शहीद बेटे की मां – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

जैसे ही तेजाराम का  पार्थिव शरीर पैतृक गांव पहुँचा तो पूरा  गांव उमड़  पड़ा अपने लाडले  बेटे के अन्तिम दर्शन करने हेतु ।मां तो जैसे पत्थर  की मूर्ति बन गई।

न रोना न कोई प्रतिक्रिया देना  जैसे बैठी थी बैठी रह गई  । पत्नी देखते ही  चीख मार कर बेहोश हो गई। अभी उन्होंने साथ जीवन  जिया ही कितना था,मात्र तीन साल  और जीवन भर का साथ छूट गया।

सब लोग फूल मालाएं अर्पित कर रहे थे।

 मां के मन में अतीत के पन्ने फाडफडा रहे थे। ऐसे ही तो एक दिन आज से पच्चीस वर्ष पहले उसके पति का पार्थिव शरीर आया था

तब उनकी गोद में यही बच्चा मात्र एक वर्ष का था और उसने अपने पिता को मुखाग्नि दी थी। पति केजाने के बाद कैसी तो उसकी जिन्दगी बिखर गई थी।उम्र ही  क्या थी उसकी मात्र बाइस वर्ष। कैसे उसने अपना पूरा जीवन इस बच्चे की परवरिश में झोंक  दिया। किन्तु अपने पिता के पदचिन्हों पर चलता जब 

उसने भी बड़े होकर सेना में जाने  कि

जिद की तो वह उसे रोक नहीं पाई।

लेफ्टीनेन्ट केडर में उसका  चयन  हुआ उस  दिन फौज की बर्दी में उसे  देख  उसका सीना गर्व  से चौड़ा हो गया था । अभी दिन ही कितने  हुए थे मात्र तीन साल  और बेटा भी शहीद हो गया। बहू  की गोद में मात्र आठ माह का पुत्र है तो क्या तेजाराम की  तरह ही  बह अपने पिता को मुखाग्नि देगा।

क्या बहू भी उसकी तरह पूरा जीवन वैधव्य को ढोती गुजारेगी। हे भगवान ये किस बात  की सजा दी तूने । कुछ दिन तो मेरे तेजा को हंसने खेलने देता।

वह निर्विकार भाव  से बैठी बेटे का मुख, निहार रही थी जैसे सो रहा हो उठते ही अभी उसे मां कहकर पुकारेगा। पत्नी रह-रहकर चीत्कार कर उठती । सभी की आंखें नम थी। उसके साथी जो साथ पढे, खेले थे रो-रोकर  उसकी बातें याद कर रहे थे।

 अंतिम संस्कार की तैयारी पूरी हो चुकी थी । मां उसके शरीर से लिपट गई और फूट-फूट कर   रोने  लगी।

फिर उसने अपने को सम्हालते हुये बहू को भी सम्हाला बोली चल बेटा अन्तिम विदाई क समय आ गया। वह बहू और पोते को ले साथ  गई । पोते से ही उसके पिता को 

मुखाग्नी दिलवाई । फिर खुद संयत  होते बहू  से बोली रो मत ,रोकर बेटे शहीद का अपमान नहीं करते। 

फिर वह बोली में क्यों न करूं अपनी किस्मत पर नाज एक शहीद की पत्नी एवं एक शहीद  बेटे की मां जो हूं । देशभक्ति का जज्बा जो  मेरे पति और बेटे में था,उस पर

  मुझे गर्व है। देश के लिए मेरे पती एवं बेटे ने अपना जीवन न्यौछावर  कर दिया। मुझे उनकी वीरता पर  गर्व है और अपनी किस्मत पर नाज है कि  एक वीर की पत्नी होने का सौभाग्य मिला वहीं बाहदुर बेटे की माँ का होने का। यह बोलते  ही उसने एक जोरदार अट्टहास किया जो पूरे वातावरण में गुंजायमान हो उठा।

शिव कुमारी शुक्ला

8-6-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

वाक्य कहानी प्रतियोगिता

क्यूं न करूं अपनी किस्मत पर नाज़

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