अरे केशव आ ना आज बहुत बहुत दिन बाद आया सब ठीक तो है न। तेरे चेहरे पर इतनी उदासी ,क्या हुआ है।
अरे रे एक साथ इतने प्रश्न अर्जुन जरा मुझे सांस तो लेने दे।मन उदास था तो अपने मित्र की याद आ गई सोचा चलो चलकर उसी के पास अपना मन हल्का कर लूं। तुझे तो पता ही है कि मेरा तेरे सिवा इतना गहरा संबंध किसी से नहीं है। एक तू ही तो है बचपन से लेकर आज तक जिसके सामने मैं अपने मन का गुबार निकाल लेता हूं। तेरी बातों से मन को शांति मिल जाती है।
अरे मीनाक्षी जल्दी से चाय नाश्ता भिजवा दो केशव आया है कहते हुए अर्जुन बोला हां तो अब बोल मेरे दोस्त तेरी परेशानी की वजह क्या है।
मेरी ईमानदारी अर्जुन ईमानदारी। क्या इस दुनियां में ईमानदार होना इतना बुरा है कि लोग आसानी से उसके स्वाभिमान की धज्जियां उडा दें।थक गया मैं अर्जुन लड़ते लड़ते। मेरी ईमानदारी का असर अब मेरे बच्चों की जिंदगी पर भी पड़ रहा है,यह बात कैसे सहन करूं।
साफ-साफ कह समस्या क्या है तो कुछ हल भी खोजा जाए।
समस्या वही है दहेज।कई जगह बात टूट चुकी है स्नेहा की।अब एक जगह पिछले दो माह से बात चल रही थी उम्मीद थी शायद बात बन जाए किन्तु आज उनका भी जबाब न में आ गया। स्नेहा भी बुझ सी गई और तेरी भाभी तो रो-रोकर बेहाल है।समझ नहीं आ रहा कि लोगों की इतनी बड़ी डिमांड कैसे पूरी करूं
, मैंने तो कभी ग़लत तरीके से कमाया ही नहीं। वेतन से ही बच्चों को पाला, पढ़ाया लिखाया, योग्य बना अपने पैरों पर खड़ा कर दिया।अब जो थोड़ी बहुत बचत है उसी से शादी करना चाहता हूं किन्तु लोगों को तो मोटी रकम चाहिए वह कहां से लाऊं।
सही कह रहा है तू केशव आजकल लोग लड़की की योग्यता एवं गुणों को न देख केवल पैसा चाहते हैं।
क्या कमी है अपनी स्नेहा बिटिया में सुंदर, सर्व गुण संपन्न है फिर इंजीनियर बन मल्टीनेशनल कंपनी में लाखों के पैकेज पर काम कर रही है और क्या चाहिए।
समस्या तो गम्भीर है पर चिंता मत कर कहीं न कहीं बात बन ही जाएगी। कोई तो ऐसा मिलेगा जो उसके गुणों का कद्रदान होगा, हिम्मत रख यार फिर से प्रयास करते हैं। अर्जुन के सांत्वना पूर्ण शब्द सुन केशव जी के मन को कुछ राहत मिली।तब तक मीनाक्षी भी आ गईं और चाय भी। चाय पी, कुछ इधर उधर की बातें कर केशव जी अपने घर चले गए।
उनके जाने के बाद मीनाक्षी जी बोलीं आज भैया जी कुछ परेशान लग रहे थे।
हां मीनाक्षी परेशान होने वाली बात है बेटी स्नेहा की कहीं बात चल रही थी किन्तु मोटा दहेज मांगने के कारण बात टूट गई। पूरा जीवन ईमानदारी से बिताने वाला मस्त केशव आज अपनी बेटी के कारण टूट गया। उसे अब बहुत चिंता हो गई कहां से व्यवस्था करेगा मोटे दहेज की।
हूं सो तो है बेचारे सीधे सादे लोग हैं, दोनों बच्चों को काबिल बना दिया और क्या
करें। एक विचार है कि वे पहले बेटे की शादी कर लें तो उसमें जो मिलेगा उससे बेटी की शादी में मदद मिल जाएगी।
ये कैसी बातें कर रही हो वह और बेटे की शादी में दहेज लेगा।न तो दहेज लेगा और यदि कुछ आया भी तो वह कभी बहू की चीजों से हाथ नहीं लगाएगा बेटी को देने के लिए।
आज रात को अर्जुन की आंखों से नींद कोसों दूर थी।उनका परम बाल मित्र आज संकट में है कैसे मदद करें। स्वाभिमानी इतना है कि कोई मदद भी तो नहीं स्वीकारेगा। चलचित्र की भांति एक एक बात उनकी आंखों के सामने घूमने लगी। बचपन में गांव में ही दोनों परिवार रहते थे। केशव के पिता किसान थे
जबकि उसके पिता परचूनी की दुकान के साथ -साथ आढ़तीया का काम भी करते थे। साथ ही खेती भी थी जो बंटाई पर उठा देते थे सो घर में कोई कमी नहीं थी।वे कोई चार या पांच बर्ष के रहे होंगे तब केशव से मित्रता पार्क में खेलते समय हुई। फिर गांव के स्कूल में दोनों पढ़ने लगे।दोस्ती प्रागाढ होती गई।घर में कोई अच्छी चीज बनती वे सबसे छिपाकर अपने हिस्से में से थोड़ी केशव के लिए ले जाते, उसे खाते देख उन्हें कितनी प्रसन्नता होती।समय के साथ यह स्नेह बंधन मजबूत होता गया।
बड़े होने पर उसे तो शहर में पहले अच्छे स्कूल में फिर कॉलेज में पढ़ने भेज दिया गया किन्तु केशव पास के कस्बे में ही पढने लगा फिर स्कूल के बाद उसने प्राइवेट ही ग्रेजुएशन कर लिया और बतौर अध्यापक पढ़ाने लगा जबकि मैंने एम बी ए कर के अपना बिजनेस प्रारम्भ किया। दोनों की शादी हुई, बच्चे हुए
और अपनी अपनी दुनियां में मस्त थे हां बातों का सिलसिला कभी नहीं टूटा।जब याद आती मिल लेते। कभी न तो मेरे मन में आया कि मैं कितना बड़ा बिजनेस मैन और वह एक अध्यापक न केशव ने ही कभी हमारे असमान स्तर के बारे में सोचा।बस एक ऐसा दिल का संबंध था कि बर्षों बाद भी ताजे हवा के झोंके की तरह मिलते ही मन को प्रफुल्लित कर देता।सब सामाजिक स्तर भूल बातों में मग्न हो जाते। कभी सोचा नहीं था कि एक बार फिर से हम पड़ोसी बन जाएंगे ।
जहां कॉलोनी में मेरी आलीशान कोठी सिर उठाये खड़ी थी वहीं इसी कॉलोनी में केशव का छोटा सा मकान था। किन्तु इस सबसे उनकी दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा था।अब तो पूरा परिवार एक दूसरे से घुल-मिल गया था मीनाक्षी और सरिता भाभी अच्छी सखी बन गईं थीं। कविता और स्नेहा हम उम्र थीं सो वे भी अच्छी दोस्त थीं।
कॉलोनी वालों को हमारी दोस्ती पर आश्चर्य होता कहां इतना बड़ा बिजनेसमैन और कहां साधारण अध्यापक।पर हम तो स्नेह के ऐसे सूत्र से बंधे थे कि हमारे बीच असमानता से कोई फर्क नहीं पड़ता।पर अब मैं केशव की मदद कैसे करूं। उसकी चिंता जायज है स्नेहा कविता की हम उम्र है और हम कविता की शादी
तीन साल पहले ही कर चुके हैं। उसमें खुद्दारी इतनी है कि दया भाव से की गई कोई मदद स्वीकार नहीं करेगा तभी उनके मन में एक विचार बिजली सा कौंधा क्यों न मैं स्नेहा को अपने बेटे रवि की पत्नी बना अपने घर ले आऊं देखता हूं कल बात करूंगा यह विचार सही है,पर मीनाक्षी और रवि की भी तो इच्छा जाननी होगी। दिमाग हल्का होते ही वे नींद के आगोश में चले गए।
सुबह उठकर चाय पर ही उन्होंने अपना विचार मीनाक्षी जी के समक्ष रखा ।यह सुन वे कुछ सोच में पड़ गईं ।
तब अर्जुन जी बोले क्या हुआ मीनाक्षी मेरा विचार पंसद नहीं आया।
क्या ये संबंध उचित रहेगा। कहीं भाई साहब इसे दूसरी तरह से न लें कि हम दया करके उन पर एहसान कर रहे है।
वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो। तुम तो सिर्फ अपनी इच्छा बताओ क्या स्नेहा बहू के रूप में तुम्हें पंसद है।
वे बोलीं हां क्या कमी है उसमें, फिर भी हमें रवि की भी राय जान लेनी चाहिए।
हां सही कहा तुमने।
आज छुट्टी थी सो रवि भी घर पर ही था उन्होंने उसे बुलाया और अपनी बात उसके समक्ष रखते हुए कहा क्या तुम इस रिश्ते को पंसद करोगे या कहीं ओर तुमने किसी को पसंद कर रखा है।
नहीं पापा मेरे जीवन में अभी तक कोई नहीं है। यदि आप और मम्मी को सही लगता है तो मुझे कोई एतराज़ नहीं है पर मेरी एक छोटी सी शर्त है।
बता बेटा क्या है तेरी शर्त।
पापा शादी के बाजार में मेरी बोली मत लगाना। मुझे दहेज से सख्त नफ़रत है। हमारे पास कोई कमी नहीं है। मैं भी अच्छा खासा कमा रहा हूं फिर हम क्यों लड़की के माता-पिता को परेशान करें।वे हमें अपनी बेटी दे रहे हैं यही क्या कम है।कई बेटियां तो कमाती भी हैं सो हर महीने दहेज ही तो आता है।
वाह बेटा तूने तो मेरा मन जीत लिया। केशव के पास पैसा नहीं है दहेज देने को इसीलिए तो वह स्नेहा की शादी नहीं कर पा रहे हैं । पर बेटा ध्यान रखना यह उन पर कभी प्रकट न हो कि हमने दया करके ये रिश्ता किया है बल्कि हमारा प्रयास ऐसा हो कि कभी किसी भी तरह न तो केशव के और न स्नेहा के स्वाभिमान को ठेस पहुंचे । जैसे अन्यत्र सामान्य रिश्ता होता वैसे ही करना है।
अब वे केशव जी के घर गए। केशव मैंने तुम्हारी समस्या का हल खोज निकाला है।
यार जल्दी बता ऐसा क्या मिल गया तुझे रात भर में ही समाधान।
अरे यह तो वही बात हुई कि बगल में छोरा और नगर में ढिंढोरा। क्या तुम स्नेहा बेटी का व्याह हमरे रवि के साथ करना पसंद करोगे।यह सुन केशव जी का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया ।ये क्या कह रहे हो अर्जुन, क्या तुम भी मेरा मजाक बनाने पर तुले हो। कहां तुम्हारा परिवार और कहां हम लोग।ये संबंध कैसे संभव है। हमारी तो कल्पना से भी परे है।
ये हमारे तुम्हारे परिवार के बीच रेखा कहां से आ गई केशव। क्या बचपन से लेकर आज तक हम दोनों में कोई फर्क रहा है।
नहीं अर्जुन ऐसा सोचना भी मत तुम मेरी सहायता करने के खातिर यह निर्णय ले रहे हो, तुम तो हमारे स्वाभिमान को तार-तार न करो।
नहीं केशव न ये दया है न ही कोई मदद ।हम तो स्नेहा जैसी गुणी बेटी पाकर निहाल हो जायेंगें अपने को बहुत भाग्यशाली समझेंगे अगर तुम्हें यह रिश्ता मंजूर होगा। मैं तो सिर्फ अपनी बेटी को इस घर से उस घर तक ले जाना चाहता हूं बिजनेस मैन हूं कहीं घाटा नहीं सहूंगा।बेटी हमें पंसद है सो तुमसे उसका हाथ मांगने आया हूं
कोई रहम की भावना नहीं है ।आश्चर्य तो मुझे इस बात का है कि यह विचार पहले मेरे दिमाग में क्यों नहीं आया मेरी इच्छा तो अपने इस स्नेह बंधन को और मजबूत कर
रिश्तेदारी में बदलना चाहता हूं।अब तुम सोच लो, स्नेहा से भी उसकी इच्छा जान लो कि वह रवि को पंसद करती है या नहीं। हमारे इस पैंतालीस वर्षीय स्नेह बंधन रुपी पौधे को और मजबूती देने के लिए आवश्यक है कि उसे और अधिक प्रेम से सींचा जाए और हम रिश्तेदार बने यह कार्य करें।
पर अर्जुन हम एक बार हां कर भी दें तो क्या हम तुम्हारी सामाजिक प्रतिष्ठा के अनुसार आदर सत्कार कर पायेंगे। तुम्हें देने को कुछ भी तो नहीं है मेरे पास।
किसने कहा कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है जिस पिता के पास ऐसी सर्वगुण संपन्न बेटी हो और क्या चाहिए।
आखिर सर्वसम्मति से विवाह संपन्न हुआ जो समाज में एक मिसाल था। स्नेहा को लगा ही नहीं कि वह ससुराल आई है। कविता की खुशी का तो कोई ठिकाना नहीं था कि उसकी प्यारी सखी उसकी भाभी बन गई।
जो दोनों परिवारों के मध्य स्नेह बंधन था उसने प्यार भरी रिश्तेदारी का रूप ले लिया। दोनों परिवार खुश थे। समाज में ऐसी शादी चर्चा का विषय थी। यदि सभी इसी तरह सोचने लगें तो बेटी के पिता को बेटी होने का दुख ही क्यों हो।वह क्या कसर रखता है प्यार से बेटी को पालता है, पढ़ाता लिखाता है फिर भी शादी के समय दहेज की चिन्ता उसे खाए जाती है।
शादी के बाद दोनों दोस्त समधी बने बैठे थे उनका वही व्यवहार था उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया था।उनका स्नेह बंधन रिश्तेदारी में बदल कर भी बरकरार था।
शिव कुमारी शुक्ला
18-3-25
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
शब्द प्रतियोगिता****स्नेह बंधन