hindi kahaniya : रात के आठ बज रहे थे। प्रकाश सोफे पर उदास बैठा अपने अतीत के बारे में सोच रहा था। उसके मन में उथल-पुथल मची हुई थी। उसकी मनोदशा शून्य हो रही थी। अपनी पत्नी गीता की जिद और अक्खड़ रवैये के कारण वह असहाय हो गया था।
“चलिए खाना तैयार है” उसकी पत्नी गीता कमरे में आते हुए बोली।”मुझे भूख नहीं है,तुम खा लो! प्रकाश गीता को अनदेखा करते हुए बोला।”आपको तो अपनी मां और भाई की फिक्र होगी,मैं तो कुछ नहीं हूं आपकी?”
गीता झुंझलाते हुए बोली।”यही समझ लो?”प्रकाश गुस्साते हुए बोला।”सारी बुराई तो मेरे अंदर ही दिखती है आपको?”कहते हुए गीता दूसरे कमरे में चली गई।
“क्या हुआ बेटा,क्यूं लड़ रहा हूं तूं बहू से?”प्रकाश की मां गायत्री देवी कमरे में प्रवेश करते हुए बोली।”कुछ नहीं अम्मा,तुम परेशान मत हो, विकास कहा है?”प्रकाश अपनी मां गायत्री देवी को दिलासा देते हुए बोला।”
विकास खाना बना रहा है,तुम लोगों की तेज आवाज सुनकर मुझसे रहा नहीं गया बेटा,इसलिए मैं आ गई। गायत्री देवी प्रकाश के पास बैठते हुए बोली।”अम्मा मैं बहुत परेशान हो गया हूं गीता की जिद से?”कहकर प्रकाश शांत हो गया।
“क्या हुआ कुछ मुझे भी बताएगा?”गायत्री देवी प्रकाश के सिर पर हाथ सहलाते हुए बोली।”अम्मा मैं तुम्हारा दोषी हूं,मुझे माफ कर दो?”प्रकाश की आंखों में आसूं डबडबाने लगे।”कुछ कहेगा भी,या बच्चों की तरह आंसू बहायेगा?
“गायत्री देवी प्रकाश को समझाते हुए बोली।”अम्मा गीता ने जिद कर रखी है,घर अलग करने की,आंगन में दीवार बनाकर दो रास्ते बनवाने की?”कहकर प्रकाश अपना सिर पकड़कर बैठ गया। गायत्री देवी प्रकाश की बात सुनकर चिंता में डूब गई,वह कुछ देर खामोश रहकर बोली।
“बेटा बहू जैसा कहती हैं तूं वैसा कर,वह तेरी पत्नी है,उसके सुख दुख का तूं साथी है,मेरा क्या है, कुछ दिन की मेहमान हूं,और तेरा छोटा भाई तो है ना मेरे साथ वह मेरा हरदम ख्याल रखता है, तुझे हालात से समझौता करना ही पड़ेगा बेटा! कहते हुए गायत्री देवी की आंखें भर आईं,वह चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई।
दस वर्ष पहले प्रकाश और विकास के पिता का देहांत हो चुका था। वे सरकारी कर्मचारी थे। प्रकाश को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली थी। गायत्री देवी को पेंशन मिलती थी। प्रकाश की शादी के तीन साल तक तो सब ठीक था।
प्रकाश का बेटा अमन दो साल का हो चुका था। विकास अपनी भाभी का बहुत सम्मान करता था। मगर प्रकाश की तरक्की होने के साथ ही गीता के रंग ढंग बदलने लगे उसकी कयी सहेलियां उससे मिलने आने लगी।
गायत्री देवी और विकास वक्त के साथ ही गीता को घटकने लगें। उससे मिलने आने वाले लोगों को गायत्री देवी और विकास का पूछना जांचना पसंद नहीं आता था। इसलिए उसने जिद करके घर के दो टुकड़े करने का फैसला कर लिया था।
प्रकाश वक्त और अपनी अम्मा का दिल रखने के लिए ना चाहकर भी परिस्थितियों के आगे नतमस्तक होकर समझौता करने के लिए मजबूर हो गया था।
पांच मजदूर जिसमें दो पुरुष दो महिलाएं,एक लड़की दीवार बनाने के काम में लगे हुए थे।शाम हो चुकी थी। एक दिन का काम खत्म होने के बाद वह मजदूर परिवार प्रकाश के कमरे की तरफ आंगन में अपने खाना बनाने की तैयारी कर रहे थे।
“सुनो कब तक पूरी दीवार बन जाएगी?”गीता उन मजदूर परिवार से बोली।”दीदी अभी दो दिन और लगेगा?” मजदूर महिला गीता से बोली।”ठीक है तुम लोगों को कुछ जरूरत हो तो मुझसे मांग लेना,उधर मत कहना?”गीता गायत्री देवी और विकास के कमरे की तरफ इशारा करते हुए बोली। और घर के अंदर चली गई।
रात के ग्यारह बज रहे थे।घर के बाहर जहां मजदूर ठहरें थे। वहां से गाना गाने हंसने खिलखिलाने की आवाज आ रही थी। प्रकाश गहरी नींद में सो रहा था। गीता को नींद नहीं आ रही थी। मजदूरों की आवाज से वह परेशान हो रही थी। वह मजदूरों को चुप कराने के लिए झूझलाते हुए बाहर आई।
बाहर का दृश्य देखकर वह ठिठक गई। वह दरवाजे की आड़ लेकर चुपचाप उन मजदूरों को देख रही थी। जहां बेटा अपनी मां के पांव दबा रहा था। देवर अपनी भाभी के पांव दबा रहा था। भाभी देवर को कुछ कहकर हंस रही थी।
और उसका देवर शर्मा रहा था। छोटी लड़की नाच रही थी। एक चटाई पर पूरा परिवार दिन भर जी तोड़ मेहनत करके एक दूसरे की पीड़ा कम करतें हुए कितने खुश हो रहें थे। गीता घंटों बुत बनकर खड़ी उन मजदूरों को एकटक देखे जा रही थी।
सच्चाई का आईना उसके सामने था। जिसे वह चाहकर भी झुठला नहीं सकती थी। परिवार क्या है, परिवार मे खुशियां कैसे होती है,वह समझ चुकी थी। उसे खुद पर घृणा महसूस हो रही थी। उसने अपनी देवी जैसी सास और लक्ष्मण जैसे देवर से किया गया घृणित व्यहवार उसे कटोच रहा था। वह फूट-फूट कर रोते हुए अंदर कमरे की ओर चली गई।
“क्या हुआ क्यों रो रही हो?”प्रकाश गीता की रोने की आवाज सुनकर उठकर बैठते हुए बोला।”आप मुझे माफ कर दीजिए,मेरी वजह से आपको और अम्मा को दुख पहुंचा है, मेरी गलती माफ करने के लायक भी नहीं है,?
“कहकर गीता प्रकाश के पैरों पर गिर पड़ी।”चलों उठो बेटी हमने तुम्हें माफ कर दिया,तूने कोई गलती नहीं की, इसमें तेरा कसूर नहीं है,सब समय का खेल है?”गीता की रोने की आवाज सुनकर गायत्री देवी प्रकाश के कमरे में जाकर गीता को उठाते हुए बोली।
“अम्मा! अम्मा! कहते हुए गीता गायत्री देवी से लिपट गई। प्रकाश और विकास के चेहरे पर खुशी के भाव छलकने लगे। बिखरते हुए परिवार का अलगाववाद का समझौता प्रेम प्रीत सदभाव में तब्दील हो चुका था।
“समझौता”
माता प्रसाद दुबे
स्वरचित लखनऊ