सफर (लिहाज से तल्ख लहजे तक का) – रचना कंडवाल   : hindi stories with moral

hindi stories with moral : रागिनी की शादी को बीस साल हो चुके हैं। बीस साल पहले जब वो इस घर में दुल्हन बन कर आई थी तो घर में उसे बहू का दर्जा नाम का मिला।असल में एक निम्न मध्यमवर्गीय बड़े परिवार परिवार की बेटी को बहू बनाने के पीछे का जो असली कारण था वो ये था कि जो ससुराल की सम्पूर्ण गृहस्थी का बोझ बिना मुंह खोले ढ़ो सके।

अमर परिवार के सबसे बड़े बेटे होने के कारण दुनिया भर की जिम्मेदारियों से लदे हुए थे। रागिनी ने आकर आधा बोझ अपने कंधे पर रख लिया। या समझिए उसके कंधे पर रख दिया गया।

सासू मां की तीखी आवाज अनवरत चलते ताने उसके प्राण सुखा देते।

क्योंकि बात उससे शुरू करते करते उसके पूरे खानदान तक चली जाती।

जिसकी इति उसके आंसुओं से होती।

तीन ननद एक देवर थे। जब उसकी शादी हुई तब दो ननदों की शादी हो चुकी थी। छोटी ननद बहुत तीखी मिर्च थी। देवर और ननद छोटे होने के बावजूद उसके बड़े थे। क्योंकि उसकी सास का कहना था कि ससुराल में सबका सम्मान करो।

सम्मान सिर्फ उसका नहीं था वो मान अपमान से परे नीलकंठ बन चुकी थी।

वक्त बीतता गया वो दो जुड़वां बच्चों की मां बनी एक बेटा और एक बेटी।

सास खुश थी कि चलो मामला एक बार में निबट गया। बार बार नहीं झेलना पड़ेगा।

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अमर दो मीठे बोल रात को अपनी जरूरत के हिसाब से बोलते नहीं तो कोई खोज खबर नहीं।

उसकी दुबली पतली काया कभी बीमार नहीं पड़ती थी। कभी बीमार होती तो घर में रखी दवाइयां खा कर ठीक हो जाती।

बच्चे कहते हमारी मम्मा स्ट्रोंग है। वह उनकी बात सुनकर मुस्कुरा देती।

उसकी छोटी ननद और देवर का भी ब्याह हो गया। देवर बैंगलोर चला गया। देवरानी एक तरफ से आई और दूसरी तरफ गई।

सबकी दुनिया बदल चुकी थी। एक जिसके जीवन में परिवर्तन नहीं आया था तो वो केवल रागिनी थी।

देवर देवरानी तीज-त्योहार पर घर आते तो सास कहती कि वो तो मेहमान हैं बच्चे चार दिनों के लिए आए हैं घूमने फिरने दो।

रागिनी ऐसे माहौल में ढल चुकी थी। जहां बस दूसरों के लिए जीना उसकी आदत हो गई थी।

एक दिन शीशे के आगे खड़े हो कर खुद को गौर से देखने लगी। चेहरा रूखा बेरौनक बाल कुछ कुछ सफेद होने लगे हैं। अपने आप से पूछने लगी रागिनी ये तुम हो??? तुम तो ऐसी नहीं थी। आंखों से आंसू फिसल पड़े। उसने पपड़ाए हुए ओंठो पर जीभ फेरी एक गहरी सांस ली फिर से घर समेटना शुरू कर दिया।

कुछ दिनों से उसे कमर के निचले हिस्से में दर्द रहने लगा है, हाथ पैर दुखने लगे हैं। एक दिन जब दर्द असहनीय हो उठा तो उसने कराहते हुए अपनी सास से बात की।

मांजी पता नहीं क्यों कुछ दिनों से दर्द हो रहा है।

उसकी सास तुनक गई ये सब तुम्हारे काम न करने के बहाने हैं मेरे घर में ये सब नहीं चलेगा।

अगले दिन उसे बहुत तेज बुखार हो गया। जो घर में रखी दवाई से नहीं उतरा।

उसी अवस्था में वो काम करती रही रात को जब बेडरूम में आई तो शरीर बहुत कांप रहा था आते ही सो ग‌ई।

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अगले दिन जब रागिनी के न उठने पर अमर उसे उठाने लगे तब उन्होंने देखा कि रागिनी बेहोश है बुखार में तप रही है।

जल्दी से डाक्टर के यहां ले गए डाक्टर ने उसे अस्पताल में भर्ती कर दिया।

दस हजार के टैस्ट हुए।

उसे क‌ई तरह का इन्फेक्शन हो गया था। शरीर में खून, विटामिन्स की कमी हो गई थी।

इससे अमर झल्ला उठे तुमने पहले क्यों नहीं बताया?? पहले बताती तो आज ये नौबत नहीं आती।

सासू मां का मुंह चढ़ा हुआ था। रागिनी खामोश थी उसे लग रहा था सब उसकी गलती है।

छह दिन बाद उसे अस्पताल से छुट्टी मिली।

वो अस्पताल से घर आई तो देखा सासू मां ने काम वाली लगा ली थी।

उसको देखते ही मुंह बिचका कर बोली तुम्हारी वजह से पता नहीं अब कितना खर्च होगा। रागिनी के आंसू निकल पड़े।

वो अपने कमरे में चली गई।

वो देख रही थी जब से वो अस्पताल ग‌ई वहां से घर आई अमर कुछ अनमने से हैं वो कुछ पूछती है तो ढंग से बात नहीं कर रहे हैं।

उसने अपने दिमाग पर जोर दिया वो उससे ढंग बात करते ही कहां हैं?

इसलिए उसे नार्मल ही लगा।

अगले दिन जब वह सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी तो अमर उसे ध्यान से देख रहे थे।

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जब वह नीचे आई तो अमर ने उसे पूछा क्या हुआ?? पैर में कुछ हुआ है।

कुछ नहीं घुटनों में दर्द हो रहा है।

तुम्हारा भाई भी लंगड़ा कर चलता है। अमर ने तल्ख लहजे में कहा।

ये बात सुनकर रागिनी स्तब्ध रह ग‌ई। उसका जी कसैला हो गया।

बीस साल उसने मुंह बंद रख कर जिए थे। दूसरों की इच्छा के अनुसार जीती चली गई पर इस बात ने उसे झिंझोड़ कर रख दिया था।

वह अमर के पास खड़ी हुई उसने पूछा कि आपके कहने का मतलब क्या है??

अमर हैरान हो कर उसे देखने लगे। उसका स्वर सुनकर उसकी सास बाहर आ गई। सारी बात सुनकर बोली क्या गलत कहा उसने ठीक तो कहा तुम्हारे खानदान में ही खोट है।

आज उसके सब्र का बांध टूट गया था।

वो चिल्ला पड़ी बात बात पर आप मेरे मायके को बीच में घसीट कर ले आती हैं क्यों?? क्या सिर्फ इसलिए कि मैं सालों सब कुछ सहती आ रही हूं।

ये तुम मां से किस लहजे में बात कर रही हो ??? अमर क्रोध में गुर्राए।

आप तो चुप ही रहिए। अभी आपने मेरा लहजा देखा ही कहां है??

अभी तक हमारे बीच में लिहाज था इज्जत थी अब सिर्फ तल्ख लहजा होगा। जो जैसा व्यवहार मेरे साथ करेगा वैसा ही मुझसे पाएगा।

आप लोगों ने प्यार के दो शब्द कभी बोले मुझसे मुझे तो कभी याद नहीं

कभी मेरे सुख दुःख को समझने की कोशिश की आपने?? मैंने हमेशा आपको सुख लौटाया आपने मुझे बदले में सिर्फ दुःख दिया।

आज जब मेरा शरीर कमजोर हुआ मैं जरा सी बीमार हुई तो आप लोगों के तेवर ही बदल ग‌ए।

आपने एक जीती-जागती औरत को मशीन बना कर रख दिया।

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मेरी भावनाओं को खत्म कर दिया।

मशीन में  खराबी आ गई  और थोड़े रुपए लग ग‌ए तो आप लोगों को चुभ गया।

मैं जिंदा औरत हूं कोई मशीन नहीं।

शायद आपकी नजरों मेरी कोई कीमत नहीं। मैं जिस दिन नहीं रहूंगी कोई दूसरी मेरी जगह लेगी।

पर मुझे जिंदगी में पहली बार समझ आया कि मैं अपने लिए कितनी मूल्यवान हूं।

अस्पताल में छह दिन बिस्तर पर पड़े रहकर आप सबके दुर्व्यवहार के बारे में सोचती रही। सोचा कि जब किसी को मेरी परवाह नहीं तो मैं क्यों आप सबके लिए मरती रहूं।

ये मेरी जिंदगी है और इस पर सबसे पहला हक मेरा है।

अमर और उसकी सास दोनों उसे घूर रहे थे।

और हां पतिदेव अब मेरे शरीर को आराम की जरूरत है इसलिए हाऊस हेल्पर को परमानेंट कर दीजिए।

आज वह लिहाज से तल्ख लहजे तक का सफर तय कर चुकी थी।

© रचना कंडवाल

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