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पिछले अंक ( 13 ) का अन्तिम पैराग्राफ ••••••
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सभी को मौली का यह सुझाव पसंद आया। मौली सिसकने लगी – ” कितना अरमान था कि इस घर से तुम्हें बेटी के रूप में विदा करूॅ और उस घर में बहू के रूप में स्वागत करूॅ लेकिन पता नहीं किसकी नजर लग गई कि सब बरबाद हो गया। पता नहीं कहॉ चला गया ओम? कब आयेगा, आयेगा भी या नहीं इसलिये अब दो घरों की कोई आवश्यकता नहीं है। हम सब साथ रहेंगे और साथ रहकर ओम के लौटने की प्रतीक्षा करेंगे।”
अब आगे ••••••••
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बेरहम समय अपनी गति से बीतने लगा। उसे किसी के दुःख – सुख से क्या लेना देना? एकलव्य का कोई पता न चलना था और न चला। कैसे चलता, एकलव्य तो अनन्त यात्रा पर जा चुका था।
समाधि ने प्रयत्न करके अमरेन्द्र की पेंशन उसके पिता को दिला दी हालांकि सरकारी नियम के अनुसार पेंशन अमरेन्द्र के बेटे को मिलती लेकिन समाधि ने उसके दादा के लिये बच्चे की संरक्षता का प्रमाण पत्र बनवा दिया जिससे बच्चे के वयस्क होने तक उन्हें पेंशन मिलने लगी। अमरेन्द्र का बेटा अब समाधि का बेटा बन गया था क्योंकि वे दोनों वृद्ध बच्चे की परवरिश नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने खुशी खुशी बच्चे को समाधि को दे दिया। कभी कभी समाधि बच्चे को उनसे मिलाने ले जाती थी।
अमरेन्द्र के पिता को मिलने वाली पेंशन में पड़ने वाली कानूनी अड़चनों के कारण अमरेन्द्र के माता-पिता की मृत्यु के बाद ही समाधि ने बच्चे को कानूनी रूप से गोद लिया।
सभी एकलव्य को भूल तो नहीं पाये लेकिन घर में गूॅजने वाली बच्चे की किलकारियों और शरारतों से एक बार फिर हंसने मुस्कराने लगे। बच्चे का नाम समाधि ने ” अस्तित्व ” रखा।
समाधि ने पुलिस की नौकरी छोड़कर बैंकिंग सेक्टर में नौकरी कर ली। सबके बहुत कहने पर उसने शादी के लिये हामी नहीं भरी – ” सिम्मी, अब तुम भी किसी को जीवन में स्थान देकर आगे बढ़ो। चाहो तो शशांक को ही •••••।” मौली के सामने ही रत्ना ने कहा।
” वैसे हम लोगों को शशांक बहुत पसंद है। इतने दिनों से तुम लोग एक दूसरे को जानते भी हो।” मौली ने रत्ना की बात का समर्थन किया।
” शशांक मेरे बहुत अच्छे सहकर्मी थे और अब बहुत अच्छे दोस्त हैं। रही आगे बढ़ने की बात तो मैं आगे ही बढ रही हूॅ लेकिन ओम के सिवा अब जिन्दगी में कोई नहीं आयेगा।मैंने मन से ओम को अपनाया था। जब तक ओम हृदय से निकल नहीं जाते, दूसरा आकर कहॉ रहेगा और आप लोग जानती हैं कि ओम कभी अपनी सिम्मी के दिल से जायेगा नहीं। आप लोग ही बताइये कि मैं क्या करूॅ। समझ लीजिये कि मेरी शादी ओम से हो चुकी है और मैं हमेशा ओम की पत्नी रहूॅगी। इसीलिये मैंने यह भी मान लिया है कि अस्तित्व मेरा और ओम का बेटा है।”
मौली ने उसे अपने से लिपटा लिया – ” केवल मानने से जिन्दगी नहीं चलती, जिन्दगी की अपनी आवश्यकतायें होती हैं। कब तक तुम इंतजार करोगी ओम का? भूल जाओ उसे। पता नहीं कहॉ चला गया मेरा बेटा? न जाने लौटकर आयेगा भी या नहीं। पूरे दो साल हो गये हैं। अब सब कुछ भूलकर आगे बढो। जिन्दगी अकेले नहीं कटती।”
समाधि ने मौली के गले में बॉहें डाल दी – ” मैं आखिरी सॉस तक ओम का इंतजार करूॅगी। मानने से ही तो सब कुछ होता है बड़ी मम्मी। मूर्ति को ईश्वर मानकर ही तो पूजते हैं ना। फिर मैं अकेली नहीं हूॅ, मेरे पास दो मम्मी और दो पापा हैं। मेरे साथ आप सब तो हैं ही और यह शैतान भी है। देखिये कैसे “मॉ ” ” मॉ ” कहकर मेरे पीछे दौड़ता रहता है।”
समाधि की जिद से रिश्तेदारों और समाज का मुॅह बन्द करने के लिये यह प्रचारित कर दिया गया कि ओम और सिम्मी की कोर्ट में शादी हो चुकी है लेकिन एकलव्य के लापता हो जाने के कारण यह शादी सामाजिक रीति-रिवाजों से नहीं हो पाई है। इसलिये जब भी एकलव्य लौटकर आयेगा धूमधाम से सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार शादी हो जायेगी।
अस्तित्व के स्कूल में माता पिता के स्थान पर समाधि ने अपना और एकलव्य का नाम लिखवा दिया। सभी को पता था कि उसके पिता बरसों पहले लापता हो गये थे और आज तक उनका कोई पता नहीं चला। स्वयं अस्तित्व भी यही जानता था।
इतने सालों तक रातों में सिसक सिसक कर कलेजे पर पत्थर रखे रही लेकिन आज यह रहस्य वह अपने बेटे के समक्ष खोलकर रख रही है ताकि वह समझ सके कि देश से बड़ा कुछ नहीं होता। कर्तव्य और प्यार की जंग में हमेशा कर्तव्य को विजयी होना है, तभी तो वह अपने देश पर मर मिटने वाला सच्चा देशभक्त सिपाही बनेगा। वह खुश थी कि उसने अपने आप के जुनून को मारने की बजाय अस्तित्व के रूप में जिया है। उसकी परिस्थितियों ने उसकी दिशा भले ही मोड़ दी हो लेकिन उसके जज्बे को नहीं मार पाईं। वह जज्बा उसने पल पल कूट कूटकर अपने बेटे में भरा है।
समाधि जैसे मन्त्र बिद्ध वाणी में बोलती जा रही थी। ऑसू दोनों की ऑखों से बह रहे थे –
” मम्मा इस सच्चाई के समक्ष तो देवताओं को भी आपकी आरती उतारनी पड़ेगी। बिना शादी के आपने विधवा का और बिना मुझे जन्म दिये मॉ का साथ ही दो अजनबी व्यक्तियों की बहू का जीवन जिया है। जो रिश्ते बने ही नहीं उन पर पूरी शिद्दत से आपने अपने सपने, अपनी जिन्दगी, अपना सुख कुर्बान कर दिया। कुछ कहने के लिये है ही नहीं मेरे पास। भले ही मैंने आपकी कोख से जन्म नहीं लिया है लेकिन मैं आपका ही बेटा हूॅ और हर जन्म में आपका ही बेटा बनूॅगा। मुझे स्वयं पर गर्व है कि मैं ऐसी मॉ का बेटा हूॅ। आपका बेटा आपको वचन देता है कि मेरे लिये मेरा कर्तव्य ही सर्वोपरि रहेगा और आपका यह राज हमेशा मेरे सीने में दफन रहेगा।
दोनों एक दूसरे से लिपटकर एक दूसरे को ऑसुओं से भिगोते रहे। तभी बाहर से कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं – ” सिम्मी, पूरी रात बीत गई, उसे थोड़ी देर तो सो लेने दे।” यह मौली का स्वर था। सुबह टहलने के बाद वो चारो लौट आये थे।
अस्तित्व ने उठकर दरवाजा खोल दिया – ” बातें करते हुये कब समय बीत गया, पता ही नहीं चला। आप लोग अन्दर आकर बैठिये। आज आप सबको लेफ्टीनेन्ट अस्तित्व के हाथ की चाय पीनी पड़ेगी।” अपने ऑसू छुपाते हुये अस्तित्व रसोई की ओर बढ़ गया।
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर
दोस्तों 🙏 🙏 🙏 समाधि के अन्तिम अंक के साथ ही समाधि और एकलव्य की यह प्रेम और रोमांच से भरी कहानी समाप्त हो गई है। आप सबकी स्नेह भरी उत्साह वर्धक प्रतिक्रियाओं के लिये हार्दिक आभार और धन्यवाद। आप सबका प्यार, सहयोग और आशीर्वाद के कारण ही प्रत्येक रचना का सृजन संभव है।