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पिछले अंक ( 06 ) का अन्तिम पैराग्राफ •••••
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” मैं यह सब कुछ नहीं जानता लेकिन खतरनाक अभियान जैसे मुठभेड़, छापा मारने के लिये जाते समय तुम मुझे मैसेज कर देना। अपने प्यार के लिये क्या इतना नहीं कर सकती? तुम्हारा मैसेज पढकर भी न तो मैं तुम्हें फोन करूॅगा और न ही कोई उत्तर दूॅगा लेकिन ईश्वर से तुम्हारी सफलता और कुशलता की प्रार्थना तो कर ही सकता हूॅ। मुझसे यह अधिकार मत छीनो।”
समाधि निरुत्तर हो गई और उसने एकलव्य की बात मान ली।
अब आगे ••••••••
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समाधि अपनी टीम के साथ जब भी सरफरोश गिरोह के सदस्यों को पकड़ने के लिये छापे डालती हमेशा असफलता ही मिलती। वे सभी उनके पहुंचने के पहले ही वहॉ से भाग जाते। समाधि बहुत परेशान थी – ” ओम, समझ में नहीं आता कि क्या करूॅ? मेरी क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है। मुझे अपने अधिकारियों और मीडिया को जवाब देना पड़ता है। आखिर हर बार पुलिस के छापा डालने की खबर उन तक पहुॅच कैसे जाती है, मैं यही सोंच सोंचकर परेशान हूॅ।”
” हर बार असफल होने का अर्थ है कि वो लोग तुम लोगों से ज्यादा चालाक और सतर्क हैं।”
” लगता तो यही है।”
तमाम बार की असफलताओं से आहत होकर समाधि ने कुछ निर्णय लिया। इस बार जब उसे सरफरोश गिरोह के दो सदस्यों के एक स्थान पर होने के बारे में पता चला तो उसने बिना किसी को बताये , बिना वर्दी के अकेले ही जाने का निश्चय किया। जानती थी कि दो व्यक्तियों पर तो वह नियंत्रण कर ही लेगी। पुलिस की ट्रेनिंग के अलावा वह जूडो कराटे भी अच्छी तरह जानती थी।
उसने अपने कपड़ों के अन्दर, जूतों और मोजों में कुछ हथियार छुपाये और उस स्थान पर अपनी मोटरसाइकिल से पहुॅच गई। उसे मालूम था कि ऐसा करके वह अपने प्राणों को संकट में डाल रही है लेकिन अपने कर्तव्य के लिये जान हथेली पर रखने की नौकरी तो उसने खुद चुनी थी। उसने अपनी टीम, जूनियर इंस्पेक्टर शशांक को कुछ नहीं बताया केवल एकलव्य को संदेश भेज दिया। आज वह ” करो या मरो” वाली स्थिति में आ गई लेकिन वहॉ पहुॅचकर वह अवाक रह गई। अपराधी उसके पहुॅचने के पहले जा चुके थे। वह स्थान उसे खाली मिला।
हताशा के कारण समाधि की ऑखों में ऑसू आ गये। इस बार अपनी सफलता पर उसे शत प्रतिशत विश्वास था। उसने सोंच लिया था कि इस बार उन अपराधियों को जिन्दा या मुर्दा अवश्य पकड़ लेगी। कुछ तो ऐसा अवश्य होगा कि वह अपने अधिकारियों को उत्तर देने योग्य हो जायेगी।
अब समाधि यह सोचने के लिये विवश हो गई कि आखिर अपराधी तक सूचना पहुॅची कैसे? इस बार तो कोई जानता ही नहीं था कि वह छापा मारने जा रही है। उसने तो केवल एकलव्य को मैसेज भेजा था इस सम्बन्ध में। तो क्या कोई उसके और ओम के फोन रिकार्ड कर रहा है? या ओम स्वयं ही। इसके आगे वह सोंचना भी नहीं चाहती थी क्योंकि उसे अपने ओम पर अटूट विश्वास था।
जो बात वह सोचना नहीं चाहती थी, वही ख्याल बार बार उसके मस्तिष्क को परेशान कर रहा था। वह ओम पर शक नहीं करना चाहती थी लेकिन शक करना पुलिस वालों को घुट्टी में पिला दिया जाता है। ट्रेनिंग में ही उन्हें अपने शरीर के रोये पर भी अविश्वास करना सिखा दिया जाता है। इसलिये उसी समय उसने निश्चय कर लिया कि अब वह फोन पर अपने विभाग की कोई भी सच्ची बात ओम को नहीं बतायेगी।
एक दिन उसके विभाग को सूचना मिली कि सरफरोश गिरोह के कुछ सदस्य हाई वे से थोड़ी सी दूरी पर स्थित एक ढाबे के कमरे में मीटिंग कर रहे हैं। समाधि और उसका पूरा ग्रुप सक्रिय हो गया। समाधि और शशांक के अतिरिक्त टीम के किसी भी सदस्य को पता नहीं था कि उन सबको कहॉ जाना है।
वहॉ पहुंचकर पुलिस जीपें ढाबे से थोड़ी दूर खड़ी कर दी गईं और पैदल ही पूरी टीम ढाबे की ओर पूरी सतर्कता से चल दी। इस बीच में पुलिस टीम ने ढाबे को चारो ओर से घेर लिया। पुलिस के सामने सबसे बड़ी समस्या थी, वहॉ खाना खा रहे लोगों की सुरक्षा की।
इसलिये पुलिस टीम के कुछ लोग ग्राहक के रूप में ढाबे पर गये। इतने सारे ग्राहकों को देखकर ढाबे का मालिक बहुत खुश हुआ। वह खुद उठकर शशांक और समाधि के पास आया। शशांक अपने स्थान से उठे और ढाबा मालिक के कंधे पर हाथ रख दिया। यह देखकर ढाबा संचालक घबरा गया। शशांक ने एकान्त में ले जाकर उसे जब अपना परिचय पत्र दिखाया तो डर के कारण उसने सारी सच्चाई बता दी।
ढाबे के संचालक ने बताया कि कुल पॉच अपराधी कमरे में हैं। उसने किसी का चेहरा नहीं देखा है, केवल ऑखें देखी हैं क्योंकि सभी काले कपड़ों में सिर से पैर तक ढके हुये हैं। सबके हाथ में आधुनिक हथियार थे इसीलिये डर के कारण वह कुछ बोल नहीं पाया क्योंकि प्राणों के भय से अपराधियों का विरोध करने का वह साहस नहीं कर सकता था।
उसने यह भी बताया कि काले कपड़ों में ढके ये अपराधी पहले भी कई बार उसके ढाबे में ऐसे ही बैठकर उस स्टोर में मीटिंग कर चुके हैं और जाते समय यह धमकी देकर जाते हैं कि यदि उसने पुलिस या किसी को कुछ बताया तो उसके पूरे परिवार को जान से मार देंगे और उसकी बारह साल की बेटी के साथ पूरे गिरोह के लोग बलात्कार करेंगे।”
ढाबा संचालक की ऑखों में ऑसू आ गये उसने शशांक के हाथ जोड़ते हुये कहा – ” हम लोग क्या करें? उन लोगों की बात मानने के सिवा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है।”
इसके बाद सबसे पहले बिना किसी प्रकार का शोर या हंगामा के अपना परिचय पत्र दिखाकर ढाबे के मालिक और वहॉ के कर्मचारियों को एक एक करके लाकर बाहर खड़ी जीपों में बिठा लिया। चूॅकि सभी लोग सामान्य कपड़ों में थे। ऐसा लग रहा था कि किसी कॉलेज के बच्चे हैं सब। इसलिये खाना खा रहे किसी को भी कोई संदेह नहीं हुआ।
अब पुलिस ने धीरे धीरे पहले वहॉ पर खाना खा रहे लोगों को हटाना प्रारम्भ किया। सब काम बहुत गुपचुप तरीके से हुआ। सुचारु रूप से पूरा ढाबा खाली करवा लिया गया ताकि मुठभेड़ के समय कोई आहत न हो।
इसके बाद पुलिस टीम ढाबे के मालिक के बताये अनुसार धीरे धीरे ढाबे के पीछे बने स्टोर नुमा उस छोटे से कमरे की ओर बढ गये जहॉ सभी अपराधी निश्चिन्त होकर बातों में मशगूल थे। पिछली सभी सफल मीटिंगों के कारण वे सब सोंच भी नहीं सकते थे कि इस गन्दे छोटे से ढाबे के बारे में भी किसी को संदेह हो सकता है और पुलिस यहॉ तक पहुॅच सकेगी।
बाकी अगले अंक में •••••••
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर