सहेली बनी भाभी-नीरजा नामदेव

चारु और इरा बहुत ही अच्छी सहेली  थी। बचपन से दोनों साथ खेलती ,साथ ही स्कूल जाती । ऐसा करते करते दोनों कॉलेज  पहुंच गईं। दोनों हमेशा ही साथ रहती ।चारु बहुत ही समझदार और शांत स्वभाव की थी। इरा  चंचल  थी।उसे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता था। जब भी इरा गुस्सा करती चारु हमेशा उसे शांत कर देती ।  उनकी दोस्ती कभी भी नहीं टूटी। दोनों के परिवारों में भी अच्छे संबंध थे।  इरा की मां की मृत्यु बहुत पहले हो गई थी। इसलिए घर को इरा ने ही संभाला हुआ था। इरा के पापा और भैया उस का बहुत ध्यान रखते थे ।चारु की मां भी इरा को बेटी के समान ही मानती थी। दोनों में कोई भेदभाव नहीं करती थी।

        इरा के भैया  उदित  की शादी की बातें होने लगी। तब इरा ने सोचा कि चारु ही अगर मेरी भाभी बनकर आ जाती है तो कितना अच्छा रहेगा। हम हमेशा साथ रहेंगे। और वह यह बात अपने पापा और भैया को बताती है। उन्हें भी यह बात अच्छी लगती है।  उदित चारु को बचपन से देखते आया था और उसके गुणों को जानता था। इसलिए उसने शादी  के लिए हां कर दी।  इरा के पापा रिश्ता लेकर चारु के घर जाते हैं तो चारु के माता-पिता भी बहुत खुश होते हैं। बहुत धूमधाम से दोनों की शादी हो जाती है । इरा तो बहुत ही खुश थी।चारु के आते ही इरा ने कहा कि अब आपना घर संभालो ।मैंने बहुत दिन संभाल लिया।अब आराम करूंगी और हंसने लगी।

    चारु धीरे-धीरे घर संभाल लेती है। अब इरा को आराम मिल जाता है।   उदित और इरा  साथ में खुश हैं।चारु अधिकतर घर संभालने और कामों में लगी रहती थी ।इरा तो यही सोचती थी चारु आ जाएगी तो हम हमेशा साथ में ही रहेंगे। लेकिन अब चारु  बहू  और पत्नी बन गई थी।  इसलिए दोनों जिम्मेदारियों को भी निभाती थी।


        इरा को लगने लगा कि धीरे धीरे चारु का महत्व घर में बढ़ने लगा है। कोई भी सामान लेना हो या कोई भी निर्णय लेना हो तो चारु को बहू होने के कारण  शामिल किया जाता ।

      कभी कभी उदित  और चारु उसके दोस्तों के यहां बुलाने पर घूमने जाते तो इरा को अच्छा नहीं लगता। दोनों इरा का बहुत ध्यान रखते ।  सब का व्यवहार इरा के प्रति पहले ही जैसे था लेकिन पता नहीं क्यों इरा को अपने घर में अकेले रहने और सब कुछ अकेले संभालने की आदत थी इसलिए वह चारु के आने के बाद अपना प्यार बंटता हुआ महसूस कर रही थी। इस कारण उसे बहुत ज्यादा गुस्सा आ जाता था।  धीरे धीरे उसके मन में चारू के प्रति  ईर्ष्या की भावना उत्पन्न होने लगी।  उनमें धीरे-धीरे दूरियां आने लगी। चारु को यह बात बिल्कुल भी समझ में नहीं आती थी। वह तो सबका बराबर ध्यान रखने की, समय देने  की कोशिश करती। उसकी परिवार के प्रति भी कुछ जिम्मेदारियां थी जिसके कारण वह पहले जैसे इरा के साथ रहती थी वैसे नहीं रह पाती थी । कभी ऐसा होता  कि उदित के  ऑफिस के किसी के यहां कोई कार्यक्रम होता  जिसमें  पति पत्नी को जाना होता  तो दोनों चले जाते। यह बात इरा को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती । वह नादानों के जैसा व्यवहार कर रही थी।

उसने  चारु से बात करना एकदम कम कर दिया था । चारु पूछती रहती लेकिन वह नहीं बताती थी।

अब इरा के लिए भी रिश्ते आने लगे। विनय के साथ इरा का रिश्ता तय हो गया। चारु ने शादी की सारी तैयारियां बहुत ही अच्छे से की और धूमधाम के साथ इरा और विनय की शादी हो गई । जब इरा अपने ससुराल पहुंची तो उसने देखा कि वहां उसे कितना महत्व दिया जाता है । उसकी भी ननदें थी जो  हर काम में उसके साथ रहती थीं। उसके परिवार के लोग उसकी भी सलाह लेते थे। उसकी ननदें उसका बहुत ही ज्यादा ध्यान रखती थी उनके मन में कभी भी इरा के लिए जलन की भावना नहीं आती थी।

    अब इरा को पति पत्नी के रिश्ते का महत्व समझ में आया कि पति पत्नी का रिश्ता अलग होता है जिसमें दोनों को एक दूसरे के साथ समय देना जरूरी होता है। उसके ऊपर भी जब घर की जिम्मेदारियां  आयीं तो उसे भी अपने कर्तव्य का बोध होने लगा।


    तब  उसे चारु की बातें याद आने लगी ।  वह सोचने लगी मैंने चारु को  कितना परेशान किया। मैं ही उसे भाभी बना कर लाई  और फिर मैंने उससे कितना बुरा व्यवहार  किया।

     वह अपने मायके जाने के लिए छटपटाने लगी । उसने यह बात विनय से कही। विनय उसे लेकर मायके आया। इरा आते ही चारु के  गले लग गई और रोने लगी।  सबने सोच इतने दिनों बाद मायके आई है इसलिए रो रही है ।  जब खाली समय मिला तो इरा चारु के पास जाकर माफी मांगने लगी  कि मैंने तुम्हारे साथ कितना बुरा व्यवहार किया। तुम तो हमेशा मेरी अच्छी सहेली बनी रही लेकिन मैंने तुम्हारे साथ ठीक नहीं किया।   मैं जब बहू और पत्नी बानी तो मुझे पता चला कि  मेरी एक अलग जगह  है।

तुम्हारे आने के बाद मुझे ऐसा लगता था कि पापा और भैया मुझसे ज्यादा तुम्हें महत्व दे रहे हैं जबकि यह बात ठीक  नहीं थी । वे दोनों तो हमेशा पहले जैसे ही मुझसे उतना ही प्यार करते थे । यह सब बातें अब मुझे समझ में आ गई हैं। मेरी ननदें इतनी अच्छी है। मेरे साथ इतना अच्छा व्यवहार करती हैं। मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया मुझे माफ कर दो।

चारु  एकदम खुशी से उसे गले लगा लेती है और कहती है इतने दिनों बाद मेरी प्यारी सहेली मुझे वापस मिल गई। मैं तो इसी से खुश हूं और मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई भी बात नहीं है। मैं समझ रही थी तुम्हारे मन की भावनाओं को। मैंने कई बार  तुम से बात करने की कोशिश की।  लेकिन तुम तो अपने गुस्से में मेरी बात सुनती ही नहीं थी, तो मैं क्या करती। मैं जानती थी मेरी सहेली है एक न एक दिन मुझे वापस जरूर मिल जाएगी । दोनों गले लग गईं। दोनों के आंसुओं से पुरानी बातें धूल गईं।

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