नित्या जब शादी कर ससुराल आई तो बहुत डरी हुई थी.. भारतीय घरों में “पराये घर जाना हैं ” या “सास बहुत कष्ट देगी, ताने देगी” जैसी बातें, लड़कियां बचपन से सुनती हैं…। और सभी लड़कियां ससुराल को जेल और सास माँ को एक
डरावनी शख्सियत समझ लेती हैं । फिर भी ससुराल रूपी जेल में हर लड़की खुशी खुशी कैद हो जाती हैं..।
नित्या भी इसी पूर्वाग्रह से ग्रसित थी..। अपनी सासुमां से भी वो डरी हुई थी..। शादी बहुत अच्छे तरीके से हो गई थी…। पर अब असली परीक्षा तो ससुराल वालों को और दुल्हन दोनों को देनी थी..। ससुराल पहुंचते ही, सबने मुँह दिखाई के लिए कहा…, पर तभी सासुमां की गंभीर आवाज आई… बहू थक गई होंगी उसे एक दो घण्टे आराम करने दो फिर मुँह दिखाई हो जाएगी…।
सुनते ही नित्या की जान में जान आई..। कमरे में पहुंची.. तभी सासुमां आ गई.. “बहू तुम कपड़े बदल कर एक दो घण्टे आराम कर लो..। “नित्या थोड़ा सरप्राइज थी… अभी तक तो सासुमां ने डांटा नहीं..।जबकि सासुमां लोगों के बारे में कहा जाता की,… वो बहुओं को आराम नहीं करने देतीं..।
धीरे धीरे नित्या नये परिवार के संग रच बस गई….,.हाँ सासुमां के करीब अभी भी नहीं हो पाई..। वो भी कम बोलती और नित्या भी पुराने पूर्वाग्रह से ग्रस्त रही..। वैसे भी सासुमां थोड़ा पुराने रीति रिवाज़ को मानती थी.और बहुत सुघड़ थी… उनका अपनी अनगढ़ी बहू को कुछ सिखाने का प्रयास ….
नित्या को बुरा लग जाता था..।कभी कभी नित्या को सासुमां से चिढ़ होने लगती … जब देखो हर समय टोकती रहती..। फिर भी सास बहू एक छत के नीचे रह रही थी..। पति रुपेश ने पहले ही कह दिया था…। माँ ने बहुत कष्ट से मुझे और रति को पढ़ाया -लिखाया हैं…। इसलिए मुझे कभी माँ से दूर करने की सोचना भी मत …।
नित्या की चिढ़ धीरे धीरे नफरत में बदलने लगी….। तभी एक दिन मुंबई से भाई का फ़ोन आया…” पापा को हार्ट अटैक आया हैं अस्पताल में हैं… “। नित्या रोने लगी… थोड़ी देर में सासुमां ने पुकारा नित्या खाना खा लो…। नित्या आग बबूला हो उठी..।” वहां मेरे पिता अस्पताल में हैं आपको खाने की पड़ी हैं..।कितनी स्वार्थी हैं..। मुझे नफरत होती हैं आपसे.”..। तभी दरवाजे की बेल बज उठी..।.सासुमां की पनीली आँखों को
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नजरअंदाज कर,..नित्या दरवाजा खोलने चली गई…रुपेश खड़े थे..।बोले नित्या जल्दी कपड़े पैक कर लो शाम की फ्लाइट हैं मुंबई की..। आश्चर्य चकित नित्या बोली पर आपको कैसे पता चला,..पापा अस्पताल में हैं…। और टिकट कैसे लिया..। पता नहीं माँ जाने देंगी या नहीं…। कैसी बात करती हो नित्या… माँ ने ही तो मुझे फ़ोन कर तुम्हारे पापा के बारे में बताया… उन्होंने ही फ्लाइट का टिकट कराने को बोला..। क्या… नित्या हैरानी से बोली….।
मै आती हूँ माँ के पास से…., कह …माँ के कमरे में गई…. सासुमां के पैर छू बोली माँ अपनी इस नालायक बहू को माफ कर दीजिये….वैसे मै माफ़ी के लायक नहीं हूँ पर आप आज मुझे माफ कर दे..। सच मै इतनी पढ़ी लिखी हो कर भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त थी.. और आप साधारण हो कर भी कितनी असाधारण हो..। आज से मै आपकी बेटी बन रहूंगी..।एक नई परम्परा की नई माँ -बेटी गले लग गई..। असाधारण सासु माँ बिना बोले ही बहुत कुछ समझ जाती थी… बहू की चिढ़, नफरत सब कुछ… पर बोलती नहीं थी.।
सखियों.. ना सास हमेशा बुरी होती ना बहू…। अगर दोनों एक दूसरे को बगैर पूर्वाग्रह के अपना ले तो जिंदगी सुखद हो जाती हैं..। अगर सासुमां टोकती हैं तो हो सकता हैं आपके अच्छे के लिए हो…. और अगर बहू कुछ कहती हैं तो सासुमां को भी उसकी बात का मान देना चाहिए..। आपसी समझ से ही परिवार आगे बढ़ता हैं..। ये एक पास की घटना हैं जिसे मैंने कहानी में पिरोया हैं..।
–=संगीता त्रिपाठी