Moral stories in hindi : आसमान में गरजते बादलों को देख गोमती समझ गई कि इंद्र देवता कभी भी अपनी कृपा बरसा सकते हैं तो उसने चंपा और जमुना को कहा कि वे जल्दी-जल्दी हाथ चलाकर फ़सलों की कटाई पूरी कर ले और खुद भी तेजी-से हंसिया चलाने लगी तभी उसने देखा कि उसका पड़ोसी मुरली उसकी तरफ़ ही दौड़े चले आ रहा था।हाँफ़ते हुए उसका हाथ पकड़कर बोला,” चाची..जल्दी घर चलो…किशन भैया को कुछ हो गया है।”
“किशन तो शहर गया था बीज लेने…फिर..।” सोचती हुई गोमती ने हंसिया खेत में फेंका और तेज़ कदमों से अपने घर दौड़ पड़ी।बीच आँगन में अपने जवान बेटे की लाश देखी तो वह पछाड़ खाकर गिर पड़ी।एक महिला ने उसके चेहरे पर पानी के छींटे डाले तो वह होश में आई और छाती पीटकर रोने लगी।पति के पास बैठी उसकी बहू भी अपना असमय माँग उजड़ने का मातम मना रही थी।वहाँ बैठी महिलाओं में से एक ने कहा,” ऐसा दुख भगवान किसी को न दे…पहले पति और अब बेटा…बहू ने तो अभी तक पति का सुख देखा भी न था..ये घाव तो कभी नहीं भर पायेगा…।”
” समय बहुत बलवान है बहिनी…वह हर घाव भर देता है।” दूसरी महिला बोली।
गोमती जब ब्याह करके इस घर में आई थी तो मुश्किल से बारह बरस की थी, ठीक से साड़ी भी संभाल नहीं पाती थी, सास-जेठानियों के बीच रहकर ही उसने सबकुछ सीखा था।समय के साथ वह दो बच्चों की माँ बन गई।बच्चे बड़े होने लगे तो परिवार के सदस्य एक-एक करके उसका साथ छोड़ते चले गये।पति रामकिशन अपनी पुश्तैनी ज़मीन पर खेती करते और वह घर संभालती।बेटा किशन बहुत होशियार था।उसने शहर जाकर कृषि विश्वविद्यालय से एग्रीकल्चर की पढ़ाई की और वापस अपने गाँव आकर खेती में अपने पिता का हाथ बँटाने लगा।उसने बेटी कृतिका को भी इंटर तक की शिक्षा दिलवाई और उसका ब्याह करके अपनी एक ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गई।
सबकुछ अच्छा चल रहा था कि एक दिन रामकिशन खेत से जल्दी लौट आये।पत्नी से बोले कि एक कप चाय बना दो…सिर बहुत भारी लग रहा है।गोमती चाय लेकर आई तो पति का हाथ ठंडा देखा।उनकी पथराई आँखों को देखकर वह समझ गई कि अब उसे अकेले ही परिवार को संभालना है।अब वह खुद भी खेत पर जाने लगी।
साल भर बाद उसने बेटे का ब्याह कर दिया।माँ-बेटे खेती करते और बहू घर संभालती।साल बीतते-बीतते बहू ने खुशखबरी सुनाई तो गोमती को लगा कि अब सब दुख दूर हो गये हैं।एक दिन किशन बीज-खाद लाने शहर की मंडी में गया हुआ था।वहाँ से लौटते वक्त उसकी मोटरसाइकिल एक ट्रक से टकरा गई और….।
गोमती ने अपने आँसू पोंछे और दोनों बाँहें फैलाकर बहू को हृदय-से लगा लिया।अब दोनों के दुख एक थें।वह अकेले दिन-भर खेतों में करती और घर पर बहू का भी ख्याल रखती।नौ माह बाद उसकी बहू ने एक चाँद जैसी बेटी को जनम दिया।
आस-पड़ोस वाले कहने लगे,” छोरा होता तो खेत संभालता, छोरी तो दूजे घर चली जावेगी..।” गोमती अंदर तक तिलमिला गई थी।तभी उसने फ़ैसला कर लिया कि अपनी पोती को खूब पढ़ायेगी और एक दिन इन्हीं लोगन के मुख से मेरी पोती के लिये वाह! शबद निकलेगा।
गोमती की पोती वंशिका स्कूल जाने लगी, वह पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद की प्रतियोगिता में भी ईनाम जीतती तो गोमती उसे काजल का टीका लगाकर बुरी नज़र से बचा लेती थी।छुट्टी के दिन वंशिका अपनी दादी के साथ खेतों पर जाती, मिट्टी के साथ खेलती और खेती करने के तरीकों को सीखती।उसे ऐसा करते देख गाँव के बच्चे उसे चिढ़ाते।उसने रोते हुए अपनी दादी से कहा तो गोमती बोली,” उनकी बातों पर कान न देना…खेतों में काम करते देख इन लोगों ने तो हमको भी बहुत परेशान किया था।”
फिर एक दिन वंशिका ने अपनी दादी से कह ही दिया,” मैं भी आपके और पापा की तरह एक किसान बनूँगी।” गोमती तो यही चाहती ही थी,बहू से बोली,” देख लेना बहू…तेरी बेटी हमारे सभी घावों को भर देगी।
बारहवीं का रिजल्ट आते ही वंशिका ने उसी काॅलेज़ में दाखिला लिया और बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई की जहाँ से उसके पिता ने डिग्री हासिल की थी।हालांकि वंशिका के लिये ये चार साल की पढ़ाई इतनी आसान न थी।एक साल बारिश कम होने से फ़सल बर्बाद हो गई थी।वंशिका के काॅलेज़ के फ़ीस में रुपये कम पड़ रहे थे तब गोमती ने अपने जेवर गिरवी रख दिये थे लेकिन पोती की पढ़ाई में रुकावट नहीं आने दिया।लोगों ने तो तब भी उसे ताने दिये थे।फिर वंशिका ने जब पूरे काॅलेज़ में टाॅप किया तब उन्हीं लोगों ने उसे अपने हाथों में उठा लिया था।
घर आकर वंशिका अपने खेतों पर अपनी शिक्षा का प्रयोग करने लगी।उसकी कद-काठी बिल्कुल अपने पिता की तरह थी।वह जब खेत में ट्रैकर चलाती तो गोमती अपनी बहू से कहती,” ई तो हमरा किसनवा है।” और तब वंशिका की माँ अपनी बेटी की बलैइयाँ लेते नहीं थकती। वंशिका की मेहनत रंग लाई।नयी तकनीकी का उपयोग करने से उसके खेतों का पैदावार दुगुना-तिगुना होने लगा।उसने कस्बे के अन्य किसानों को भी कृषि की नयी तकनीकी से अवगत कराया।
वंशिका की प्रसिद्धि आस-पास के गाँवों में भी होने लगी।एक दिन अखबार में खबर छपी कि गणतंत्र-दिवस पर वंशिका को ‘यंग महिला कृषक ‘ पुरस्कार से नवाज़ा जायेगा।साथ में उसकी फ़ोटो भी छपी थी।
खुशी के मारे गोमती और उसकी बहू के तो पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। किशन के असमय मृत्यु का जो दुख उनके मन में था, वंशिका ने अपने परिश्रम से उसे दूर कर दिया था।
कस्बे के स्कूल के वार्षिकोत्सव में वंशिका को विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया।लोगों ने खूब तालियाँ बजाई।सबने उसकी प्रशंसा के पुल बाँधे।उपस्थित अतिथियों की भीड़ में से एक ने कहा,” किसी ने सच ही कहा है कि समय हर घाव भर देता है।वंशिका बिटिया ने अपनी मेहनत और लगन से किशन की कमी को पूरा कर दिया है।”
विभा गुप्ता
# समय हर घाव भर देता है स्वरचित