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पिछले अंक ( 04 ) का अन्तिम पैराग्राफ ••••••
एकलव्य ने समाधि का चेहरा दोनों हथेलियों में भर लिया और अपने अधर उसकी बन्द पलकों पर रख दिये। दोनों की सॉसें एक दूसरे के दिलों के भीतर समाने लगीं। शब्द तो मौन थे लेकिन धड़कनों का शोर बढता जा रहा था।
अब आगे •••••
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लौटते समय दोनों जैसे मोटरसाइकिल पर नहीं बादलों पर सवार थे। एक अजीब सी मदहोशी दोनों पर छा गई।
अब अक्सर एकलव्य की मोटरसाइकिल रास्ता भटककर समाधि के कालेज के बाहर खड़ी मिलने लगी।
समाधि और एकलव्य इस भ्रम में थे कि घर में उनके प्यार के बारे में कोई कुछ नहीं जानता है और वे अपने प्यार को अभी दुनिया की नजर से छुपाकर गुप्त ही रखना चाहते थे। उन दोनों का विचार था कि जब वे अपनी अपनी शिक्षा पूरी होने के बाद जीवन में कुछ बन जायेंगे तभी घर में बात करेंगे और सबका आशीर्वाद लेंगे।
जबकि एक दिन रत्ना ने उनके व्यवहार में आया परिवर्तन लक्ष्य कर लिया और मौली से हॅसते हुये कहा – ” मौली मैंने देखा है कि इन जन्मजात दुश्मनों के चेहरों की रंगत इन दिनों कुछ अधिक बढ गई है। कुछ तो खिचड़ी पक रही है इनके बीच में। मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम मेरी वर्षों की पली पलाई बेटी हथियाने के चक्कर में हो।”
” ऐं..…. सचमुच। तभी मैं कहूॅ कि सोने में कुम्भकरण को मात देने वाला यह लड़का रात देर तक किससे बातें करता है?”
फिर दोनों जोर जोर से हॅसने लगीं। हॅसते हॅसते ही रत्ना ने एक दस रुपए के नोट के साथ एक रुपये का सिक्का मौली के हाथ में रखकर गले से लगा लिया -” मुबारक हो समधन। यह लो सगुन।”
मौली और रत्ना ने चुपके से यह बात अनन्त और गिरीश को बता दी, दोनों खुश तो बहुत हुये लेकिन साथ ही पत्नियों को कुछ भी जाहिर करने से मना कर दिया – ” इतनी आसानी से हमें इनका प्यार स्वीकार नहीं करना है पहले इन शैतानों को अस्वीकृति का नाटक करके खूब परेशान करेंगे।”
स्नातक करने के बाद एकलव्य एल०एल०बी० करने के लिये दिल्ली चला गया।
स्नातक करने के साथ ही समाधि पुलिस सब इंस्पेक्टर बनने के लिये पूरी मेहनत से तैयारी में लगी थी। शारीरिक व्यायाम, कई किलोमीटर तक रोज दौड़ना, लिखित परीक्षा – सभी के लिये वह अपने आप को तैयार करती जा रही थी जिससे प्रथम प्रयास में ही वह सफल हो सके।
एकलव्य कहता – ” कोई लड़कियों लायक काम सोंचो। इतने सुन्दर शरीर का सत्यानाश क्यों कर रही हो? “
” तुम तो जानते हो कि बचपन से ही वैसे तो आई०पी०एस० अधिकारी बनना मेरा सपना था लेकिन पहले मैं पुलिस सब इंस्पेक्टर की परीक्षा देकर शुरुआत कर रही हूॅ। पापा के रिटायर होने के पहले मेरे पास एक नौकरी तो होनी ही चाहिये जिससे मैं आवश्यकता पड़ने पर अपने मम्मी पापा की सहायता कर सकूॅ।”
” कितना आगे तक सोंचती हो तुम जबकि रिटायर होने के बाद भी अंकल को पेंशन और बहुत कुछ मिल जायेगा जिससे कोई परेशानी नहीं होगी।”
” हॉ, तुम्हारी बात सही है लेकिन पापा मम्मी को अपने भविष्य के प्रति निश्चिन्त करना भी तो मेरा ही धर्म है। मेरा बस चलता तो मैं एन०डी०ए०की परीक्षा देकर लेफ्टीनेंट , कर्नल और ब्रिगेडियर बनती और अपने देश की सेवा करती लेकिन जानती हूॅ कि पापा – मम्मी इसकी अनुमति नहीं देंगे।”
” मैं भी अनुमति नहीं दूॅगा। ” फिर वह शरारत से मुस्कुरा दिया – ” मुझसे शादी कर लो। अंकल आंटी तुम्हारे प्रति पूरी तरह से निश्चिन्त हो जायेंगे।”
” अभी तो उन लोगों को अपने प्यार के बारे में पता ही नहीं है। पहले हम दोनों कुछ बन जायें, तब सोचेंगे।”
” शादी कर लो फिर हम और कुछ बनें या न बनें लेकिन मम्मी -पापा जरूर बन जायेंगे।”
समाधि शरमाते हुये हॅस पड़ी – ” तुम्हारे शेखचिल्ली के सपने फिर शुरू हो गये।”
” सच कह रहा हूॅ मैं तो चाहता हूॅ कि तुम कैरियर के लिये कोई दूसरा मार्ग चुन लो। इस जोखिम वाले कैरियर में हर समय मुझे तुम्हारी चिन्ता लगी रहती है। पैसे की चिन्ता मत करो, मैं इतना पैसा कमाऊॅगा कि तुम्हें कभी कोई कमी नहीं होगी।”
” पैसे की कोई बात नहीं है, मुझे अधिक नहीं चाहिये। अपनी नौकरी में ही इतना मिल जायेगा कि आराम से सब हो जायेगा लेकिन मुझे ऐसा जोखिम वाला कैरियर ही पसंद है। जिन्दगी का तो नाम ही जोखिम है। मृत्यु तो अपने समय पर आयेगी ही लेकिन शहीद होना तो गौरव की बात है। आखिरी सॉस तक अपने देश के लिये लड़ने का जज्बा, तिरंगे में लिपटी अपनी काया, हर देशवासियों के नेत्रों में ऑसू, बन्दूकों द्वारा दी जाने वाली सलामी – किसी सौभाग्यशाली के ही भाग्य में होता है। “
एकलव्य उसे प्यार से अपने से लिपटा लेता – ” नहीं सिम्मी, ऐसे सपने मत देखो। मेरे साथ जिन्दगी के सपने देखो। भविष्य के रंगीन सपने हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
” तुम्हारा प्यार साथ है तो मुझे कभी कुछ नहीं होगा। अब मैं हमेशा के लिये तुम्हारी हूॅ। अपने प्यार को मेरी कमजोरी मत बनाओ। यह मेरा सपना नहीं बल्कि मेरा जुनून है। मैं तो चाहूॅगी कि तुम भी यही मार्ग चुनो। हम दोनों अपने देश की सेवा करेंगे।”
” फिर बच्चे कौन पालेगा?”
समाधि हॅस पड़ी – ” जनाब ख्याली पुलाव मत खाइये। अभी मंजिल बहुत दूर है। वैसे बच्चों का बहाना मत बनाओ, बच्चों को नाना – नानी, दादा – दादी आपसे अच्छी तरह पालेंगे।”
” नहीं, यह दिन रात की कठिन नौकरी मुझसे नहीं हो पायेगी। मुझे बहुत ऐश की जिन्दगी पसंद है। मुझे बहुत पैसा कमाना है – तुम्हारे लिये, अपने होने वाले बच्चों के लिये। बेहद शान शौकत की जिन्दगी जीना चाहता हूॅ मैं।”
” वैसे एक बात बताऊॅ।” समाधि शरारत से मुस्कुरा रही थी – ” तुम और तुम्हारे शेखचिल्ली जैसे सपने अब भी वैसे ही हैं जैसे बचपन में थे।” समाधि हॅस देती।
” ओ… सिम्मी।” एकलव्य उसे अपने से लिपटा लेता।”
” मेरी टांग खींचने का कोई अवसर जाने नहीं देती।
प्रेम में आकण्ठ डूबी समाधि की जी जान लगाकर की गई मेहनत का सुखद परिणाम आया और उसका चयन सब इंस्पेक्टर पद पर हो गया। समाधि ट्रेनिंग के लिये चली गई। अब दोनों बच्चे घर से जा चुके थे। समाधि और सभी घर वालों ने अनुभव किया कि दिल्ली जाकर शुरू में तो एकलव्य ठीक रहा। जल्दी जल्दी घर भी आता था और लगातार सबसे फोन पर भी बात करता था लेकिन धीरे धीरे उसके फोन आने भी कम हो गये और उसने घर आना भी कम कर दिया। जब भी अनन्त और मौली पूॅछते , वह पढाई का बहाना बना देता।
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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर