“समर्पण” – *नम्रता सरन “सोना”*

आज विदाई की वेला मे पाखी अपनी दोनों माँओं से लिपट कर फफककर रो रही थी…।दोनों माँओं ने उसे कलेजे से चिपका रखा था… ऐसा अद्भुत दृश्य था कि देखने वालों की आँखें भर आईं।

बाईस वर्ष पूर्व मेघा बहू बनकर इस घर में आई थी।चार भाईयों के इस परिवार में वह दूसरे नंबर की बहू थी।

बड़े भैय्या का विवाह हुए ग्यारह वर्ष बीत चुके थे… किंतु अभी तक वे निसंतान थे….कई इलाज करवाने के बावज़ूद भी बड़ी भाभी माँ नहीं बन सकीं थी।

मेघा और अनुज ने मिलकर ये फैसला लिया था कि उनकी प्रथम संतान वे बड़े भैय्या को सौंप देंगे…. और उन्होंने कर भी दिखाया…. पाख़ी का जन्म होते ही अनुज ने उसे बड़े भैय्या की गोद में रख दिया।

“अनुज…..एक बार फिर सोच ले….और मेघा…. मेघा पर क्या बीतेगी…. कभी सोचा तूने…”बड़े भैय्या ने अनुज से कहा।

“भैय्या ये मेरा और मेघा का साझा फ़ैसला है…. और फ़िर बिटिया घर ही में तो हैं न….आपकी बेटी , मेरी बेटी भी तो है न….” अनुज ने बड़े भैय्या को समझाते हुए कहा।

“भाई साहब… बधाई

हो आपको…”मेघा ने मुस्कुरा कर कहा।

बाबूजी ने भी सिर हिलाकर सहमति दे दी।और पाखी बड़े भैय्या और भाभी को विधिवत गोद दे दी गई।

डेढ़ वर्ष के बाद मेघा ने पीयूष को जन्म दिया।परिवार में खुशियां ही खुशियां भर गई।



अनुज के दोनो छोटे भाईयों का भी समय से विवाह हो गया और इधर ईश्वर की कृपा से पाखी के जन्म के दस वर्षों के बाद बड़ी भाभी भी गर्भवती हो गई और उन्होंने एक सुंदर से पुत्र को जन्म दिया…. किंतु पाखी अभी भी इस बात से अंजान ही थी कि वह दत्तक पुत्री है।

समय पंख लगाकर उड़ता रहा और पाखी विवाह योग्य हो गई।

“अनुज…मै चाहता हूँ कि विवाह के पूर्व पाखी को यह सच जान लेना चाहिए कि वह तुम्हारी बेटी है…. अब वह समझदार भी हो चुकी है…. अतः बात की गहराई को समझने में सक्षम है…”बड़े भैय्या ने अनुज से कहा।

“भैय्या… क्या ज़रूरत है… जो बात उसे आज तक नहीं पता …वो उसे अब क्यों बताएं..” अनुज ने पूछा।

“देख अनुज…. शादी से पूर्व पाखी के ससुराल वालों को सच्चाई बताना हमारा फ़र्ज़ है….और तब पाखी को पता चला तो वो ग़लत होगा…. उससे बेहतर है , हम उसे पहले ही बता दें…”बड़े भैय्या बोले।

अनुज ने हामी भर दी।

“पाखी….आज तुम्हें हम कुछ बताने वाले हैं…. और हमें पूरा विश्वास है कि तुम सकारात्मक प्रतिक्रिया दोगी….”बड़े भैय्या ने पाखी से कहा।

“जी पापा….कहिए…. क्या बात है…”पाखी ने गंभीरता से कहा।

“बेटे…..दरअसल तुम्हारे अनुज चाचू…. वास्तव में तुम्हारे पापा हैं…”हमारी संतान न होने के कारण, तुम्हारे जन्म लेते ही इन्होंने तुम्हें हमें गोद दे दिया था..”बड़े भैय्या एक साँस मे बोल गए।

पाखी स्तब्ध रह गई….. उसने नज़रें उठाकर देखा…. मम्मी, पापा, चाचू और चाची चारों की आँखें आँसुओं से लबालब थीं…. इतना प्यार…. इतना त्याग…. और इतना समर्पण….”मैं कितनी खुशनसीब हूँ….. मुझे आप जैसे मम्मी पापा मिले….मेरी एक माँ ने मुझे अथाह प्यार दिया… और एक माँ ने इतना बड़ा त्याग किया…. पापा…. चाचू…..”कहकर पाखी चारों से लिपट गई….. अश्कों का मानों सैलाब उमड़ पड़ा।

आज पाखी विदा हो रही थी…. दोनों माँ और दोनों पिता अपनी इस लाडली को डोली मे बिठा रहे थे।पाखी अपने संग ले जा रही थी… परिवार के प्रति समर्पण की बहुत सुंदर भावना…..।

*नम्रता सरन “सोना”*

भोपाल मध्यप्रदेश

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