रिचा ओ रिचा कहां हो,की गुहार लगाता रिषि जव घर में घुसा तो उसकी मां ने कहा, क्या बात है क्यों जान हलकान कर रहा है रिचा के लिए। और तू आज ऑफिस से जल्दी कैसे आ गया?तेरी तबियत तो ठीक है न?
नहीं मां मेरी तबियत एकदम ठीक है परन्तु रिचा कहीं दिखाई नही दे रहाी, क्या वो घर में नहीं है?
हां रिचा इस समय घर में नहीं है वो अपने मायके गई हुई है। क्या आज फिर से मायके,रिषि ने त्योरियों चढ़ाते हुए कहा।दो दिन पहले ही तो मायके गई थी।इतनी जल्दी मायके जाने की भला क्या तुक है।
अरे इसमें तुक की क्या बात हुई,दो दिन पहले गई थी उसके पापा का रूटीन हैल्थ चैकअप होना था,सो उनको लेकर हॉस्पिटल गई थी।
अब तू जानता तो है कि रिचा अपने मां-बाप की इकलौती बेटी है,फिर मां-बाप की उम्र भी बढ़ रही है आएदिन कुछ न कुछ हैल्थ प्रोब्लम चलती रहती है,वह तो विचारे जब तक कोई खास प्रोब्लम न हो कहां रिचा को खबर करते हैं।वे भी जानते हैं कि यहां भी रिचा ही इकलौती है घर सम्हालने वाली।
वो तो आज बाथरूम जाते समय रिचा की मां का पैर स्लिप कर गया वो एकदम से गिर पड़ी,उसके पापा यह देखकर घबरा गए ,सो रिचा को फोन कर दिया।इसमें गलत क्या है बड़ी उमर में इस तरह की घबराहट हो ही जाती है।
और फिर रिचा हमारी बहू है कोई जर खरीद गुलाम थोड़े ही है जो जरूरत पड़ने पर कहीं आजा न सके।
मां की पीड़ा बेटी के लिए क्या होती है यह भला मुझसे अधिक कौन समझेगा।मैं नही चाहती,#जो मेरे साथ हुआ बह रिचा के साथ भी हो।
अच्छा तू बता,आज जल्दी कैसे आया।
अरे मां आज ऑफिस में कोई इतना काम नही था,सो मैने सोचा आज जल्दी घर जाकर रिचा के साथ कोई अच्छी सी मूबी देख आता हूं।बॉस को बोला कि सिर कुछ भारी सा लग रहा है,सो बॉस ने भी तुरंत कह दिया कि अच्छा जाओ घर जाकर आराम करो।
यू,नॉटी वॉय,मूबी के लिए बॉस से झूठ बोला।हां मां बॉस मेरे बॉस सच में काफी काइंड दिल के हैं कभी किसी का दुख दर्द सुन कर तुरंत उनका दिल पिघल जाता है।
हो सकता है कि तेरे बॉस के साथ पहले कभी ऐसा हादसा होचुका हो जो अब उनको कठोर नहीं होने देता हो। क्योंकि ऐसा तो कोई भुक्तभोगी ही समझ सकता है।
जैसा कि तू हर समय बोलता रहता है कि रिचा को हर समय मायके जाने की इजाजत क्यों देदेती हो।बेटा तू नहीं समझेगा यह सब।मैं यह सब भुगत चुकी हूं , इसीलिए रिचा को उसके मायके जाने से नहीं रोकती।और फिर रिचा अपने सारे काम तो पूरी निष्ठा से निभाती है ,चाहे काम यहां का काम हो या मायके का,फिर अनावश्यक रोका टोकी करके अपना सम्मान कम करने की क्या जरूरत है।
क्या आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हो चुका है, प्लीज़ मां बताओ न मुझे,मैं आपकी कहानी सुनना चाहता हूं।अब रिचा के विना मूबी जाने का तो मूड रहा नही तो आपकी कहानी सुनकर ही मन बहलाने की कोशिश करता हूं
यह जो मैं तुझे बताने जारही हूं कोई कहानी नहीं है बरन मेरी आप बीती है।सुनकर तेरे भी रोंगटे खडे हो जायगे। जिसमें आज तक भी उस हादसे की टीस जब तव उठही जाती है।हे भगवान ऐसी जल्लाद सास किसी को न मिले जिसके पास हिटलर जैसा दिलहो।
पर दादी तो मुझे बहुत प्यार करती थी फिर जल्लाद कैसे होगगई।हां अपने नाती पोतों पर तो जान निछावर करती थी, क्योंकि मूल से अधिक सूद जो प्यारा होता है।दुशमन तो हम बहुओं के लिऐ थी,ऐसे ऐसे फरमान सुनातीरहती थीं किमजाल है कोईमना कर सके उनके हुकुम पालन को।
पहेलियां क्यों बुझा रही हो,बताभी दो न अपनी आपबीती, शायद मैं भी कुछ सीख सकूं।
हां तो सुन,बात करीब चालीस साल पुरानी है उस समय अधिकर सासें ऐसी ही हुआ करती थी जो बहुओं को अपने पांव की जूती से अधिक कुछ समझती ही नही थीं। बस सारा दिन बंधुआ मजदूर की तरह घर के काम में जुटे रहे,जब घर के पुरुष खाना खालें फिर जो बच जाय बस उसी को खाकर संतोष करो। छोटी उम्र में व्याह दी जाती थी बेटियां तभी तो ससुराल वाले अपनी उंगलियों पर नचाते थे।मूक पशुओं की तरह उनका कहना मानना पड़ता था।
तो क्या पापा भी उनके सामने कुछ गलत होते कुछ नही कहते थे,ये लो जब उनके सामने तुम्हारे दादाजी की ही आबाज नही निकलती थी तो तुम्हारे पापा की क्या ओकात थी जो उनके सामने मुंह खोल सकते।
पूरी हिटलर थी तुम्हारी दादी,मेरा मायका भी रिचा की तरह लोकल ही था।शायद मेरे मां बाप यही सोचकर खुश थे कि जब तव बेटी से मिल लिया करेंगे। बैसे तो तुम्हारे दो मामा भी थे उनकी देखरेख करने के लिऐ। समयानुसार उन दोनों की नौकरी मुंबई में लग गई,और इधर मां बाबूजी की उम्र भी बढ़ने लगी,बढ़ती उम्र की समसयाऐं भीआने लगी, मेरे भाई बारी बारी से महीने में एक एक चक्कर लगालेतेउनकी देखरेख के लिए। फिर वे दोनों यह सोचकर भी निश्चित हो जाते कि मैं तो हूं ही इसी शहर में कुछ ऊंच नीच होगी तो मैं सम्हाल लूंगी।
उस समय आज की तरह मॉबाइल फोनतो होते नहीं थे जो अपने घर वालों से बातचीत करके उनकी कुशलता का पताकरलो।हां घर में एक लैंडलाइन फोन जरूर था,जो कि बजने पर सिर्फ तुम्हारी दादी ही
उठाती थी।जरूरत समझतीतो बतादेती कि किसका फोन था,नही उनसे पूछने की तो हिम्मत ही नहीं होती थी कि क्या मेरे मां के घर से तोफोन नहीं आया था।?
पूछने का मतलब शेर के मुंह में हाथ डाल ना।सारा दिन को उनका लैक्चर चालू हो जाता,काम में तो मन नहीं लगता फोन की तरफ ध्यान लगा रहता है।खाना यहां खाती हैं और और ध्यान मायके का करती रहती हैं।
एक बार तुम्हारी नानी की तबियत खराब हो गई मुंबई से दोनों भाई पहुंच गये तबियत केबारे में
सुन कर,जब तुम्हारे मामा ने मुझे फोन करके बताने की कोशिश की तो आदतनफोन तुम्हारी दादी ने उठाया और कह दिया कि बड़ी उमरमेंऐसी तबियत तो नरम गर्म चलती ही रहती है,मायका लोकल है तो इसका मतलब ये तो नहीं कि हर छोटी बड़ी बात पर मायके के चक्कर लगाती रहो ।यहां के लिऐ भी तो ड्यूटी बनती है , तुम्हारी बहन की।
मां की तबियत अधिक बिगड़ने लगी और मां ने मुझे देखने की इच्छा जाहिर की तो फिर। े फोन आया भाई का कि मां अपनी बेटीकोदेखनेको तड़प रहीं है, प्लीज़ मेरी बहन से बात करता दीजिए।
नही तुम्हारी मां तड़पें या मरे मुझे कुछ लेना देना नहीं है। हमारे घर आज कुछ खास मेहमान आने वाले हैं वह उन लोगों के लिए भोजन बनाने में व्यस्त है,अभी नहीआसकती फोन पर।
जानते हो फोन सुनकर सारा दिन बड़बड़ाती रही कि इसीलिए लोकल ससुराल ढूंढ ते हैं लोग कि जब चाहे तब बेटी को अपने पास बुला लो।बहाने बना कर खराब तबियत का हवाला देकर।
जानते हो बेटा मेरी मां यानी तुम्हारी नानी नानी मुझे देखने व मिलने की इच्छा रखते हुए इस संसार से रुखसत कर गई।मेरा मन खाना बनाने में भी नही लग पा रहा था मन में अजीब। से ख्याल आरहे थे कि जैसे कोई अनहोनी होने बाली हो। पर कहती तो किससे उस पत्थर दिल औरत से तो कुछ कहने का कोई मतलब ही नही था। कभी सोचती हूं तो लगता है कि पता नही कोई औरत होकर किसी दूसरी औरत के मन की पीड़ा क्यों नही समझ पाती।
हमारे पड़ोसी अंकल का बेटा मुझे लेने आया और सारी स्थिति से सासूमां को अबगत कराया,तब कहीं जाकर मैं मायके जापाई।जाते समय इतना कहा कि अपने कुछेक कपड़े रख लेना शायद तुम्हें वहां रुकना पडे,कुछ दिन सुन कर मन शंका से भर गया,कहां तो मायके जाने नहीं देती थी,और आज वहां रूकने की इजाजत देरही हैं।जरूर कुछ तो गडबड है,भला ये पत्थर दिल औरत कैसे पिघल सकती है।
अपनी मां के जाने की बात सुन कर मेरे तो आंसू थम ही नही रहे थे,रोती कलपती मायके पहुंची तो जरूर, परंतु मां को जीते जी नही मिल पाई।इसबातकी टीस अभी भी मेरे मन को व्यथित कर देती है।
बस इसीलिए मैं रिचा को उसके मां पापा के घर जाने पर कोई पाबंदी नहीं लगाती।बढ़ती उम्र में मां बाप अपने ही बच्चों को देखने के लिए तरस जाते हैं।इस बात को मुझसे अधिक कौन समझेगा।मैं नही चाहती कि जो मेरे साथ हुआ बह मेरी रिचा के साथ भी हो।
जमाना बहुत बदल चुका है,न तो पहले जैसी सासें रह गई है और न पहले जैसी बहुऐं ।जो सास को ब्लाइंड ही फोलो करें।आज हरेक के पास मॉबाइल है ऐसा कुछ होने पर बहुऐयह कहकर तुरंत निकल लेती है कि मैं मायके जारही हूं,अपनी बीमार मां का हाल जानने के लिए।इसमें कुछ गलत भी नहीं है।बदलते परिवर्तन को स्वीकार कर ने में ही सबकी भलाई होती है ।न कि अपने पद के अंहम के लिऐ दूसरों की पीड़ा को नजरअंदाज करना। जैसा मेरी सास ने किया।
स्वरचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता
#जो मेरे साथ हुआ वह इसके साथ न हो