Moral stories in hindi: ऑपरेशन थिएटर में हल्का होश आते ही मैंने डॉक्टर से पूछा, बेटा है या बेटी?
उन्होंने पूछा, आपको क्या चाहिए था?
“बेटी” मेरी लड़खड़ाती आवाज में ये सुन डॉक्टर और पूरा सहयोगी स्टाफ हँस पड़ा. क्या बात है! आप दोनों को ही बेटी चाहिए. मेरा मतलब आपको और आपके पति को. बाहर वो भी पागलों की तरह रो रहे हैं. कह रहे मेरी बेटी को जल्दी मेरी गोद में लाकर दो. जबकि मेरे पूरे डॉक्टरी के जीवनकाल में बेटी होने पर सबने मुंह बनाया है. बड़ी अजीब जोड़ी है आपकी, पर बहुत अनोखी और सुन्दर जोड़ी है. बेटी भी बहुत प्यारी है आपकी. लगता है ईश्वर बहुत मेहरबान हैं आप पर.
मेहरबान तो हैं सर, पर पूरे 13 साल के समर्पण के, इंतजार के बाद. बहुत लम्बी प्रतीक्षा करवाई है उन्होंने. इतना कह के मुझे दवा के प्रभाव से बेहोशी आ गयी. जब नींद खुली तो ये और बेटी एक-दूसरे को निहार रहे थे. इनकी आँखों में आंसू थे, ख़ुशी के, समर्पण के, संयम के. ऐसे ही बहुत देर मैं इन्हें देखती रही तभी झटके से वही निश्चेतना वाले डॉक्टर (एनेस्थेटिस्ट) हमारे कमरे में आये.
“सॉरी, सॉरी”. वैसे तो मेरा काम कबका ख़त्म हो गया था बस आपके होश में आने का इंतजार कर रहा था. अच्छा आज जा रहा हूँ. कल फिर आऊँगा, केवल आपकी कहानी सुन ने. आपके 13 साल का समर्पण देखने. फिर वो तुरंत निकल गए.
ये अचंभित से मेरी तरफ देख रहे थे और मैं सोच रही थी कि इतना व्यस्तता में डॉक्टर को मेरी कही गयी बात याद कैसे रह गयी. स्वयं मैं भूल गयी थी.
अगली सुबह डॉक्टर ने आते ही कहा, आशा करता हूँ आप ठीक हो. चाय बिस्किट ले लिया होगा. अब इतनी एनर्जी होगी कि मुझे अपनी कहानी सुना पाओ. सर, 13 वर्षों की बात है जल्दबाजी में नहीं सुना पाएंगे. और वैसे भी कुछ बहुत ऐसा नहीं है जो आप इतने मन से सुनना चाहते हैं. इट्स जस्ट ए सिंपल लव स्टोरी. नथिंग सो इंटरेस्टिंग.
इस कहानी को भी पढ़ें:
जो भी हो मुझे जानना है. दरअसल मैं एक लेखक भी हूँ. कुछ लिखने का मिर्च- मसाला ही मिल जाये शायद. फिर वो जोर से हँसने लगे. मज़ाक कर रहा हूँ. जो है, जैसा है, जितना है सुनाईये.
ठीक है, सुनाती हूँ. सर, हम दोनों अपनी नौकरी के दौरान एक-दूसरे से मिले और पहली ही मुलाक़ात में दोस्त बन गए. साथ काम करते एहसास हो गया था कि प्यार हो गया है पर, मैं जितना इनको समझ पायी थी, पता था ये कभी पहल नहीं करेंगे. फिर वो अंदाज फ़िल्म का गाना बार-बार याद आता था “कहीं न फिर देर हो जाये”. सचमुच कहीं देर न हो जाये तो मैंने ही पहल करने का सोचा और पहुँच गयी इनके केबिन. सोच के तो बहुत कुछ गयी थी ये कहूँगी, ऐसे कहूँगी पर इनको देखते ही बोलती बंद.
इनके टोकने पर केवल इतना कह पायी “वो कुछ कहना था”. पर, जैसा कि मैंने आपको बताया हम दोस्त बहुत अच्छे बन गए थे तो झट से इन्होने भांप लिया. फिर बोले, जानता हूँ क्या कहना है! मैं भी वही कहना चाहता हूँ, पर कहने से कुछ नहीं होगा. मैं उनमें से नहीं हूँ कि प्यार किसी और से करूँ और शादी किसी और से. तुम भी मेरे जैसी ही हो और बहुत भावुक भी.
किसी भी सूरत में मैं तुमको दुखी नहीं देखना चाहता हूँ. अच्छा चलो, करते हैं प्यार. पर, शादी घरवालों को मनाकर करेंगे, उनकी मर्जी के बिना नहीं. मना लेंगे उनको पर समय शायद बहुत लग जाये. एक प्रतिशत ऐसा भी हो सकता है कि वो न माने. फिर भी रहूंगा मैं तुम्हारा ही. तुम नहीं तो कोई नहीं. वादा रहा. तुम पर कोई दबाव नहीं है. जो उचित लगे करना.
चाहो तो अभी साथ चलो, बीच में साथ छोड़ सकती हो. तुम्हारा भी परिवार है, उनकी उम्मीदें हैं. फिर लड़कियों की शादी की सबको बड़ी फ़िक्र रहती है. अगर मैं नहीं मना पाया अपने घरवालों को तो तुम जैसा चाहो करना. अब कहो क्या कहना है.
मैंने कहा जो तुम कहो, करो, मैं साथ हूँ. साथ चलूंगी, साथ ही रहूंगी, हमेशा. तुम ही तुम हो, तुम ही रहोगे. बस रूठते-मनाते, हँसते-रोते हम लग गए अपने घरवालों को मनाने में. कभी कोई थोड़ा पसीजा हुआ लगता तो कभी कोई. पर बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी, अपने मनप्रीत के लिए,
अपने ही घरवालों से. आखिरकार 13 वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद सब मान गए और हम एक हो गए. पर सर, एक परीक्षा अभी और बाक़ी थी. मैं माँ बनी और मेरा गर्भपात हो गया. मेरी डॉक्टर ने बताया उम्र अधिक होने के कारण बच्चा ठहरना थोड़ा मुश्किल है. अभी तुम आराम से घर जाओ. कुछ दिन बाद आना तो हम कुछ टेस्ट करेंगे और आगे का प्लान करेंगे.
हम भारी क़दमों से घर आये और गले लग के खूब रोये. हमनें एक-दूसरे को पाने के लिए बहुत कुछ त्याग किया था, बहुत कुछ खोया था. पर, बच्चा तो चाहिए था. फिर सब ईश्वर की मर्जी पर छोड़ दिया और जीवन नियत ढर्रे पर चलने लगा. कुछ महीने बाद मैं फिर गर्भवती हुई और आज देखिये हमारी नन्ही-सी जान हमारी गोद में है.
इस कहानी को भी पढ़ें:
अब आप समझ सकते हैं कि हमनें कितनी प्रतीक्षा की है इस घड़ी की! जो किस्सा मैंने आपको 30 मिनट में सुना दिया उसको हमनें 13 वर्ष भुगता है. इतने वर्षों में अनगिनत उतार-चढ़ाव देखे, हँसे कम रोये ज्यादा, कभी घंटों बातें की कभी दिनों की ख़ामोशी झेली. पर जो भी किया अपने रिश्ते, अपने साथ के लिए किया. तो आप ही बताइये कि हुआ न ये समर्पण? दोनों का समर्पण?
उन्होंने सहमति में सिर हिलाकर कहा, समझ सकता हूँ. मेरा भी प्रेम-विवाह है. 3 वर्षों की हल्की नोक- झोंक के बाद हमारा विवाह हो गया. हम उतने में ही टूट गए थे. लगता था कहाँ फंस गए यार! पर आपने तो 13 वर्ष प्रतीक्षा की है. सच प्रेम और प्रेम में समर्पण हो तो आप दोनों जैसा. थैंक यू.
अपनी प्रेम कहानी बाँटने के लिए. अभी चलता हूँ, फिर आऊंगा अपनी पत्नी के साथ आपसे मिलवाने. बाय, बाय. उनके जाते ही ये मेरे पास आये, बेटी का चेहरा दिखाया और बोले, इसे कहते हैं सब्र का फल मीठा. देखो कितनी प्यारी बेटी है हमारी. थैंक यू, हमेशा मेरा साथ देने के लिए, मुझे इतनी सारी खुशियाँ देने के लिए. मैं भी तपाक से बोल पड़ी, सेम टू यू. फिर दोनों ही हँसने लगे. ( क्यूंकि जब भी मैं इन्हें आई लव यू कहती हूँ ये “सेम टू यू” ही कहते हैं).
स्वरचित
पूजा गीत