राकेश जी अपनी पत्नी माया एवं दो बेटियों निधी एव॔ विधी के साथ सुखपूर्वक जीवन यापन कर रहे थे।निधी बारहवीं की छात्रा थी जबकी विधि अभी आठवीं में ही पढ रही थी।
दोनों बेटियाँ पढ़ने में मेधावी, अनुशासित एवं संस्कारवान थी। मायाजी एक सुगृहणी थी सो अपनी बेटियों का पूर्ण ध्यान रखती थीं। पढाई ,उनकेखाने-पिने से लेकर अन्य हाबीज पूरे करने में।
पता नही कैसे एक अनहोनी घट गई। एक अवारा सा लडका जो न वह पढ़ रहा था, न कोई काम कर रहा था। दिखने मे जरूर अच्छा था एवं सलीकेदार था, उसके बात करने का ढंग भी प्रभावी था।
न जाने कैसे वह एक बार निधी के सम्पर्क मे आ गया। उसने निधी से दोस्ती कर उसकी पूरी पारिवारिक जानकारी हासिल कर ली। अब उसने धीरे- धीरे निधी से प्यार भरी बातें करना शुरू कर दी। निधी इन सब बातों से अनभिज्ञ थी। वह अभी वय संधि के मोड पर थी न बच्ची थी न परिपक्व युवती !
उस लड़के ने उसके भोले पन का फायदा उठाते हुए उसे पूर्रुपेण अपने प्रेम के जाल में फंसा लिया। प्यारभरी बातें करना, भविष्य के ऐसे-ऐसे खुशनुमा सब्जबाग दिखाये कि वह बहक गई। और उससे शादी करने को तैयार हो गई। निधी का उसने ऐसा ब्रेन
वाश किया कि उसे उसके अलावा और कुछ दिखाई ही नही देता था। पढाई मे भी मन नहीं लगता। जब उसने अजीत से कहा कि मेंअपनी पढ़ाई पूरी करने बाद शादी करूंगी तो वह हँसते हुए बोला पढ़ाई की कहाॅ जरूरत हे ,तुम्हें नौकरी थोडे ही करनी है।
मेरे पापा का इतना बड़ा विजनेस है वह अलग जाति के होने के कारण शादी के लिए नहीं माने इसलिए हम भाग कर शादी कर लेते है बाद में सब मान जाएंगें। मैं उनका इकलौता बेटा हूँ सब मेरा ही तो है, तुम्हे रानी बना कर रखूंगा। हाँ, अभी कुछ दिनों के खर्च के लिए तुम जरूर कुछ पैसे और गहने लेकर आजाना।
निधी पूरी तरह उसकी गिरफ्त में थी अत:उसने बैसा ही किया | वह रात को गहने – पैसे ले चुपचाप निकल गई। अजीत बाहर ही खडा था उसे लेकर स्टेशन गया , और ट्रेन पकड कर दिल्ली ले गया जहां उसने एक होटल मे कमरा पहले से ही बुक करा रखा था। दिल्ली पहुँच कर उसे होटल मे ले गया।
थोड़ी देर बैठने ब चाय नाश्ता करने के बाद बोला मै रहने की व्यवस्था करके – आता हूँ। तुम जो गहने और रुपये लाई हो मुझे दे दो यहाँ सुरक्षित नहीं है। उसनै सब उसको दे दिया। अभी आता हूॅ घंटे भर मे। फिर खाना खायेंगे। सब लेकर चम्पत हो गय।
उधर सुबह घर मे निधी को न पाकर हडकपं मच गया अलमारी मैं गहने और रुपये नहीं मिले तो चिंता ज्यादा बढ़ गई। आखिर कहाॅ गई। इधर -उधर ढूंढ ही रहे थे कि, जो पड़ोसी आ गये थे उन्होंने सलाह दी पुलिस में रिपोर्ट लिखाने की किन्तु राकेश जी ऐसा नहीं चाहते थे। उसकी सहेलियों के यहाँ फोन किया कहीं पता नहीं चला। हताश हो सब बैठे थे की अब क्या करें।
बहुत देर इन्तजार करने बाद निधी को डर लगने लगा। अजीत लौट कर नहीं आया। वह – डरी सहमी सी कमरा बन्द कर बैठी थी। जब मैनेजर ने उससे बात की तो उसने सब बताया। उसके पास फोन भी नहीं था क्योंकि अजीत ने फोन लाने को मना किया था। मैनेजर ने अपना फोन देकर निधी से घर बात करने को कहा।
फोन की घंटी बजते ही तुरन्त फोन उठाया उधर से निधी के रोने की आवाज थी पापा जल्दी आ जाओ मुझे बहुत डर लग रहा है। पापा साॅरी ।
पापा – घबराओ नहीं में आ रहा हूँ पर तुम हो कहाॅ तब मैनेजर ने फोन लेकर सारी बात समझाई।वे तुरन्त उसे लेने निकल पड़े।
अडोसी – पडोसी चटकारे ले लेकर उसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। जब उन्हें पता चला कि वे बेटी को लेने वापस गए हैं तो कहने लगे अब क्या उसे घर मे रखेंगे। उसके यहाँ रहने से पूरा माहौल खराब होगा।
जैसे ही वे वापस आये, सहानुभूति दिखाने है लिए वे लोग आने लगे। कोई कुछ बोल रहा था तो कोई कुछ| उनके दु:ख और परेशानी से किसी को मत लब न था, सब जख्म पर नमक छिड़कने मे व्यस्त थे,
कहने को तो सहानुभूति दिखा रहे थे यह कैसी सहानुभूति थी जो जख्मों को कुरेद कर नासूर बनाना चाहती थी। वह अबोध बालीका जो नादानी में गल्ती कर बैठी थी क्या उसे सुधारने का मोका न दें। किन्तु लोग थे मरहम के बजाय जख्म पर नमक छिड़कने में लगे थे।
शिव कुमारी शुक्ला