट नहीं पहनोगी वगैरह वगैरह। बहूं पढ़ी लिखी समझदार थी तो सबकुछ शांति से करती रही और कुछ जवाब भी नहीं देती थी ।एक दिन बाहर दूध वाला आया तो बहू दूध लेने चली गई तो आंटी ने कहा तूने तो हद कर दी सब लोग बाहर खड़े हैं और तुम दूध लेने चली गई वो मम्मी दूध वाला आवाज दे रहा था कोई था नहीं तो मैंने ले लिया ।बस बस आगे से ध्यान रखना।
आस पड़ोस में भी कोई महिला गाउन पहनकर उनके सामने आ जाए तो बुरा सा मुंह बनाकर बोलती ये क्या पहन रखा है ये सब पहनकर भाई साहब के सामने मत आया करो अच्छा नहीं लगता उनको भी अच्छा नहीं लगता और उनके पति देव को भी नहीं अच्छा लगता। किसी की पीठ खुली हो या बड़े गले का ब्लाउज पहना हो तो लक्ष्मी आंटी को सबसे पहले परेशानी होने लगती है। तुरंत बोलती हमारे घर में तो ऐसे कोई नहीं रह सकता मैं तो मैं तुम्हारे अंकल को भी पसंद नहीं है ये सब । फिलहाल,,,,,,,।
अब कुछ साल बाद आंटी के दूसरे बेटे की शादी हुई।और फिर दूसरी बहू ने तो आंटी की हवा निकाल दी। उसने तो शादी के दो दिन बाद से ही सर से पल्ला हटा दिया और बिना सर ढंकने ही घूमने लगी ।और लक्ष्मी आंटी कुछ कहती तो तपाक से जवाब दे देती। शादी के पंद्रह दिन बाद बहू सूट में आ गई और स्वच्छंद होकर इधर उधर छत बाजार सब जगह घूमने लगी । आंटी कुछ कहती तो वो सुनती ही नहीं।वो गाउन पहन कर सड़क से सब्जी भी खरीद आती। लक्ष्मी आंटी जब भी कुछ कहती वो तुरंत बोल पड़ती मम्मी मैं यै सब नहीं करूंगी ऐसे ही रहूंगी कौन करता है आजकल ये सब।
अब सब मुहल्ले में बोलने लगे दबी जुबान से अब क्या हो गया लक्ष्मी आंटी को सबको तो बहुत बोलती थी अब अपनी बहू को नहीं संभाल पा रही है ।
अब तो ऐसा हो गया कि आंटी की बोलती बंद हो गई ।बाहर खड़े होकर जो संस्कारों की दुहाई देती थी सब कहां चला गया।अब तो मारें शर्म के वो बाहर ही नहीं निकलती।ये समय-चक्र है सब बदलता रहता है कभी हमारा तो कभी किसी और का । ज्यादा अपनी अपनी नहीं चलानी चाहिए कब किससे आप मात खा जाओ पता नहीं।आप सबकुछ अपने घर परिवार तक सीमित रखो किसी दूसरे के रहने सहन रीति रिवाज को लेकर बोलने का किसी को हक नहीं होता।
अब तो ये हो गया है कि आंटी भी गाउन पहनकर बाहर तक घूम लेती है।एक दिन मैंने टोंक दिया क्या भाभी जी अब तो आप भी गाउन पहन कर घूम रही है तो बोली क्या करूं बड़ा आराम मिलता है । मैंने कहा हां भाभी जी सभी अपनी सुविधानुसार ही पहनते हैं हर एक को टोका टाकी करना अच्छी बात नहीं है ।ये तो समय का पहिया है कब कहां घूम जाए कोई नहीं जानता।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश