रंजना के जाने के बाद अनिकेत जी का मन घर पर बिल्कुल नहीं लग रहा था…बहू का रूखा व्यवहार उन्हें अंदर ही अंदर और तोड़ रहा था फिर एक दिन तो बहू की बातों में आकर बेटे ने भी बहुत गलत जवाब दिया…बस तब उन्होनें सोच लिया कि अब वो यहाँ नहीं रहेगें…अगले ही दिन उन्होनें पता किया सहारा वृद्धा आश्रम का जो कि वृदांवन में था…!!!!
उन्होंने टिकट कराई और चुपचाप घर से निकल गये और चिठ्ठी छोड़ गयें कि जब मुझे लगेगा मैं वापस आ जाऊँगा…मुझे ढूँढना मत !!
मन उदास था कि रंजना की यादें उस घर से जुड़ी थी और प्यारे बच्चें सनी और रूही के बिना कैसे रहेगें…??
वो आश्रम में पहुँच गये वहाँ के इनचार्ज सुधीर भाई से मिलें तो उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा.उन्होंने उनको सभी साथियों से मिलाया वो सभी साथ बैठे ताश खेल रहे थे…ताश के शौकीन तो वो भी थे बस फिर क्या बैठ गये वो भी खेलने मजा आ गया खाना खाकर आराम करके शाम में सभी गार्डन में इकठ्ठे हो गये….सबने साथ में थोड़ा योग…हाथ ऊपर उठाकर हँसनें का व्यायाम किया…बैठकर सबके साथ बातें की…एक-दूजे का गम बाँटा…कही ना कही सभी दु:खी थे…पर सबके साथ खुश भी बहुत थे….वो भी जब आये तो सोच रहे थे कि कैसे अपने परिवार के बिना रहेंगे…!!!!
पर एक ही दिन में उन्हें समझ आ गया कि ये जगह बहुत प्यारी #जादुई दुनिया हैं यहाँ अपनी बाकि की ज़िन्दगी सुकून से गुज़ार सकते है सोच में डूबे थे कि किसी ने आवाज़ लगाई चलो खाने का समय हो गया…खाना खाकर वो आराम से रंजना को याद करते हुए चैन की नींद सो गये…!!!!
गुरविंदर टूटेजा
उज्जैन (म.प्र.)