Moral stories in hindi : भगवान अच्छे लोगों की इतनी परीक्षा क्यों लेता है सुधाकर जी जैसे सीधे और सरल इंसान कैसे इतना बड़ा दुख सहन होगा? भगवान उन्हें दुख सहने की शक्ति दे। यही सब कहते हुए उनके बेटे की रस्म तेरहवीं मैं आए हुए सभी लोग विदा हो गए थे। केवल कुछ करीबी लोग ही सुधाकर जी के परिवार के पास रुके थे। छोटा सा परिवार था उनका। बेटी की शादी हो चुकी थी और बेटे की शादी को अभी तीन साल ही हुए थे।
उनका दो साल का पोता शुभ भी है। उनकी बहू नव्या भी संस्कारी और सुशील लड़की है। उसके आते ही जैसे घर में खुशियां बिखर गई थी। भगवान ने उन्हें सब कुछ तो दे दिया था। उनका बेटा एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था और उनकी बहू एमबीए करने के बाद भी जॉब नहीं करती थी
क्योंकि वह अपने बेटे शुभ के साथ उसका बचपन जीना चाहती थी घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। अभी 2 महीने पहले ही सुधाकर जी भी बैंक मैनेजर के पद से 2 महीने पहले ही रिटायर हुए थे और उन्होंने रिटायरमेंट की शानदार पार्टी भी दी थी। उस समय पार्टी में आमंत्रित सब लोगों ने उन्हें यही कहा था कि आपने नौकरी रहते ही अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी कर दी। अब आप बिल्कुल बेफिक्र हैं अब वंदना जी के साथ आप तीर्थ स्थान पर घुमिऐ।
ईश्वर की कृपा से आपका शरीर भी पूर्ण स्वस्थ है और पैसे की भी कोई कमी नहीं है। आपके दोनों बच्चों की शादी हो चुकी है और उनकी जिम्मेदारी पूरी करके आप अब चिंता मुक्त हो चुके हैं। जाने किसकी नजर लग गई थी परिवार को वंदना जी निढाल हुई बैठी थी और उनकी बहू का रो-रो कर बुरा हाल था।
परिवार को संतावना देकर धीरे-धीरे सब लोग जा चुके थे। समय भी धीरे-धीरे यूं ही बीत जाता है। वंदना जी और सुधाकर जी अब अपने पोते को संभालते थे और उनकी बहू ने एक कंपनी में नौकरी कर ली थी, लेकिन उन्हें अपनी बहू की बहुत चिंता रहती थी लाख समझाने पर भी वह अपने माता-पिता के पास नहीं गई और ना ही दूसरी शादी करने के लिए तैयार हो रही थी।
तभी एक दिन उनके अभिन्न मित्र दिवाकरजी उनके पास आकर अपने भतीजे के लिए उनकी बहू का हाथ मांगते हैं, और उसके बारे में बताते हुए कहते हैं कि सुबोध की भी 5 साल की एक लड़की है और उसकी पत्नी और माता-पिता की भी किसी शादी समारोह में से आते समय सड़क हादसे में मृत्यु हो गई थी।
उस दिन सुबोध अपनी बेटी के साथ अपने दोस्त की बहन की शादी में गया हुआ था। वो इस सदमें से पूरी तरह टूट चुका थाऔर केवल अपनी बेटी की अच्छी परवरिश की चिंता में ही रहता था।, सुधाकर जी और वंदना जी सुबोध को पहले से ही जानते थे, वे अपनी बहू को समझाते हैं कि कल को हम नहीं होंगे तो तुम्हें सहारे की जरूरत पड़ेगी और सुबोध की बेटी को भी मा मिल जाएगी। काफी समझाने बुझाने के बाद बेमन से ही उनकी बहू भी इस रिश्ते के लिए हां कर देती है।
कहते हैं “समय हर घाव को भर देता है” किसी की यादें मन से मिटाई तो नहीं जा सकती लेकिन धुंधली जरूर हो जाती है समय के साथ-साथ धीरे-धीरे सुबोध और नव्या भी अपनी गृहस्थी में रमने लगे थे। छोटे बच्चे आपस में जल्दी घुल मिल जाते हैं इसलिए बच्चों को भी कोई परेशानी नहीं हुई आज उनका सुखी परिवार है नव्या के सास ससुर भी उसी के साथ रहते हैं।
भगवान कठिन समय में किसी न किसी को सहारे के रूप में भेज ही देता है। सही कहते हैं लोग समय ही घाव देता है और समय ही मरहम बन जाता है। तभी तो कहते हैं।
वक्त की हर शै गुलाम वक्त का हर शै पर राज
कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज?
स्वरचित पूजा शर्मा।