मधु बेटा… तेरी दादी सास के लिए बनारसी साड़ी और तेरी दादी ससुर के लिए सफारी सूट का कपड़ा भिजवाया है, उनसे कहना इस बार सूट सिलवा ले, आखिर उनके पडपोते का जलवा पूजन और तीसरा जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है, बाकी तो तेरे सास ससुर, नंद नंदओई और सभी परिवार वालों के लिए बढ़िया कपड़े और सामान रख दिया है, पर तू एक बार तेरी सासू मां से पूछ लेना.. अगर कुछ और घट रहा हो तो वह भी रख देंगे, यहां पर तेरे दादाजी ने भी ऐसा ही सफारी सूट सिलवाया है और बड़े खुश होकर कह रहे हैं… अपने पडनाती के जलवा पूजन में जाऊंगा
तो देखना मैं ही सबसे शानदार लगूंगा, और बच्चों के परदादा और परनाना एक जैसे ही लगने चाहिए ना, अभी उम्र से बुढ़ापा आया है लेकिन मन से अभी बुढ़ा नहीं हुआ! वह सब तो ठीक है मां, लेकिन आप तो जानती हैं यहां मम्मी जी.. दादी जी और दादाजी को कमरे से बाहर भी नहीं निकलने देती, उनको इतने बड़े फंक्शन में सबके सामने लाना तो बहुत दूर की बात है, और मैं उनसे कैसे कहूं… की दादाजी… मेरे पापा ने आपके लिए इतना सुंदर सफारी सूट का कपड़ा भिजवाया है आप इसे सिल्वा लीजिए, हालांकि मुझे पता है दादी जी और दादाजी इन कपड़ो को देखकर बहुत खुश हो जाएंगे!,
देख मधु बेटा.. अब यह तो तेरे ऊपर निर्भर है उन्हें ऐसे कपड़े सिलवाने के लिए कैसे राजी करती है, बेटा बड़े बुजुर्गों को सिर्फ प्यार चाहिए होता है, इस उम्र में धन दौलत या और भी कोई भौतिक आकर्षण उनके लिए मायने नहीं रखता, सच में कितना खुश हो जाएंगे जब उन्हें लगेगा उनके पोते के ससुराल से उनके लिए भी इतने अच्छे कपड़े आए हैं, तेरे दादा भी जब तेरे भाई के ससुराल से उनके लिए कुछ भी आता है तो अपने आप को कितना सम्मानित महसूस करते हैं, उनका मान सम्मान कितना बढ़ जाता है, ,वह तो बस यह चाहते हैं कि उनके बच्चे उनकी इज्जत करें, उन्हेंथोड़ा समय दे और उन्हें हर कार्यक्रम में शामिल करें,
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उनकी राय मशवरा ले! तू तो जानती है अपने यहां पर.. आज भी तेरे दादाजी की राय के बिना तेरे पापा कुछ नहीं करते और इससे तेरे दादाजी को कितनी खुशी होती है, उन्हें हर पल यह लगता है कि मैं घर का जिम्मेदार सदस्य हूं! किंतु मां.. मेरी सासू मां तो हर समय उनके ऊपर ताने कसती है, उनको हर समय बुरा भला बोलती है, मुझे तो उनके पास जाने भी नहीं देती, उन्हें लगता है शायद दादा दादी मुझे उनके खिलाफ भड़का देंगे! मैं जानती हूं मां.. दादा जी दादी जी को अपने पोते और उस की बहू से कितना लगाव है, वह सिर्फ यही चाहते हैं कि हम भी जाकर उनसे दो मीठे शब्द बोले, थोड़ा समय उनके पास बिताएं
और पता है मां.. जब कभी तीज त्योहार पर मैं उनके चरण स्पर्श करती हूं तो वह आशीर्वाद की झड़ियां लगा देते हैं, और कई बार तो मैंने उनकी आंखें गीली होते हुए भी देखा है, वह दोनों अपने बच्चों से मिलने को भी तरसते रहते हैं, मेरा भी मन करता है कि वह हम सबके साथ में बैठे, खाए पिए, अपने अनुभव हमारे साथ शेयर करें और पर मां में अपनी सासू मां के खिलाफ नहीं जा सकती, क्योंकि मम्मी जी की वजह से पापा जी भी कुछ नहीं कह पाते, वह अपने माता-पिता का तिरस्कार् होते देखते रहते हैं परंतु घर में क्लेश ना हो जाए इसलिए वह चुप रहते हैं! पर आप देखना
मां.. इस बार के फंक्शन में कुछ अलग ही होगा और शाम को मधु ने अपने पति रोहित से कहा, देखो रोहित… हमारे बेटे विशाल का तीसरा जन्मदिन और जलवा पूजन है, दूर-दूर से इतने सारे लोग और सभी रिश्तेदार आएंगे, पर क्या तुम्हें नहीं लगता इतने बड़े प्रोग्राम में हमारे घर के सदस्य ही उपेक्षित हो जाए, मैं चाहती हूं की विशाल को आशीर्वाद देने उसके बड़े दादा दादी जरूर आए और अगर ऐसा नहीं होगा तो मैं भी इस प्रोग्राम में नहीं जाऊंगी! मधु…. तुम्हें तो पता है ना मम्मी जी कभी भी इस बात की इजाजत नहीं देगी, वह तो हमें भी अब तक अपने दादा-दादी से दूर करती आई हैं और हमारी आज तक हिम्मत नहीं हुई
कि हम मां के खिलाफ जाएं! मुझे कुछ नहीं पता.. मैंने जो कह दिया वह कह दिया! अगले दिन रोहित ने अपनी मां को मधु की कही हुई बातें बता दी, पहले तो मां ने बहुत ना नुकर किया किंतु मधु की जिद के आगे उन्हें अपने हथियार डालने पड़े और फिर एक दिन पापा जी दर्जी के यहां जाकर दादाजी का सफारी सूट भी सिलवा कर ले आए ! दादा जी के लिए यह केवल सफारी सूट नहीं था बल्कि उनका सम्मान था जो उनकी बहू के मायके वालों द्वारा दिया गया था! कितने वर्षों पश्चात उन्होंने फिर से सफारी सूट पहना था! 2 दिन बाद का फंक्शन था, मधु की सासू मां बहुत उलझन में थी कि वह अपनी सास ससुर का सबके सामने कैसे परिचय करवाएंगे,
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क्योंकि वह तो आज तक उन्हें हर प्रोग्राम में कमरे में बंद कर देती थी, उन्हें कहीं भी साथ में लेकर नहीं जाती थी क्योंकि उन्हें लगता था उनके सास ससुर बड़े-बड़े लोगों में उठने बैठने लायक नहीं है, पर यह भूल गई कि उनके पति उन्हें सास ससुर के बेटे हैं और उनकी मेहनत से ही वह इतने बड़े पद पर आसीन हैं, खैर बहू की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा और दो दिन बाद फंक्शन में जब रोहित के दादा-दादी सफारी सूट और बनारसी साड़ी में आए तो सब उन्हें देखते ही रह गए, रोहित के दादा दादी आज अपने ऊपर बहुत गर्व महसूस कर रहे थे और जब मधु के दादा ने रोहित के दादा से कहा…., समधि जी गले मिलते हैं,
आखिर हमारी अगली पीढ़ी का जन्मदिन मनाया जा रहा है और जब दोनों समधि एक जैसे सफारी सूट में गले लगे तो रोहित के दादा दादी की आंखें खुशी से भर आई! मधु की सास को अपने ऊपर बहुत शर्म आ रही थी कि उन्होंने आज तक अपने सास ससुर को अपने बच्चों से दूर रखा, उनकी हर खुशियों से दूर रखा, किंतु अपनी बहू की समझदारी से सब कुछ सही हो गया, वह समझ गई बुढ़ापा तो एक दिन सबको ही आना है क्या वह कभी बुजुर्ग नहीं होगी और अगर उनके बेटा बहू या उनके पोता पोती ने उनको भी ऐसे ही कमरे में बंद करके रख दिया तो उनका क्या होगा..? नहीं नहीं.. वह अपने आप को ऐसे तिरस्कृत होती नहीं देख सकती,
उन्हें पता नहीं क्या हुआ जाकर अपने सास ससुर के पैरों में पड़ गई और अपने आज तक के किए हुए कर्मों की माफी मांगने लगी और अपनी बहू से भी कहा… मधु बेटा.. आज तूने मेरी आंखें खोल दी, अरे बुढ़ापा कोई बीमारी थोड़ी है बुढ़ापा तो एक उम्र है जो सबको आएगी, मैं आज तक इनके साथ कितना गलत करती हुई आई हूं, जबमैंने खुद को इस स्थिति में महसूस किया तो मैं समझ गई बच्चे तो आगे चलकर वही करेंगे ना जो वह देखते आएंगे, और मेरे बच्चों ने भी आज तक यही देखा है की बड़े बूढ़ों से दूर रहो, किंतु अब नहीं… आज से दादा-दादी बिल्कुल उसी तरह रहेंगे जैसे हम सब रहते हैं
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और यह सुनकर दादा दादी सहित पूरा परिवार प्रसन्न हो गया, रोहित के दादा-दादी को इससे पहले इतना उत्साहित कभी नहीं देखा था सच है बुढ़ापा कोई बीमारी नहीं है यह तो ज्ञान का भंडार है प्रेम का सागर है जितना इसे ले सको उतना ही कम है यह स्थिति एक दिन हर मनुष्य के जीवन में आनी है तो क्यों नहीं इसका हंसकर स्वागत करें!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
. कहानी प्रतियोगिता. # बुढ़ापा
Bahut achhi kahani hai seekh Dene vali