सहारा – निधि जैन

 

अरे तू बहुत मनहूस है, जितने भी लड़के देखने आए, वो सब तुझे मना करके चले गए, तू तो अमावस की वो काली रात है, जब पैदा हुई तो अपने ही मॉं-बाप को खा गई, और पता नहीं किस किस को खा कर दम लेगी ये लड़की, अब और कहॉं जाऊं, कैसे करूंगी तेरी शादी, सोचा था शादी कर दूंगी तो इस घ़र से बला टलेगी, परन्तु वो भी नहीं हो पा रहा, रेशम की चाची (सुशीला) बड़बड़ाते हुए सब्जी बना रही थी, 

अरे दीदी अभी रेशम की उम्र ही क्या है, बस १५ की ही तो हुई है, वो मनहूस ख़ुद के लिए है, हमारे लिए तो वो काम की है, घ़र का पूरा काम करती है ना, ख़ाने में भी नख़रे नहीं करती, जो भी दे दो शांति से खा लेती है, और फ़िर अच्छी नौकरानी मिल जाए तो इस बला को यहां से निकाल देना, सुमन ने सुशीला से कहा।

रेशम कमरे के बाहर खड़ी हुई सब सुन रही थी, उसे अपने बचपन का एक एक वाक्या जो उसने इतने सालों में देखा उसे सब याद आ गया।

दरअसल मिन्नी उर्फ़ रेशम जब २ साल की थी,  तब उसके मॉं-बाबा की एक दुर्घटना में मौत हो गई, और उसके दादा-दादी और चाचा (शेखर) ने ही उसकी देखभाल की, शेखर की शादी हुई, घ़र में चाची का प्रवेश हुआ, शेखर ने सोचा बिन मॉं की बच्ची को चाची से मॉं का प्यार मिल जायेगा, परन्तु ऐसा हुआ नहीं, उसको सभी से बहुत प्यार मिला सिवाय उसकी चाची से, सभी ने उसकी चाची को बहुत समझाया किन्तु वो उसे अपनी बच्ची मान ना सकी, हमेशा रेशम को किसी ना किसी बात पर ताना मारती रहती, उसे अहसास करवाती रहती कि उसके मम्मी पापा की जान उसकी वज़ह से गई है, रेशम से प्यार करना तो दूर सुशीला उसे ढंग से बात भी ना करती, इन सभी से दुःखी होकर कुछ सालों में दादा-दादी भी अपने बेटे बहु की य़ाद में चल बसे, सो उसको दादा-दादी का प्यार भी कम नसीब हुआ, इस प्रकार उसका बचपन बीता, शेखर तो बहुत ख़्याल रखता, अपनी ज़ान से ज़्यादा चाहता था, रेशम को अच्छी शिक्षा देने के लिए स्कूल में दाखिला भी दिलाया, जब भी गांव से बाहर जाता कुछ ना कुछ ज़रूर उसके लिए लेकर आता, इन सब से सुशीला का मुंह बन जाता, शेखर से इसी बात पर लड़ाई करती कि अपने बच्चों को लाते हो वो ठीक, पर उस मनहूस को लाने की क्या ज़रूरत, फ़िर शेखर झिड़ककर कह देता कि तुम मानो या ना मानो मेरे ३ बच्चे है, मैं तीनों को लाऊंगा, और कितनी बार कहा है कि रेशम मनहूस नहीं है, उसे ऐसे अपशब्द मत कहा करो, तुम सुनती ही नहीं, इन सब बातों के कारण सुशीला कुछ ना कर पाती। किन्तु जब शेखर शहर में काम के लिए जाता तब सुशीला, रेशम पर बड़े ज़ुल्म ढाती, 

रेशम… अरी रेशम कहां मर गई, सुनती ही नहीं, सुशीला ने बड़ी ज़ोर से आवाज़ लगाई। 

रेशम हड़बड़ाकर अंदर आई, जी चाची कहिए क्या बात है, उसने कहा।

कहां मर गई थी, कब से आवाज़ लगा रही हूं, तुझे सुनाई ही नहीं देता, अच्छा सुन आज़ कुछ मेहमान आ रहे है, तो अच्छे से पूरा घ़र साफ़ कर दे, फ़िर आंगन में भी झाड़ू लगा देना, पेड़ के बहुत पत्ते गिरे पड़े है वो भी साफ़ कर देना सुशीला ने चिल्लाते हुए कहा।




जी चाची, मैं कर देती हूं, रेशम ने उत्तर दिया और झाड़ू लेकर निकल गई आंगन साफ़ करने,  

अभी तो मेहमान आकर गए, फ़िर से अब कौन आने वाला है, चाचाजी ने तो एक का ही कहा था, रेशम मन ही मन सोच रही थी।

ये देख बेटा तेरे चाचा क्या लाया तेरे लिए, कहकर शेखर ने एक नया सलवार सूट निकाला, 

चाचा ये तो बहुत सुंदर है, क्या सच में ये आप मेरे लिए लाए है, रेशम ने थोड़ा रुआंसी होकर कहा।

क्यों तुझे अपने चाचा पर भरोसा नहीं है क्या?? कोई दिक्कत में है तू?? मुझे बता बेटा क्या हुआ है, तू बहुत बुझी हुई सी क्यों दिख रही है मुझे, शेखर ने रेशम से पूछा।

अपने चाचा की बात सुनकर थोड़ा फुसक फुसक कर रोने लगी, 

शेखर समझ गया कि सुशीला ने ही उसको कुछ भला बुरा कहा होगा, चाची ने कुछ कहा क्या?? शेखर ने रेशम से पूछा।

हम्म धीरे से सर हिलाते हुए उसने जवाब दिया।

नहीं चाचा, चाची को कुछ मत कहो, वो इतनी भी बुरी नहीं है, और वो कुछ ग़लत तो नहीं कहती कि मैं अपने मम्मी पापा की मौत की ज़िम्मेदार हूं, मेरे लिए ही तो गए थे ना बाज़ार, वहां तूफ़ान आया और फ़िर वो कभी घ़र बापिस आए ही नहीं, कहकर रेशम रोने लगी।

बेटा सबसे पहले तो तू रोना बंद कर, और चाची ने ग़लत कहा है, बहुत हो गया यहां चाची का नाटक,ऐसा कुछ भी नहीं है, और इतने जल्दी मैं तेरी शादी होने ही नहीं दूंगा, मैंने तेरा दाखिला शहर के एक कॉलेज में करवा दिया है, अब से तू वहीं रहकर पढ़ाई पूरी करेगी, यहां के काम तो होते ही रहेंगे, यहां सुमन लकी और आज़ाद है ये सब काम वो लोग करेंगे, अब मैं अपने भाई की इच्छा को पूरा करूंगा, इतना कुछ सह लिया तूने बेटा, और मैं अब तक कुछ नहीं कर सका, परन्तु आज़ से तू ये सब नहीं सहेगी, और तू अमावस की काली रात नहीं, तू तो मेरा वो अमावस वाला चांद है, जो अंधेरे में भी रोशनी देता है, शेखर ने कहा,

चल मेरे साथ अंदर कहकर शेखर ने रेशम का हाथ पकड़ कर घ़र के अंदर की ओर आने लगे।

सुशीला ,सुमन , सुशीला… कहकर शेखर ने ज़ोर से आवाज़ लगाई।

हां क्या हुआ क्यों इतनी ज़ोर से चिल्ला रहे हो, कौन मर गया है जो इतनी आवाज़ लगा रहे हो, सुशीला बाहर आते हुए बोली।




अरे जीजाजी आप इतनी ज़ोर से क्यों चिल्ला रहे है, सुमन ने आकर कहा।

लकी और आज़ाद कहॉं है? उन दोनों से कुछ बात करनी है, शेखर ने कहा।

ए लड़की तू यहां क्या कर रही तुझे जो काम बोला था वो हो गया, अभी कुछ देर में मेहमान आने वाले है पता है ना, चाची ने कमर पर हाथ रखते हुए रेशम से कहा।

रेशम जाने को हुई, 

रूक बेटा, शेखर ने रेशम को रोककर कहा।

पहले मैंने जो पूछा उसका जबाव चाहिए सुशीला, और ये कहीं नहीं जाएगी यहां से, वैसे भी तुम्हे रेशम आंखों में चुभती है, उसको और कितने ताने मारने है तुम्हे, उसे मॉं का प्यार तो तुम दे ना सकी, कम से कम उसे अहसास तो मत कराओ कि उसके मॉं बाबा नहीं है, बचपन से वो तुम्हारा सारा काम करती आई है इस उम्मीद में कि एक दिन तुम प्यार से सर पर हाथ रख़ दोगी और कहोगी कि बेटा चिंता मत कर मैं हूं तेरे लिए, किन्तु नहीं….शेखर ने चीख कर सुशीला से कहा।

हां तो मुझे ये सब मत सुनाओ, मैं क्यों पालू दूसरे के बच्चे, मेरे अपने बच्चे है, और इस लड़की की वजह से इतना चिल्ला क्यों रहे हो, घ़र में रहेगी तो फ्री का खाना तो मैं नहीं दूंगी, इसलिए घ़र के काम है, इसे करने के लिए कहा है, सुशीला ने ऊंची आवाज़ करके कहा।

अब घ़र में रहेगी तो चार काम तो करने ही पड़ते है ना जीजाजी, थोड़ी मेहनत नहीं करेगी तो खाना कैसे पचेगा इसका, सुमन ने कहा।

सुमन तुम तो चुप ही रहो तो अच्छा है, और अपना सामान बांध लो, और अपने घ़र जाओ, यहां मेरे घ़र में कलह मत करो, शेखर ने सुमन से ऊंची आवाज़ में कहा।

तुम सुमन को बेवजह क्यों सुना रहे हो, मेरी बहन है, वो कहीं नहीं जायेगी, समझे तुम, सुशीला ने चिल्ला कर कहा।

 

जाना तो इसे पड़ेगा, क्योंकि मैं अब इसका ख़र्च और नहीं उठा सकता, और हां रेशम की आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेज रहा हूं, जैसा उसके पिता चाहते थे वैसा, तुम तो कभी यहां उसे पढ़ने नहीं दोगी, तुमको तो वो फूटी आंख ना सुहाती, शेखर ने कहा।

हा. . हा.. और चढ़ाओ इसे सिर पर, मुझे क्या, वैसे भी तुमको तुम्हारे बच्चे तो दिखते ही नहीं, ना तुम्हारा कोई कर्तव्य नहीं है बच्चों के प्रति, बस इसे बढ़ाओ आगे, चाची ने चिड़कर कहा।

मेरे बच्चों के प्रति क्या कर्तव्य है मुझे तुमसे जानने की आवश्यकता नहीं है, सब समय आने पर मैं अपने कर्तव्य का वहन करूंगा, फ़िलहाल तो मेरा कर्तव्य रेशम के लिए है, तो तुम उसका सामान पैक कर दो, इसे आज़ ही शहर लेकर जाना है, कल से इसका कॉलेज शुरू होगा और ये अब वहीं रहेगी, शेखर ने आदेशपूर्वक सुशीला से कहा।

सुशीला बिना कुछ कहे कमरे में जाकर समान पैक करने में जुट गई, उधर सुमन ने भी समान पैक कर लिया,




शेखर, सुमन के घ़रवालों को फ़ोन किया, 

हेलो, जी पापाजी नमस्ते, शेखर बोल रहा हूं, अंबर को भेज दीजिए, वो सुमन को ले जायेगा।

क्यों दामाद जी, ऐसा क्यों कह रहे है आप, बच्ची से कोई ग़लती हो गई क्या? सुमन के पिताजी ने फ़ोन पर कहा

नहीं जी कोई ग़लती नहीं हुई, वो बहुत दिन हो गए और ज़्यादा दिन उसका यहां रहना ठीक भी नहीं, बस इसलिए…शेखर ने कहा।

वैसे मैं बहुत दिन से सोच रहा था कि सुमन की शादी के विषय में आपसे चर्चा करना चाहता था, क्या ख़्याल है आपका? कोई लड़का है आपकी नज़र में, शेखर ने पूछा।

जी दामाद जी जैसा आप कहे, घ़र आइए फ़िर बैठकर इस विषय पर चर्चा करते है, पिताजी ने कहा।

जी अच्छा, समय निकाल कर आता हूं, परन्तु अभी आप अंबर को भेज दें ताकि सुमन सुरक्षित घ़र पहुंच जाए, मुझे रेशम को शहर लेकर जाना है, आज़ ही उसका दाखिला कॉलेज में करवाया है, आज़ से वो वहीं रहेगी, शेखर ने फ़ोन पर बताया। 

ठीक है मैं फ़ोन रखता हूं, फ़िर समय निकाल कर आपसे मिलने आता हूं, जी नमस्कार कहकर शेखर ने फ़ोन कट कर दिया।

कुछ ही देर में अंबर भी आ गया और सुमन उसके साथ घ़र के लिए निकल गई।

थोड़ी ही देर में रेशम तैयार होकर बाहर आई, सुशीला ने उसके ज़रूरत के हिसाब से सब सामान रख दिया।

बेटा मिन्नी हो गई तैयार, शेखर ने कहा।

जी चाचाजी, परन्तु…. दबी हुई आवाज़ में रेशम ने कहा।

क्या हुआ बेटा, तू डर क्यों रही है, मैं तेरे से मिलने आता रहूंगा, और वहां तेरे नई सहेली भी बन जायेगी, तो कोनसा तू अपने चाचा को य़ाद करेगी, शेखर बोल ही रहा था कि रेशम उससे गले लगकर रोने लगी, 

एक तुम ही तो हो चाचा, दादा-दादी के बाद, जिसने मुझे अपने मॉं बाबा की कमी होने नहीं दी, मेरी इच्छाएं कहने से पहले तुम समझ जाते हो, फ़िर दोबारा कभी ना कहना कि मैं तुमको भूल जाऊंगी, परन्तु यहां लकी और आज़ाद को छोड़कर नहीं जाना मुझे,  रेशम ने रोते हुए कहा।

चल अब रोना बंद कर मेरी अच्छी बच्ची, तू जानती है जब तू पैदा हुई थी, उसी वक्त से तेरे बाबा अक्सर कहा करते थे कि मिन्नी को इतना पढ़ाऊंगा जितना मैं भी नहीं पढ़ा, और उसे सरकारी अफ़सर बनाऊंगा, उसे अच्छी शिक्षा दिलवाऊंगा, इन सब के लिए जितनी भी मेहनत भी लगेगी मैं करूंगा, और एक बार वो अफ़सर बन जायेगी तो ऐसा लगेगा मानो मैंने गंगा नहा लिया, और पता है जब तेरे मॉं बाबा हॉस्पिटल में थे, तब उन्होंने मुझसे कहा कि जो हम नहीं दे पाए वो हमारी बिटिया को देना, उसे इतना प्यार देना कि हमारी कभी य़ाद ही ना आए, बोलते हुए शेखर के भी आंसू गिरने लगे।

और उसी दिन से तुझे कभी अकेला महसूस होने नहीं दिया, बस तेरी चाची ने जो तेरे साथ अन्याय किया, उसे मैं रोक नहीं पाया, इसके लिए तू मुझे माफ़ कर दे, आज़ तेरे मॉं बाबा होते तो कभी तुझे इतना दुःख सहना नहीं पड़ता जितना तुमने सहा, कहकर शेखर ख़ुद को रोने से रोक नहीं पाया, 




शेखर और रेशम के वार्तालाप को सुनकर सुशीला की आंख भर आई, वो दौड़कर आई और रेशम को गले से लगा कर रोने लगी, मुझे माफ़ कर दे बेटी, मैंने तेरे साथ बहुत अन्याय किया, मैं कितनी नासमझ थी जो तेरी मासूमियत को समझ ही ना पाई, इतना दुःख दिया है तुझे, तेरी मॉं को तुझ पर बहुत नाज़ होगा, बेटी तू जा अच्छे से पढ़ाई कर, मैं हर हफ़्ते तुझे मिलने आऊंगी, और लकी, आज़ाद को भी उनकी बड़ी बहन से मिलवाने लाऊंगी, सुशीला रोते रोते बोली।

चाची आप मुझसे माफ़ी मांग कर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए, आप बड़ी है, आपको जो सही लगा आपने वही किया, और मैं आपको धन्यवाद कहूंगी कि आपने मुझे जो भी डांट लगाई, उस डांट से मैंने सारे काम सीख लिये, बहुत बहुत आभार आपका मुझे घ़र के सारे कामों में परांगत बनाने के लिए, हाथ जोड़कर रेशम ने सुशीला से कहा।

देख सुशीला, ये वही बच्ची है, जिसको तुमने नकार दिया, उसे बार-बार अहसास करवाया, मनहूसियत के कितने ताने दिये, इसे कभी तुम मॉं का प्यार ना दे सकी, परन्तु आज़ भी इस बच्ची के मन में तुम्हारे लिए सम्मान है, आभार व्यक्त कर रही है तुम्हारा, शेखर ने कहा।

मुझे माफ़ कर दो शेखर, आप सही कहते थे कि एक दिन ये बच्ची जिसे मैं मनहूस, अमावस की काली रात, और ना जाने क्या क्या अपशब्द कहती थी, वही बच्ची अमावस की रात नहीं बल्कि अमावस के चांद की तरह तुम्हारे अंधेरे मन में रोशनी की लों जला देगी, उस दिन तुम्हारे मन में भी उसके लिए प्यार की कोंपले फूटेंगी, और उस दिन तुम उसे आलिंगन किए बिना नहीं रहोगी, आज़ वही दिन है शेखर, सुशीला ने रेशम को आलिंगन करते हुए कहा।

शेखर के दोनों बच्चे ये दरवाज़े पर खड़े सब देख रहे थे, रेशम ने दोनों को हाथ का इशारा देते हुए पास बुलाया, लकी, आज़ाद मैं शहर जा रही हूं, यहां रहकर तुम भी अच्छे से पढ़ना ताकि जल्दी से मेरे कॉलेज में दाखिला ले सको, और मेरे जाने के बाद चाची को ज़रा भी परेशानी मत देना, अपना काम स्वयं करने की कोशिश करना, जो काम ना हो पाए उसमें दोनों एक दूसरे की मदद करना, और मुझसे मिलने ज़रूर आना, कहकर रेशम ने दोनों को गले से लगा लिया और रोने लगी।

अंत भला तो सब भला कहकर शेखर हंसने लगा।

शेखर को हंसते देख सभी ज़ोर से हंसने लगे।

चलो बेटा गाड़ी का समय हो रहा है, शेखर ने रेशम से कहा।

जी चाचाजी कहती हुई रेशम आगे बढ़ गई।

शेखर ख़ुश था कि रेशम को मॉं बाबा की जो कमी थी, वो अब पूरी हो गई।

रेशम बहुत ख़ुश थी कि उसे चाची का प्यार मिला, जिसके लिए हमेशा से दूर रही, और उसके सर से वो काली रात वाला कलंक भी मिट गया,  क्योंकि वो अमावस की काली रात नहीं बल्कि अमावस का चांद है, जो अंधेरे में रोशनी तो दिखा ही देता है।

 

 

#सहारा 

स्वरचित

 

निधि जैन

इंदौर मध्यप्रदेश 

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