समाधि (भाग-11) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

पिछले अंक ( 10 ) का अन्तिम पैराग्राफ ••••••

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राहुल और एकलव्य के बाद यह कहानी समाप्त हो जानी थी। समाधि भी सब कुछ भूलकर अपने सीने में दफन कर लेगी। इतना विचार आते ही जैसे उसके शरीर और मस्तिष्क में बिजली दौड़ गई। उसे क्या करना है, उसके सामने स्पष्ट हो गया।

अब आगे •••••••

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सर्दी की रात होने के कारण ग्रामीण भी अपने घरों में दुबके पड़े थे। गोलियों की आवाज सुनकर उन्हें समझ में आ गया कि कुछ गड़बड़ है, इसलिये डर के कारण कोई घर से बाहर नहीं निकला।

समाधि जानती थी कि हाई वे से अलग हटकर जाने वाले इस रास्ते तक भले ही अभी तक  उसकी टीम नहीं पहुॅच पाई थी क्योंकि उसकी टीम जानती थी कि अकेले अपराधी पर इंस्पेक्टर समाधि आसानी से नियंत्रण कर लेगी।‌ इसीलिये सब निश्चिन्त होंगे लेकिन जैसे ही घायलों और मृतकों को अस्पताल पहुॅचा दिया जायेगा पुलिस टीम के साथ इंस्पेक्टर शशांक आते होंगे। हो सकता है कि मीडिया भी साथ हो।

पुलिस की ट्रेनिंग में उन्हें भारी बोझ उठाना भी सिखाया जाता है। इसीलिये उसने पहले एकलव्य की जेब से उसका मोबाइल निकाल कर सिम के टुकड़े टुकड़े करके मोटरसाइकिल में ही मोबाइल सहित रख दिया। इसके बाद किसी तरह एकलव्य को बॉहों में उठाया और सामने आगे की ओर बढने लगी।

कानों में तेजी से आती ट्रेन की आवाज ने उसका लक्ष्य और कर्तव्य दोनों निश्चित कर दिया। ट्रेन की पटरी पर एकलव्य को उल्टा लिटाकर एक बार उसके चेहरे को चूमकर बिना मुड़े वापस लौट पड़ी। एकलव्य के द्वारा पहना हुआ वह सिर से पैर तक को ढकने वाला लबादा उसने उतार कर मोटरसाइकिल में पहले ही रख दिया था। ट्रेन धड़धड़ाते हुये एकलव्य के टुकड़े टुकड़े करती हुई निकल गई और पटरियों पर एक अज्ञात लावारिस लाश के टुकड़े पड़े थे।

अब उसे एकलव्य की मोटरसाइकिल को भी रास्ते से हटाना था ताकि कभी एकलव्य का पता न चल सके। एकलव्य की मोटर साइकिल को लेकर वह आगे बढने लगी और गंगा पुल पर आकर पहले खुद उतरकर मोटरसाइकिल स्टार्ट करके छोड़ दी।  बिना सवार की मोटरसाइकिल गंगापुल की रेलिंग तोड़ते हुये सीधे गंगा में जाकर गिरी।

समाधि जानती थी कि खोज करने पर यदि मोटरसाइकिल मिल भी गई तो सब लोग यही समझेंगे कि भागते समय अपराधी गंगा में गिर गया और उसकी लाश बह गई है।

समाधि के अन्दर जैसे कोई दैवी शक्ति समा गई। गंगा पुल से उसकी मोटरसाइकिल अभी आठ किलोमीटर दूर थी। उसे जल्दी से जल्दी वापस वहॉ तक आना था। उसने दौड़ लगानी शुरू कर दी। आठ किलोमीटर दौड़ना उसके लिये कोई बड़ी बात नहीं थी।  दौड़ते हुये वह उस सूनसान स्थान पर पहुॅची तो उसकी मोटरसाइकिल वैसे ही खड़ी थी और मोटरसाइकिल के चारो ओर खून ही खून पड़ा था। अभी तक सब कुछ वैसा ही था जैसा वह छोड़कर गई थी। समाधि ने इत्मीनान की सॉस ली और ऊपर आकाश की ओर देखकर हाथ जोड़ दिये – ” ओम, मैंने तुम्हारी इच्छा पूरी कर दी है। ईश्वर ने चाहा तो मैं किसी के सामने यह राज खुलने नहीं दूॅगी।”

अब समाधि ने जेब से रिवाल्वर निकाली और अपने  पैर में अपने हाथ से गोली मार ली। भयंकर मानसिक और शारीरिक तनाव के कारण अब वह बेहोश हो चुकी थी।

दूसरे दिन जब उसे होश आया तो उसे पता चला कि उसके पैर की गोली निकाली जा चुकी थी लेकिन इस

” सरफरोश आपरेशन” में घायल अपराधियों के पास इंस्पेक्टर शशांक के पहुंचने पर उनमें से एक ने उन पर गोली चला दी थी। गोली इंस्पेक्टर के बाजू में धंस गई थी और प्रतिक्रिया स्वरूप हवलदार रामेश्वर ने उस अपराधी को छलनी कर दिया। एक बदमाश को गिरफ्तार कर लिया गया।

मीडिया ने अस्पताल को घेर लिया जिसमें पुलिस के दो जांबाज आफीसर भर्ती थे। ढाबा संचालक और कर्मचारियों के बयान में उन अपराधियों के बारे में कुछ पता नहीं चल पाया क्योंकि वे सब हमेशा काले लबादे में ढके रहते थे। उनकी आंखें छोड़कर कुछ भी दिखाई नहीं देता था। ढाबा संचालक ने यह भी बताया कि जिस दिन वे लोग आते थे, उस दिन की सारी कमाई साथ ले जाते थे।शशांक ने मीडिया को सारी सच्ची घटना बता दी कि कैसे उन्हें पता चलते ही इंस्पेक्टर समाधि के नेतृत्व में उन्होंने उस ढाबे में जाकर “आपरेशन सरफरोश ” को अंजाम दिया। जबकि इंस्पेक्टर समाधि ने अपनी जान की परवाह न करते हुये तुरन्त अपराधी का पीछा किया।

एकलव्य के बारे में अपना बयान देते हुये समाधि ने मीडिया को बताया कि उस मोटर साइकिल का पीछा करते समय उसने कई गोलियां चलाईं थी लेकिन पता नहीं गोली उस बदमाश को लगी या नहीं लेकिन अपने पैर में गोली लग जाने से वह मोटरसाइकिल समेत गिर पड़ी थी। उसके बाद शायद अधिक खून बह जाने के कारण वह बेहोश हो गई लेकिन उसे बेहद अफसोस है कि वह उसे पकड़ नहीं पाई। इस आपरेशन में समाधि और शशांक के घायल होने के साथ ही दो हवलदार और दो कांस्टेबल शहीद हो गये थे।

घायल बदमाश ने पहले तो कुछ नहीं बताया। यही कहता रहा कि उसे कुछ नहीं पता है। बड़ी मुश्किल से केवल इतना बताया कि वे सब  अपने साथियों के न तो असली नाम जानते हैं और न ही अपने गिरोह के बारे में कुछ जानते हैं। वे सब एक दूसरे को आलाकमान के दिये कोड नम्बर से जानते हैं।

बस किसी भी माध्यम से उन्हें स्थान बता दिया जाता है और वह नकाब में छिपे व्यक्ति से कुछ संक्षिप्त कोड भाषा के शब्द जाकर बताये स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति तक पहुॅचा देता है। यहॉ तक कि उन्हें एक दूसरे के सामने भी अपने आप को प्रकट करने की आज्ञा नहीं है। आज के पहले वे कभी नहीं मिले थे। उन्हें दो व्यक्तियों से सूचना एकत्र करके अगले आदेश की प्रतीक्षा करनी थी। उन दो व्यक्तियों का उन्हें कोड ही मालुम है जिनमें से एक व्यक्ति पुलिस की गोली से मारा जा चुका है और दूसरा व्यक्ति मोटरसाइकिल से भागने वाला था।

सभी जानते थे कि यह व्यक्ति  झूठ बोल रहा है लेकिन चूंकि वह भी बहुत घायल था और इस घायल अवस्था में डॉक्टर अधिक कुछ पूॅछने की इजाजत नहीं दे रहे थे। उसके शरीर से बहुत खून बह चुका था, वह बार बार बेहोश हो जाता था। इसलिये यह निर्णय लिया गया कि उसके स्वस्थ होने के बाद आगे की पूंछताछ की जायेंगी।

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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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