सलौनी  – पुष्पा जोशी

धनीराम और दीनदयाल दो पड़ोसी थे। धनीराम कपड़ों का व्यापारी था और दीन दयाल शासकीय विद्यालय में लाइब्रेरियन था।उसे पुस्तकें पढ़ने का और उससे तरह -तरह की जानकारी प्राप्त करने का बहुत शौक था, राजनीति, विश्व की भौगोलिक स्थिति, इतिहास सब के बारे में वह अच्छी-खासी जानकारी रखता था।सीधा-सरल व्यक्तित्व था उसका।शायद उसका यही गुण उसकी इकलौती बेटी सलौनी में भी आया,उसे हर बात को जानने की जिज्ञासा रहती, मृदु भाषी और दयालु प्रकृति थी उसकी।मगर जहां  उसे लगता कि यह ग़लत है, वहां अपने पक्ष को लेकर अड़ी रहती।उसके बचपन के ये गुण आगे विकसित होते गए। ‌

धनीराम अपने फन में माहिर था,किस तरह किससे अपना काम निकलवाना, व्यापार विस्तार कैसे करना सारे गुर उसमें थे,उसके दो बेटे थे रोनी और रूपेश । धनीराम को इस बात का बहुत घमंड था और वह खुशी से फूला नहीं समा रहा था, हर समय दीनदयाल से कहता ‘तुम्हारी बेटी की शादी हो जायेगी और तुम अकेले रह जाओगे।वंश की वृद्धि बेटों से होती है बेटी से नहीं।’ दीनदयाल उसका व्यवहार जानता था,उसकी बातों को अपने दिल पर नहीं लेता और पलटकर कहता- ‘सलौनी मेरी बेटी भी है, और बेटा भी।’

समय तेजी से भागता है, दोनों के बच्चे बड़े हो रहै थे। सलौनी कुशाग्र बुद्धि की थी,मन लगाकर पढ़ाई करती थी,उसने एम.ए की परीक्षा पास करली थी,रोनी ने साइन्स विषय लिया था। यहां भी धनीराम अपनी आदत से बाज नहीं आया कहता -‘लड़की है साइन्स पढ़ना इसके बस की बात नहीं।’ दीनदयाल हर बार उसकी बात हँस कर टाल देता उसे अपनी बेटी पर विश्वास था कि वह एक दिन जरूर उसका नाम रोशन करेंगी।

रोनी की इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होने पर उसकी अच्छी कम्पनी में नौकरी लग गई, और वह विदेश चला गया, वहीं पर शादी करली और वहीं बस गया।उसने अपने परिवार से नाता ही तोड़ लिया।दूसरा बेटे रूपेश की पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं थी,वह दिखने में जितना खूबसूरत था,उतनी ही उसकी बुद्धि खराब हो गई थी।वह अपने पिता के साथ व्यापार करने लगा मगर पैसे कमाने के चक्कर में वह गलत धंधे में फंस गया।क‌ई मामलों में पुलिस की नजर उस पर थी,वह गलत लोगों की संगत में था, और वे लोग इसका उपयोग ले रहै थे। उसमें पक्कापन नहीं था,मन का भोला था।

सलौनी ने आइ. एएस. की परीक्षा उत्तीर्ण की और वह पुलिस कमिश्नर बन गई। और उसी गांव में उसकी नियुक्ति हुई।उसके सामने रूपेश का मामला आया वह किसी ड्रग्स के धंधे में अपने साथियों के साथ पकड़ाया था।किसी ने उसके बेग में उसकी पुड़िया डाल दी थी।


धनीराम रोते-रोते दीनदयाल के पास आया और उसके हाथ जोड़कर माफी मांगने लगा,और बोला ‘मुझे माफ़ करदो, मैंने हमेशा तुम्हें नीचा दिखाने की कोशिश की मगर आज मैं दिल से तुमसे माफी मांगता हूं।अगर हो सके तो अपनी बेटी से कहकर मेरे बेटे को रिहा करवा दो।’ सलौनी के सामने जब केस आया तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि रूपेश ऐसा कर सकता है, उसे दुख भी हुआ  इतने साल से दोनों परिवार पड़ोस में रह रहै थे।

सलौनी ने धनीराम से कहा -‘अंकल आप चिंता न करें, मैं मामले की पूरी छानबीन करूंगी,मगर आप रूपेश की तरफदारी भी मत करना।अगर उसका दोष कम होगा तो कुछ सजा काटने के बाद वो रिहा हो जाएगा और आगे उसे नसीहत लगेगी,तो शायद सुधर जाए।आज अगर उसकी गलती को छुपाया तो उसे गलती करने के लिए बढ़ावा मिलेगा।’ धनीराम पहले ही अपने बड़े बेटे से निराश हो चुके थे। उन्होंने कहा बेटा रूपेश की बागडोर अब तुम्हारे हाथ में है, मैं कुछ नहीं बोलूंगा।उनकी आँखों में झिलमिलाते अश्रुओं ने,सलौनी को व्यथित कर दिया,केस के सिलसिले में सलौनी ने रूपेश से बात की, साथ ही अन्य अपराधियों से बात की।मामले की पूरी जानकारी हासिल करने पर उसने पाया कि रूपेश कुछ पैसों के लालच में इस धन्दे में फंस गया उसे इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी।बरौनी ने पूरे मामले की ईमानदारी से जांच की और मुख्य आरोपियों को कठोर सजा दिलवाई।

न्यायालय ने रूपेश को  तीन महीनों के कारावास की सजा सुनाई। धनीराम को बहुत दुख हुआ,मगर सलौनी‌ ने उन्हें समझाया कि ‘सजा भुगतने के बाद रूपेश के सुधरने की उम्मीद है।वह मन का बुरा नहीं है,उसकी संगत खराब है, मैं पूरा प्रयास करूंगी,कि उसकी बुरी संगत छूट जाए और वह सुधर जाए।’ तीन महीनों के बाद रूपेश ने अपने आपको एक कमरे में बंद कर लिया वह बाहर जाने आने में शर्मीन्दगी महसूस करने लगा।


सलौनी ने  उसके घर जाकर उसे बहुत समझाया,उसके मनोबल को बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास किया,उसे समझाया कि गलती सभी से होती है, हमें अपनी गलती से सीखकर आगे बढ़ने की कोशिश करना चाहिए,जो गलती की उसकी सजा तुमने भुगत ली,अब एक गलती और कर रहै हो,अपने माँ पापा को दुखी करके,पता है वे कितना अकेला महसूस कर रहे हैं, तुम उनके बुढ़ापे का सहारा हो।सलौनी की बात का असर रूपेश पर हो रहा था,उसने अपनी बुरी संगत और बुरी आदतों को छोड़ कर नये जीवन की शुरुआत की और अपने पिता के साथ उनके काम में ईमानदारी से हाथ बंटाने लगा।

धनीराम जी अब बहुत खुश थे। लेकिन रूपेश की जेल जाने वाली घटना के कारण उसका रिश्ता नहीं हो पा रहा था,इस कारण धनीराम जी कुछ परेशान थे।एक दिन सलौनी ने पूछा अंकल आप इतने परेशान क्यों हैं?’ वे बोले ‘बेटा कभी-कभी अतीत में  की गई गलती की सजा हमेशा भुगतनी होती है,रूपेश का रिश्ता नहीं हो पा रहा है,सोचता हूं।जब हम नहीं रहेंगे वह अकेला रह जाएगा।बस यही मेरी चिंता का कारण है।’

सलौनी ने कहा-‘बस इतनी सी बात ? मेरे साथ रूपेश का लगन कर दीजिए। बचपन में भी तो हम क‌ई बार खेल – खेल में…..।’ ‘बचपन की बात और थी  बेटा !अब क्यों मजाक कर रही है? कहां तू और कहां रूपेश।’ ‘मैं मजाक नहीं कर रही हूं,अब तो रूपेश भी सुधर गया है।आप और रूपेश अगर तैयार हैं, तो मुझे और मेरे माँ  पापा को  कोई आपत्ती नहीं है।बस शादी होने के बाद मैं आपके साथ अपने माँ  पापा की भी सेवा करना चाहती हूं। उन्होंने  मुझे बेटे की तरह पाला है। मैं सही कह रही हूं ना माँ -पापा?’ ‘हां बेटा हमें कोई आपत्ती नहीं है।’

कुछ दिनों बाद सलौनी और रूपेश की शादी हो गई। दोनों मिलकर दोनों परिवार की देखभाल करते और अच्छा वैवाहिक जीवन जी रहै थे। जब इनकी लड़की पैदा हुई तो धनीराम ने पूरे मुहल्ले में मिठाई बांटी।उनकी लड़कियों के बारे में धारणा बदल गई थी।आज वे सभी से कह रहै थे।

‘ बेटियां हमारा स्वाभिमान होती है।’

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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