सैलाब तो आना ही था – कमलेश आहूजा  : Moral Stories in Hindi

“हेलो माँ मैं निधि बोल रही हूँ आप जल्दी से हमारे पास जाओ। इनकी तबियत ठीक नहीं है।” बहू का इतने दिनों बाद फोन आया वो भी बेटे के स्वास्थ्य को लेकर तो सुगंधा चिंतित हो गई। घबराकर बोली-“क्या हुआ प्रतीक को?”

“कल ऑफिस में अचानक इनकी तबियत बहुत खराब हो गई थी। ऑफिस के लोग ही हॉस्पिटल ले गए थे। मुझे भी फोन कर दिया था तो मैं सीधी हॉस्पिटल पहुँच गई थी। डॉक्टर ने बोला इनका बी पी बहुत हाई हो गया था। यदि आने में थोड़ी देर और हो जाती तो कुछ भी हो सकता था।”

“क्या बोलूं मैं? जिसकी पत्नी उसे हर समय कोसती रहती हो..आपको ये नहीं आता आप से ये नहीं हो सकता बोलकर उसे नकारा साबित करने में लगी रहती हो ये नहीं है वो नहीं है कहकर घर में क्लेश करती रहती हो उस पति के साथ एक दिन तो ये होना ही था।” सुगंधा ने बड़ी सहजता से अपनी बात कह दी। 

“आप अभी भी ऐसी बातें कर रहीं हैं आपको अपने बेटे की कोई चिंता नहीं है?”

“बेटे की चिंता थी तभी तो तुझे समझाती रहती थी कि घर में शांति रखा कर। तब मेरी बातें तुझे तीर सी चुभती थीं। तुझे लगता था मैं तुझपे अपना अधिकार जमाना चाहती हूँ।”

“इन बातों से किसी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता मां।”

“तुझे फर्क नहीं पड़ता होगा पर मेरे बेटे को फर्क पड़ता था। एक तो बेचारे के सर से इतनी जल्दी पिता का साया उठ गया दूसरा माँ की जिम्मेदारी उसके कँधों पर आन पड़ी। पिता के अंतिम समय में उसने उनको वचन दिया था कि वो कभी माँ को अकेला नहीं छोड़ेगा। सदा अपने पास रखेगा। मेरा बेटा मुझे जरा तवज्जो देता तो तू और तेरे घर वाले उसे माँ का चम्मचा कहकर उसका मजाक उड़ाते। तूने उसे तलाक की धमकी देकर मुझसे दूर कर दिया। वो चाहता तो तुझे छोड़ देता पर उसने दुखी मन से मुझे ही अपने घर जाने को बोल दिया। क्योंकि वो तुझे खुश देखना चाहता था। तू क्या जाने जब वो मुझे छोड़ने आया तो मुझसे लिपटकर कितना रोया था बार बार यही कहे जा रहा था माँ मुझे माफ कर दो मैं पापा से किया हुआ वादा नहीं निभा पाया। कितना दर्द सहा होगा मेरे बेटे ने? अंदर ही अंदर कितना घुलता रहता होगा? सहने की भी एक सीमा होती है सब्र का बांध एक दिन टूट ही जाता है। अब मेरे बेटे के भी सब्र का बांध टूटा है फिर सैलाब तो आना ही था।” कहते कहते सुगंधा की साँस फूल गई। 

“मुझे माफ करदो माँ अब मुझसे कोई गलती नहीं होगी।”

“इतने दिनों में तूने एक बार भी मुझे फोन नहीं किया। और करती भी क्यों?तेरे लिए तो मैं एक काँटा थी जिसे तूने अपने जीवन से कब का निकाल दिया था। तू अपनी मनमानियाँ कर रही थी और अपने मायके वालों के साथ खुश थी। ये तो मेरे बेटे के संस्कार ऐसे थे वरना कौन बर्दाश्त करता है किसी को ?”

“मैं आपका टिकट बुक कर रहीं हूँ। आप बस अपनी आने की तैयारी कर लेना।”

सुगंधा ने बिना कोई उत्तर दिए फोन काट दिया। वो इसी दुविधा में थी कि जाऊँ की नहीं जाऊँ?

एक तरफ ममता जोर मार रही थी तो दूसरी ओर बहू से मिली नफरत उसे बेटे से मिलने को रोक रही थी। 

अंत में जीत ममता की हुई। सुगंधा ने बेटे के पास जाने का मन बना लिया। 

बेटे की हालत देख सुगंधा की आँखों से अश्रु की धारा बहने लगी। निढाल सा बिस्तर पर ऐसे पड़ा हुआ था मानो शरीर में जान ही ना हो। बेटे के सर पे उसने प्यार से हाथ फेरा तो वो बच्चों की तरह बिलख-बिलखकर रोने लगा माँ मैं अब आपको कहीं नहीं जाने दूँगा। मरते दम तक अपने पास रखूँगा। 

“ऐसा नहीं कहते बेटा तुझे कुछ नहीं होगा। मैं हूँ ना तेरे साथ।” बेटे के मुँह पर हाथ रखते हुए सुगंधा बोली। 

निधि मूकदर्शक बनी माँ बेटे का मिलन देख रही थी। उसके चेहरे पे अफसोस के भाव साफ झलक रहे थे। 

#अफसोस 

कमलेश आहूजा 

25/505 फेज 5

एचडीएफसी बैंक के सामने

वसंत विहार

थाने (महाराष्ट्र)

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