सविता के दो बच्चे थे और उसके पति छोटी-मोटी नौकरी करते थे। वो एक स्कूल में शिक्षिका थी। छोटे बच्चों को पढ़ाया करती थी।
सविता बहुत ही मिलनसार स्वभाव की थी सब स्कूल में उसे पसंद करते थे। एक दिन प्रधानाध्यापक ने किसी स्टाफ से पूछा, “मोहन, क्या बात है चार दिनों से सविता नहीं दिख रही स्कूल में।”
मोहन ने कहा, चार दिन पहले वो आई थी, तो कह रही थी उनके पति की तबीयत बहुत खराब है, हो सकता है चार-पांच दिन स्कूल नहीं आ सकूँ।”
प्रिंसिपल सर ने कहा,”हो सकता है, चलो आज देख कर मैं आता हूं, आखिर बात क्या है!”
प्रिंसिपल को अचानक अपने घर पर देख सविता अचंभित हुई और बोली, “सर आप,आइए बैठिए, कहकर उसने चेयर लाकर रख दिया।”
प्रिंसिपल चेयर पर बैठ गए । बस दो ही कमरे थे, बच्चे स्कूल गए थे।
उन्होंने पूछा,”तुम्हारे पति कहां है, सुना हूं कि,उनकी तबीयत खराब है, मैं उन्हें देखने आया हूं।”
सविता ने कहा, “आज ही एडमिट करवा कर आई हूं, उन्हें जॉन्डिस हो गया है, और जोंडिस काफी बढ़ गया है ,डॉक्टर ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करने के लिए कहा,ज्यादा देर करना ठीक नहीं था!”
कहते हुए सविता रुआसी हो गई। प्रिंसिपल ने कहा, “तुम परेशान ना हो, पैसों की फिक्र भी मत करो, मैं तुम्हारी मदद करूंगा, जितने भी पैसों की जरूरत होगी, बेझिझक बोलना।”
अब प्रिंसिपल रोज सविता से मिलने आते…और उसके साथ अस्पताल जाते,जो भी सहायता होती वो, सविता की करते।
अगल बगल वाले चर्चा करने लगे। एक दिन बात बात में सविता ने बताया कि, ये घर उसके भाई का है, “मगर हम किराया देते हैं,”उसने कहा, “भाई है तो क्या हुआ, क्यों किसी का एहसान लेना, कह कर वो चुप हो गई ।
प्रिंसिपल उसकी बातों से सब समझ गए थे।
धीरे-धीरे उसके पति के हालत में सुधार होने लगा…और वो अच्छे हो गए।
इसी बीच राखी का त्यौहार आया। सविता जब अपने पति को एडमिट करवाने जा रही थी, उसने अपने भाई से पैसों की मदद मांगी, पर उसने कह दिया कि, अभी उसके पास पैसे नहीं है, कहीं और से जुगाड़ कर लो,
तो उसने अपने सोने का चैन बेच दिया और अपने पति को अस्पताल में भर्ती करवाया।
ये बातें याद करते हुए,वो बच्चों से बोली, “तुम दोनों घर पर ही रहना,मैं और तुम्हारे पिताजी थोड़ी देर में आ जाएंगे!”
वो अपने पति के साथ प्रिंसिपल के घर गई।
इधर उसका भाई राखी बंधवाने आया, तो बच्चों ने कहा माँ थोड़ी देर में आएगी।
प्रिंसिपल सविता को उसके पति के साथ देख कर बोले, “अरे सविता अचानक, आओ आओ बैठो!”
सविता धीरे से राखी और मिठाई का डब्बा बाहर निकालती है….और कहने लगी,”सर, आपने एक बड़े भाई की तरह मेरी सहायता की, हर वक्त आप मेरे साथ रहे…और इससे मुझे हौसला मिलता रहा,..आज मेरे पति की रक्षा आपकी वजह से हुई है,..आज वो स्वस्थ हुए हैं तो,केवल आपकी वजह से, इतने पैसे मैं कहां से लाती, मैं आज आपको राखी बांधने आई हूं!”
ये सुन कर प्रिंसिपल की आंखों में आंसू आ गए और कहने लगे,”मेरी भी कोई बहन नहीं है,आज से तुम मेरी छोटी बहन हो,…मैं तुम्हारी रक्षा और भाई की तरह सहायता करूंगा, हमेशा, कभी भी कोई जरूरत हो तो, बेझिझक मुझसे कहना, संकोच ना करना!”
कहते हुए प्रिंसिपल ने खुशी-खुशी अपना हाथ बढ़ा दिया। उसके पति ने कहा, “आपने तो सगे भाई का फर्ज निभाया है, जरूरी नहीं है कि वो खून का ही रिश्ता हो।”
#रक्षा
स्वरचित
अनामिका मिश्रा
झारखंड जमशेदपुर