समाधि (भाग-13) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

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पिछले अंक (12 ) का अन्तिम पैराग्राफ

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उसने और शशांक ने अपनी जेब के सारे पैसे निकाल कर बूढ़े पिता के हाथ में रख दिये। हालांकि वह ले नहीं रहे थे लेकिन समाधि ने उनके दोनों हाथ पकड़ कर सिर से लगा लिया – ” अमरेन्द्र देते तो क्या आप न लेते? मैं कोशिश करूंगी, बहुत जल्दी आपको अमरेन्द्र की पेंशन मिलने लगेगी और कोई भी परेशानी हो तो बताइयेगा, हम सबसे जो भी हो सकेगा, जरूर करेंगे।”

अब आगे ••••••••

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शशांक ने भी कहा – ” अम्मा ठीक हो जायेंगी, आप चिन्ता मत करिये। अमरेन्द्र मरा नहीं है, वह शहीद हुआ है। हम सबको उस पर गर्व है।”

समाधि बच्चे को यह कहकर ले आई कि दादी के ठीक हो जाने पर वह बच्चे को वापस छोड़ जायेगी।

अमरेन्द्र के पिता ने सात महीने के बच्चे को सीने से लगा कर फूट फूटकर रोते हुये दोनों हाथ जोड़कर कहा – ” आपका बहुत उपकार होगा मैडम जी। शायद आपके भाग्य से ही जी जाये। मेरे पास तो यह निश्चित ही मर जायेगा। बुढिया ठीक भी हो गई तो इस छौने ( बच्चे ) को पालने का जांगर ( ताकत ) कहॉ से लायेंगे हम? अमरेन्द्र के साथ सारी ताकत चली गई है। “

परिस्थितियॉ बदल चुकी थीं, सब लोग एकलव्य के लौटने की पल पल प्रतीक्षा कर रहे थे और वह जानती थी कि एकलव्य कभी नहीं लौटेगा।

एकलव्य के जाने से दोनों घरों में सन्नाटा छा गया। समाधि की ऑखों से एकलव्य को अपने हाथों गोली मारने, उसे रेल की पटरी पर रखकर टुकड़े टुकड़े में एक लावारिस लाश का रूप देने का दृश्य हटता ही नहीं था। जार जार रोता हृदय अपने दुर्भाग्य को कोसते नहीं थकता था। अक्सर वह रात के अंधेरे में बिस्तर पर सर पटक पटककर रोया करती – ” हे भगवान! क्या मैंने इसीलिये पुलिस इंस्पेक्टर की नौकरी की थी? अपने ही हाथों अपने प्यार को मार डाला?”

लेकिन फिर उसे पुलिस की वर्दी पहनते समय ईश्वर को साक्षी बनाकर ली गई अपनी देश और कर्तव्य के लिये सर्वस्व यहॉ तक प्राण तक न्यौछावर करने की शपथ याद आ जाती, तब उसे स्वयं पर गर्व हो आता। मस्तिष्क कहता कि उसने जो किया सही किया लेकिन हृदय अपने ओम के लिये तड़प तड़प रोता। ओम के बिना कैसे पूरा जीवन बितायेगी? उसके माता-पिता की प्रतीक्षा में बिछी नजरों को कब तक अनदेखा करके झूठ बोलती रहेगी? जब भी बालों में कंघी करती, अपने बालों में ओम के रक्त की लालिमा दिखाई देने लगती।

कभी कभी उसे लगता कि सबसे यह बात छुपाकर कोई अपराध तो नहीं कर रही है? लेकिन दूसरे ही पल उसकी अपनी ही आत्मा उसे सान्त्वना देने लगती – ” नहीं, उसने कोई अपराध नहीं किया है बल्कि उसने तो ओम की इच्छा के कारण ऐसा किया है। कम से कम अंकल आंटी को ओम के वापस लौटने की सदैव एक आशा तो बनी ही रहेगी। वरना उसके अपराध में लिप्त होने की बात उजागर होने पर पता नहीं क्या होता? ••••••••

तभी उसके एक फैसले ने सबको चौंका दिया। उसने पुलिस की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया –

” बेटा तुम्हारा बचपन से सपना था ऐसी नौकरी और अब तो तुम्हें प्रमोशन भी मिल गया है। हम सबको तुम पर गर्व है। पैसा तो दूसरी किसी भी नौकरी में तुम्हें शायद इससे अधिक मिल जाये लेकिन इतना सम्मान, अखबार और टीवी चैनलों में छाया तुम्हारा नाम सबसे अधिक तुम्हारी सन्तुष्टि और कहीं नहीं मिलेगी।” गिरीश और रत्ना के साथ अनन्त और मौली भी उसे समझाते क्योंकि सभी उसके जुनून के बारे में जानते थे।

” क्या करूॅ पापा, शायद मेरी किस्मत नहीं चाहती है कि मैं अपने बचपन के जुनून और सपने को पूरा कर सकूॅ। परिस्थितियॉ हमेशा व्यक्ति को अपने मन का करने की इजाजत नहीं देती हैं। हम सब ईश्वर और भाग्य के समक्ष विवश हैं । व्यक्ति सोंचता कुछ और है और होता कुछ और है। ईश्वर की मर्जी शायद यही है कि मैं यह नौकरी न करूॅ, वरना हमारा ओम ऐसे छोड़ कर न चला जाता।”

उसकी ऑखों से ऑसू गिरने लगते तो सभी की ऑखें भीग जातीं – ” अब मैं आप लोगों से अलग रहकर जोखिम वाली नौकरी नहीं करूॅगी। मेरी जिन्दगी पर अब मेरा कोई अधिकार नहीं रहा, वह आप लोगों की हो गई।

ऑसुओं से भीगी ऑखों से वह आगे कहती गईं- ” ओम के कारण मैं निश्चिंत थीं । पहले सोंचती थी कि  ओम चाहे जितने लापरवाह और गैरजिम्मेदार हों लेकिन यदि  मुझे कुछ हो कुछ हो गया तो वह दोनों परिवारों को सम्हाल लेंगे। जबकि अब मैं अपने साथ कोई भी खतरा जानबूझकर उठाने की स्थिति में नहीं हूॅ क्योंकि जानती हूॅ कि यदि मुझे कुछ हो गया तो आप सब क्या करेंगे? कौन आप सबकी देखभाल करेगा? और अब तो मेरे साथ यह नन्हीं सी जान और जुड़ गई है।”

फिर उसने अनन्त और मौली से कहा – ” आंटी अंकल मैं जानती हूॅ कि उस घर में आपकी और ओम की बहुत सी यादें जुड़ी हैं लेकिन जब तक ओम वापस नहीं आ जाते। आप लोग मेरा दायित्व हैं। क्या तब तक के लिये हम सब एक घर में रह सकते हैं? ताकि हम सब साथ रहकर एक दूसरे का दुःख बॉट सकें, अकेले घर में न तो आप लोगों को छोड़ सकती हूॅ और न ही मम्मी पापा को। आपका फ्लैट किराये पर दे देंगे ताकि ओम के आने के बाद आप वापस अपने घर जा सकें। साथ ही अब मैं आप दोनों को बड़े पापा और बड़ी मम्मी कहूॅगी”

अनन्त की ऑखें बरस पड़ीं – ” गिरीश, मुझे घोड़ा बनाकर पूरे घर में घुमाने वाली अपनी गुड़िया इतनी समझदार कब हो गई कि इतनी बड़ी बड़ी बातें करने लगी। लगता है कि अभी कुछ पहले ही तो इसके और ओम के बीच की लड़ाई  का निपटारा करते हुये हम लोग हॅसा करते थे।”

गिरीश ने किसी को कुछ कहने का मौका दिये बिना कह दिया – ” बिल्कुल सही निर्णय है इसका। अब हम सब साथ रहेंगे।”

तभी मौली ने कहा – ” जब ओम आ जायेगा तब तुम दोनों शादी करके अपने लिये अलग फ्लैट ले लेना। तब भी हम चारो बूढ़े तो एक साथ ही रहेंगे। इसलिये मेरा सुझाव है कि बीच की दीवार तुड़वाकर दोनों फ्लैटों को एक कर लिया जाये जिससे एक बड़ा सा घर हमारा हो जाये।” 

सभी को मौली का यह सुझाव पसंद आया। मौली सिसकने लगी – ” कितना अरमान था कि इस घर से तुम्हें बेटी के रूप में विदा करूॅ और उस घर में बहू के रूप में स्वागत करूॅ लेकिन पता नहीं किसकी नजर लग गई कि सब बरबाद हो गया। पता नहीं कहॉ चला गया ओम? कब आयेगा, आयेगा भी या नहीं इसलिये अब दो घरों की कोई आवश्यकता नहीं है। हम सब साथ रहेंगे और साथ रहकर ओम के लौटने की प्रतीक्षा करेंगे।”

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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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