Moral stories in hindi : वो शर्मिंदा थी, जिस पड़ोसन से उसने कभी बात नहीं की, वही कठिन पलों में आज उसके साथ थी।
दो साल पहले ही तो इस सोसाइटी में आई थी, सभी ने आगे बढ़ कर दोस्त की।धीरे -धीरे सुनंदा की दोस्ती माही,नमिता, पल्लवी, रीमा से हो गई,।
सुनंदा के पति मर्चेंट नेवी में थे, अक्सर बाहर रहते थे, इस सोसाइटी में आने के बाद सुनंदा पति से अकेलेपन की कोई शिकायत नहीं करती,क्योंकि सहेलियों के साथ उसका समय अच्छे से कट जाता था।बच्चे भी बड़े हो गये थे…।
सुनंदा की ये मंडली कभी शॉपिंग तो कभी किट्टी पार्टी, कभी चाय पार्टी…. बस मस्ती करने का बहाना ढूढ़ती ये …।
एक दोपहर ऐसे ही उसके घर चाय की महफिल जमी थी तभी डोर बेल बजी, सुनंदा ने दरवाजा खोला तो उसके ठीक सामने वाले घर में रहने वाली शिखा जी खड़ी थी।
“आज मेरा काम जल्दी खत्म हो गया तो मैंने सोचा तुमसे मिल कर अपना परिचय दे दूँ “
“हाँ, आइये अंदर आइये “सुनंदा ने सकुचाते हुये शिखा को बुलाया
“हम लोग चलते है सुनंदा, फिर आयेंगे”, शिखा जी को देखते ही सब मुँह बना कर उठ गये,
“अरे चाय तो पी लो, सबके कप में चाय बची है “
इस कहानी को भी पढ़ें:
सबको उठते देख शिखा बोली, “आप लोग एन्जॉय करो, मै फिर आ जाऊँगी “कहती बाहर निकल गई, सुनंदा के अतिरिक्त किसी ने उनको रोकने की कोशिश नहीं की।
“बहुत लड़ाकू है शिखा, पति से भी पटरी नहीं खाई, इसलिये पति भी कुछ समय अलग था इनसे, अभी कुछ महीने पहले ही तो आया है इनके पास… तुम इनसे दूर रहना, दोस्ती करने की कोशिश मत करना, सबसे इनका पंगा हो चुका है ….”
शिखा के बारे में इतना सुन, सुनंदा ने भी शिखा से दूरी बना ली, कभी शिखा बात करने की कोशिश करती भी तो सुनंदा उसे अनदेखा कर देती। शिखा को समझ में आ गया सुनंदा भी औरों की बातों में आ उससे दूर रहना चाहती तो उसने भी दोस्ती का प्रयास बंद कर दिया।
सबकुछ अच्छा चल रहा था,अचानक एक रात बेटे अवि की बाइक का एक्सीडेंट हो गया, देर रात जब अवि ट्युशन से नहीं आया तो सुनंदा ने टीचर को फोन किया,पता चला वो ट्यूशन खत्म होने के बाद ही चला गया,।थोड़ी देर बाद उसके मोबाइल पर किसी का कॉल आया तब एक्सीडेंट का पता चला।
सुनंदा घबरा गई,सभी सहेलियों को फोन किया लेकिन पुलिस और अस्पताल की समस्या से बचने के लिये,सबने कुछ ना कुछ बहाना कर दिया। सुनंदा को इतनी रात में घर से बाहर निकलते देख, शिखा जो गेट में ताला लगाने आई थी, रहा ना गया, पूछ बैठी, “क्या बात है सुनंदा ..”
सुनते ही सुनंदा फफक पड़ी, “अवि का एक्सीडेंट हो गया है,”
उसके बाद सुनंदा को कुछ पता नहीं,पुलिस, अस्पताल, अवि का ऑपरेशन कैसे हुआ। वही लड़ने के लिये बदनाम पड़ोसी जिसे सुनंदा ने भी उपेक्षित कर दिया था, हर कदम पर साथ थी। सिर्फ अवि का ही नहीं बल्कि सुनंदा और रिया के खाने -पीने का ख्याल भी शिखा ने बड़ी बहन की तरह रखा।
इस कहानी को भी पढ़ें:
सुदर्शन तो हफ्ते भर बाद ही आ पाये, लेकिन शिखा ने सुनंदा को एक पल भी अकेला नहीं छोड़ा।सुनंदा को समझ में आ गया, सुनी सुनाई बातों को सही मान कर किसी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए…।
“अरे सुनंदा तुम यहाँ बैठी हो, चलो अवि डिस्चार्ज होने वाला है घर चलते है “पति की आवाज सुन सुनंदा तंद्रा से जागी।
आज उसका बेटा सही सलामत घर आ गया, सिर्फ शिखा की बदौलत ही, वो नहीं होती तो पुलिस, अस्पताल की ढेरों औपचारिकता में सुनंदा टूट गई होती।
अगले दिन सुबह सुबह सुनंदा की सारी सहेलियां अवि को देखने आई,तभी शिखा भी आ गई, उसकी सहेलियों को देख शिखा वापस जाने लगी,
“रुक जाइये शिखा दी, आप का अहसान मै कभी भूल नहीं सकती, आप जैसा सोने का दिल किसी के पास नहीं है, इसलिये लोग आपकी कद्र नहीं कर पाते .,मै जान गई,अच्छे समय में सभी साथ होते है लेकिन बुरे समय में जो साथ दे वही सच्चा दोस्त होता है….. “सुनंदा की बात सुन उसकी मंडली शर्मिंदा हो गई।
वो मंडली तो चली गई लेकिन शिखा सुनंदा की “दी “बन हमेशा के लिये नेह के एक रिश्ते में बंध गई।
—-संगीता त्रिपाठी
#शर्मिंदा