सख़्त पिता,घर की खूंट – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

गौरव की शादी मधु से हुई थी।सुंदर सुशील और शालीन थी सुधा।आतें ही मां ने घर की चाबियां (जिम्मेदारियां)सुधा के हाथों सौंप कर निश्चिंत हो गई।पढ़ी लिखी थी सुधा।बी एड भी किया था।पास के ही विद्यालय में नौकरी करने लगी थी।

ऐसा करने वाली वह इस घर की पहली बहू थी।गौरव बहुत गंभीर स्वभाव के थे,पर मन बड़ा उदार।पत्नी की नौकरी से उन्हें कोई परेशानी नहीं होती थी।मां तो कभी -कभी गौरव को जोरू का गुलाम भी कह देती थी।गौरव चिढ़ जाता था और सुधा खुश हो जाती थी।

ब्याह के बाद घर की सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही थी।बच्चों को अपने साथ बैठाकर संस्कार सिखाती थी सुधा।गौरव अपना काम देखता,और सुधा घर,बच्चों की देखभाल भी करती और दो पैसे कमाकर भी लाती।गौरव जी और सुधा के बीच में कभी कोई अनबन नहीं होती थी।

लोगों ने आज तक उनका घूंघट उठा हुआ नहीं देखा,पर घर में शेरनी थी शेरनी।आस -पड़ोस में कहीं बैठने तक जाना हो तो मना कर देती थी ,क्यों?उनके पति को पसंद नहीं किटी पार्टी में भी मुश्किल से जुड़ती थी।घर आकर सारी लेडीज गौरव जी की ही खिंचाई करती

“क्यों भाई साहब ,हमारे साथ भाभी को भेजने में आपको दिक्कत क्यों होती हैं।सारा काम निपटा कर हम जरा घूमने जातें हैं,उस पर आप सुधा भाभी को मना करते हैं।ये तो ग़लत बात है।”गौरव‌ कभी समझ ही नहीं पाता था कि सुधा उसका नाम लेकर झूठ क्यों बोलती है ,मैंने तो मना किया नहीं कभी।पूछने पर कहती “आप नहीं समझेंगे। कहना पड़ता है।समय आने पर बताऊंगी।

दो बच्चों के आ जाने से अब गौरव‌ का परिवार पूरा हुआ।सोनू बड़ा बेटा था और टीना उससे दो साल छोटी बिटिया। लाड़-प्यार से बच्चों को बड़ा कर रहे थे गौरव और सुधा। संयुक्त परिवार में सब कुछ सांझा होता है।सुख भी दुख भी।सोनू और टीना अब स्कूल जाने लगे थे।सुधा समय पर पति और बच्चों का टिफिन तैयार कर देती।सबका बैग चैक करके ही भेजती,फिर अपने स्कूल जाती।

बारिश के महीने में झमाझम गिरती बारिश को देख कितनी बार गौरव ने राधा से कहा”आज मत उठाओ,अच्छी नींद आई होगी।एक दिन नहीं जाएंगे तो फेल नहीं हो जाएंगे।”

सुधा के पास जवाब हमेशा तैयार”क्यों नहीं जाएंगे बारिश में।पकौड़े दे दिए हैं टिफिन में,साथ में मुंगौड़ी भी।मजा आ जाएगा खाकर।”आप बाहर से बस आवाज दीजिए इन्हें।गौरव‌ बाहर निकलकर बस धीरे से नाम लिए उन दोनों को उठाने के लिए।

यहां अंदर सुधा मातृशक्ति बनी दोनों के कान में फुसफुसाते हुए कहा रही थी “देखो बच्चों,तुम्हारे पापा पढ़ाई को पूजा मानते हैं।अगर तुम नहीं गए स्कूल तो उनका अपने धर्म से विश्वास हिल जाएगा।”मम्मी की ऐसी बातें सुनकर सोनू और टीना ,रोज़ नहाते भी, एक्सरसाइज भी करते थे।मां ने बोल रखा था ना ,पापा चाहतें हैं ऐसा।

गौरव कभी -कभी सोचता कि संवाद तो मुझसे होते नहीं बच्चों से,और एक ये हैं

कि मेरे नाम से जबरदस्ती डराए रहती है।पूछो तो फिर कहेंगी बाद में।

बच्चे बड़े होने लगे तो उनको आचरण सुधा ही सिखाती। बेटे को सख्त हिदायत थी कि ज्यादा देर होने पर घर से निकाल देंगे पापा। पुलिस ने पकड़ा तो पापा कभी जाएंगे नहीं‌ जमानत करने और ना मुझे करने देंगे।पापा फिर विलेन।

“पढ़ाई के लिए होस्टल या पीजी सब पापा के हिसाब से करना।पिता हैं तुम्हारे।उनके आशीर्वाद से ही तुम दोनों सफल होंगे।”सुधा के तीर कभी खत्म होते ही नहीं‌ ।इनकी तरकश में बहुत तीर सुरक्षित रखें हैं।बाद‌ में सही समय पर फिर इस्तेमाल करेंगी ये सुधा जी।

बेटे की पढ़ाई खत्म होते ही नौकरी लग गई दूसरे शहर में।गौरव ने कहा सोनू से”अब शादी -ब्याह के बारे में सोचो बरखुरदार।दुल्हन को लेकर जाना होगा अपने साथ।”सोनू बस जी पापा बोले कर रह गया।

रात में मम्मी से बताने लगा शादी डॉट कॉम की लड़कियों के बारे में।”देखो मम्मी,ये सुंदर है ना।जॉब  भी करती है।परिवार भी अच्छा ही लग रहा है,बस एक ही उलझन है कि विजातीय है।”

“हैंएएएएएए,सुधा चौंक कर बोली”धीरे बोल सोनू ,तेरे पापा ने सुन लिया तो अनर्थ हो जाएगा।तुझे तो घर से निकालेंगे ही,मेरा बोरिया बिस्तर भी फेंक देंगे।सजातीय के बिना नहीं मानेंगें वो।”

“और आप?आप भी क्या जात -पात मानती हैं।आप को तो बचपन से ही देख रहा हूं।पापा जितने सख्त,आप उतनी ही कूल हैं।आपको तो मना भी लूंगा,पर पापा को मनाना असंभव है।आप ही बात करके देखिए ना।”सोनू ने लाड़ करते हुए कहा।

गौरव जी मां -बेटे की बातें सुन चुके थे। उन्होंने सोचा कि मैं कब से जात-पात मानने लगा।मेरे बेटे को पसंद हो बस,ओर क्या चाहिए।नहीं -नहीं आज तो सुधा से पूछना ही पड़ेगा कि क्यों खुद निरुपा रॉय बनी रहती है और मुझे खलनायक बना कर रखती है बच्चों के सामने।

सोने जाकर देखा सुधा ने कि गौरव तो दूसरी तरफ मुंह करके लेटे हैं।तुरंत समझ गई कि मामला गंभीर है।पास जाकर हिलाया और बोली”तबीयत तो ठीक है ना आपकी?खाना भी नहीं खाया।पैरों में दर्द हो रहा हो तो दवा लगाकर दबा दूं।”

गौरव जी गुस्से से बिल्लिआए थे ही,बोले”तुम्हें शर्म नहीं आती सुधा,और कब तक मुझे बेटे के सामने गुस्सैल,अकड़ू ,जिद्दी पिता बनाकर रखोगी?ख़ुद तो  सारा दिन बेटे को पल्लू से बांधे रखती हो,और मेरे बारे में झूठ बोल -बोल कर मुझे बुरा पिता बना दिया।मैं कितना प्यार करता हूं

उनसे क्या तुम्हें नहीं पता?बचपन से ही बेटे -बेटी को मेरा काल्पनिक परिचय दिया।तुम अच्छी मां बन गई ,मुबारक हो।मैं बुरा पिता बनने की जलालत सहूंगा ,और क्या।”

सुधा समझ गई थी कि ,आज पतिदेव का पारा ज्यादा ही चढ़ गया है।असली बात अब बतानी ही पड़ेगी।पति का हांथ अपने हांथ में लेकर बोली सुधा,”,सुनिए  जी,हम। माएं ना गाय होती हैं।जैसे ही बछड़े ऱंभातें हैं,हम मांएं रंभाना शुरू कर देती हैं।

बच्चों की अच्छी मां बनने का तमगा नहीं‌ चाहिए।आप पिता हैं,इस घर के कमाऊ पुरुष।आप का रौब और दबदबा सदा बने रहना चाहिए। तिनका -तिनका जोड़कर,अपने शौक मारकर हमने घर बनाया,परिवार बनाया।एक गलती से पूरा परिवार टूट सकता है।रिश्ते टूट सकते हैं।आप पुरुष घर का” खूंटा” होते हैं,जिससे गाय और बछड़ा -बछड़ी बंधे होते हैं।कहीं भी जाएं,कुछ भी कर लें पर घर आकर आप से ही बंधना है।”

सुधा गंभीर होकर बोले जा रही थी और आंखों से निर्मल धारा भी बह रही थी।गौरव ने आंसू पोंछते हुए कहा”पर सुधा,तुम तो कभी मुझसे डरकर नहीं रही।तुम्हें हर आजादी दी है मैंने।इस घर को बनाया भले मैंने है,घर को घर तुमने बनाया है।मैंने हमेशा तुम्हारा साथ दिया, सम्मान दिया,प्रेम दिया।तुम क्यों यह झूठ अपने आप के साथ ढोल रही हो कि तुम्हें मुझसे डर लगता है।बच्चे भी मुझे शैतान पति समझते होंगें।”

“बस कर दी न आदमी वाली बात।स्त्री का मन पढ़ना सच में नहीं आता आप लोगों से।अरे जिस घर में पापा का डर रहता है ना,बच्चे कभी ग़लत राह  नहीं चलते।मुझे डरा हुआ समझकर वो भी ज्यादा तो नहीं  थोड़ा डरतें हैं।यह”डर” नहीं, प्रमाणपत्र है सुखी परिवार का। पत्नी-पति यदि बच्चों के सामने बात -बात पर एक दूसरे को दोषारोपण करते हैं,तो बच्चों का अपने माता-पिता के प्रति सम्मान और इज्ज़त कम होने लगती है।”

सुधा ने आगे कहना जारी रखा।आप का नाम लेकर ही बच्चों की बस कभी मिस नहीं हुई।आपकी मेहनत का डर दिखाकर बच्चों को  खाना पूरा खाना समझाया ।देर रात तक घूमना अनिष्ट का कारण बनता है ,इसलिए आप के नाम का इस्तेमाल कर दिया। शादी-ब्याह गुड्डे-गुड़ियों का खेल नहीं कि पसन्द आ गई। शादी सजातीय ही टिक पाती हैं।बचपन से आपके झूठे  गुस्से को हथियार बनाकर मैंने अपने परिवार को चलाया है धुरी पर, केंद्र बिंदु आप ही हैं।

जिस घर में पिता का डर नहीं,वह घर बेलगाम घोड़े जैसा बिखर जाता है

आप  तो मेरे सुरक्षा कवच हैं।”

गौरव‌ जी ने हंसते हुए पूछा”अच्छा सुधा,बहू के सामने मेरा नाम लेकर बदनाम ना करना। पराई लड़की को अपनाना है हमें,उस पर शासन‌ नहीं करना है।”

सुधा जी चपल मुस्कान लिए बोली”तब मुझे कुछ नहीं बोलना पड़ेगा,सोनू ही सारे नियम कायदे समझा देगा अपनी दुल्हन को।पर हां ज्यादा तरफदारी ना करने लग जाना अपनी दूसरी बेटी आने पर।”

आज गौरव‌ जी सुधा के बारे में यह गूढ़ रहस्य जान कर कर विस्मित हो रहे थे।सच में ये औरतें एक ही समय में कितने किरदार कर सकतीं हैं।कितनी अच्छी बात बोली, मांओं के लिए “गाय”और पिता के लिए “खूंटी”।

सोनू की शादी हो गई निर्विघ्न।कथा,पूजा,मुंह दिखाई से फारिग होकर सभी आराम करने गए।पानी लाना शायद भूल गई होगी सुधा,सोचते हुए किचेन में जाकर पानी लाने लगे,तभी सामने दालान में सोनू अपनी नवविवाहिता के साथ बैठा दिखा।

दोनों शायद बात कर रहे थे। डिस्टर्ब क्यों करना?आगे बढ़े ही थे कि सोनू की आवाज कान में पड़ी”देखो स्वाति,इस घर में दादा-दादी, पापा-मम्मी चार  लोग ही बड़े हैं इस घर में।मां तो बेहद कूल  हैं।किसी बात का बुरा नहीं मानती।तुम बस पापा का ख्याल रखना।जल्दी सोने चलो,सुबह पापा को बिस्तर में ही चाय चाहिए।”

अब गौरव हंसे बिना नहीं रह पाए।अरे जिस औरत से मैं डरा रहा,उसने अपने मन का सब करवा लिया मुझसे।अब वो ही दिखा रही है कि मुझसे डरती है।

सच में, स्वर्ग में देवता भी मांओं की बुद्धि कौशल देखकर मुस्कुरा रहे होंगे।

शुभ्रा बैनर्जी

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