मेरे पड़ोस में ६५ वर्षीय सलिल और उनकी ६२ वर्षीय पत्नी सुधा रहते हैं। मैं जब भी आंटी को प्रणाम कहती या तीज त्याहारों में पैर छूती, वो सदा सुहागन रहो, सौभाग्यवती भवः का आशीर्वाद देतीं।
अंकल आर्मी से सेवानिवृत्त हैं जिसका असर उनके व्यक्तित्व में स्पष्ट देखा जा सकता है अर्थात वो काफी अनुशासनप्रिय और रौबदार आवाज वाले व्यक्ति हैं। परंतु उम्र के साथ-साथ वो काफी गुस्सैल भी होते जा रहे हैं, वहीं उनकी पत्नी एक सीधी-सादी, कम बोलने वाली और खुशमिज़ाज़ महिला हैं। जब भी अंकल गुस्सा करते हैं, आंटी मुस्कुराकर बात खत्म कर देती हैं।
अंकल के गुस्साने के कारण भी वही हैं जो प्रायः हर भारतीय पति को होते हैं, जैसे- तुम ये लौकी-तुरई क्यों बनाती हो, सब्जी में नमक कम क्यों डालती हो, चाय तुम्हारी हमेशा फीकी ही रहती है, मेरी चप्पलें बार-बार धुल क्यों देती हो, इतने सालों में तुम्हें ठीक से खाना बनाना भी नहीं आया। जबकि उनको अच्छी तरह पता है कि उन्हें उच्च रक्तचाप और मधुमेह की प्रारंभिक समस्या है इसलिए आंटी सतर्कता बरतती हैं।
इन सबके बावजूद उनके बीच बहुत अच्छा सामंजस्य है और दोनों एक-दूसरे का ख्याल भी बहुत रखते हैं। सुबह दोनों साथ टहलने जाते हैं और शाम को कुछ देर पार्क में बैठते हैं। सुबह कबीर के दोहे और शाम को जगजीत सिंह की ग़ज़लें भी सुनते हैं।
उनके दोनों बेटे शादी करके विदेश में बसे हैं। बच्चों और नाती-पोतों से बातें होती रहती हैं, ये अक्सर मुझे बालकनी से सुनाई पड़ता है। ऐसा इसलिए नहीं कि मैं कान लगाकर अपने पड़ोसी की बातें सुनती हूँ, बल्कि इसलिए कि इनके घर के दरवाजे, खिड़कियां हमेशा खुले रहते हैं और इनकी बातें केवल मैं ही नहीं बल्कि पूरी बिल्डिंग सुनती है।
वैसे तो प्रायः ही इनके बीच कहासुनी (अंकल की “कहा” और आंटी की “सुनी”) चलती ही रहती है इसलिए कई बार तो मैं अनसुना कर देती हूँ। आज रविवार है, इनकी नोंक-झोंक यथावत चल रही थी। मेरे पति बेटी के साथ अपने एक मित्र के यहां गए थे
और मैं दोपहर का खाना तैयार करने में जुटी थी। उनके यहाँ भी दोपहर का खाना चल रहा था और आदतन अंकल हर एक निवाले के साथ कुछ-कुछ बड़बड़ाते जा रहे थे। उनकी पत्नी गरम-गरम रोटियाँ रसोईघर में बना के परोसती जा रही थीं।
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मैं भी टेलीविज़न में फ़िल्म चला के अपना लंच निबटा रही थी कि तभी बिजली चली गयी। अचानक अंकल के चिल्लाने की बहुत तेज आवाज आई। मैं झट से उनके घर की तरफ भागी। वहाँ जा के मालूम पड़ा कि आंटी रसोईघर में गिर पड़ीं।
थोड़ी ही देर में डॉक्टर आये और पता चला कि उनको निम्न रक्तचाप की समस्या है और ऐसे में नमक की कमी के कारण चक्कर आना, धुँधला दिखना, बेहोश होना जैसी समस्याएं सामान्यतः हो सकती हैं। कुछ देर बाद डॉक्टर उनको दवाईयों की पर्ची और कुछ हिदायतें देकर चले गए।
धीरे-धीरे सब निकलने लगे परंतु मैं कुछ देर वहाँ रुकना बेहतर समझ रही थी। अंकल को शांत देखकर मैंने जैसे ही उनके कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा, वो फफक कर रो पड़े। उस समय वो कितने असहाय और मासूम लग रहे थे।
उनकी आंखों में अपने प्रिय को खो देने का डर स्पष्ट देखा जा सकता था। मैंने उन्हें समझा-बुझा कर शांत कराया कि सब ठीक हो जायेगा। फिर जब आंटी ने आंखें खोली तो अंकल कहने लगे, “देखो न पूजा, ये कैसे मुझे छोड़कर जाना चाहती है।
बच्चे तो पहले ही दूर जा बसे हैं, अब अगर ये भी चली गयी तो मैं कैसे जीऊँगा!!जानता हूँ चिल्लाता रहता हूँ, पर क्या करूं जब ये जानती है कि इसको नमक ज्यादा खाना है तो कम क्यों खाती है??मैं चीखूँ-चिल्लाऊं न तो क्या करूँ??तुमही बताओ, मैं इसके बिना जी पाऊंगा क्या??
मैंने अंकल को सांत्वना दी और आंटी को झिडकते हुए कहा, जब डॉक्टर ने आपको नमक ज्यादा खाने को बोला है तो आप कम क्यों खाती हैं??आप खुद ठीक नहीं रहोगे तो अंकल का ध्यान कौन रखेगा??बोलो??
आंटी ने जो कहा वो मुझे निरुत्तर करने के लिए काफी था। बोलीं, “बेटा, क्या करूँ? अच्छा नहीं लगता इनको कम नमक, कम चीनी का कुछ खिलाते हुए। जबकि ये खाने के बहुत शौक़ीन रहे हैं। इसलिए मैं खुद भी वैसा ही खाती हूँ, जो इनको देती हूँ।
इसी बहाने मेरा भी परहेज हो जाता है। जहाँ तक मेरे कुछ होने का सवाल है तो बेटा, इनके साथ जीवन के सारे उतार-चढ़ाव देख लिए। भरा-पूरा सम्पन्न परिवार भी देख लिया। अब तो बस इनकी आंखों के सामने चली जाऊँ। शादी के समय जैसे सजा-धजा के लाये थे
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वैसे ही विदा भी होना चाहती हूँ। ये कहते समय उनकी आँखों में चमक और प्रेम दोनों साफ-साफ दिख रहा था। अंकल ने भी उनका हाथ मजबूती से पकड़ रखा था। दोनों को एक-दूसरे में डूबा छोड़कर मैं अपने घर की तरफ चल पड़ी।
आखिर हम सब भारतीय पत्नियाँ यही तो चाहती हैं। माँ, दादी, नानी सबको यही तो कहते सुना है कि “इनके” कांधे पर जाऊँ। मैं भी तो ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ।
हम चाहे जितना लड़-झगड़ लें, कितना भी आगे बढ़ जाएं पर हमारी विचारधारा तो नहीं बदली। हम सारे व्रत पति और बच्चे के लिए रखते हैं। आखिर उनसे ही तो जीवन है हमारा, अस्तित्व है हमारा। फिर आंटी भी तो गलत नहीं!
तभी तो सब यही आशीर्वाद देते हैं “सदा सुहागन रहो”।
पूजा गीत