“हां संध्या… मैं तलाकशुदा हूं… और यह भी सच है कि मैंने यह बात सबसे छुपाई है… पर इसका कारण जाने बिना तुम कोई फैसला नहीं लेना… प्लीज संध्या…!”
” संध्या बुत बनी खड़ी रही… फिर पास ही पड़े एक आराम कुर्सी को अपनी तरफ खींच… उस पर बैठ गई… और बोली…” बोलो राकेश… क्या बोलना है तुम्हें… मैं तुम्हारे मुंह से सब सच सुनना चाहती हूं… इन तीन महीनों में… मैंने तुम में एक सच्चा हमसफ़र पाया था… मगर इस बात ने मेरी नींव ही हिला कर रख दी है… मुझे सब बताओ और मुझ पर दया करके सब सच बताओ…!”
” दया नहीं संध्या… खैर सुनो… सरिता थी वह… मेरे मां पापा ने करीब 10 साल पहले उसके साथ मेरी शादी करवाई थी… उस वक्त मैंने नई-नई नौकरी ज्वाइन ही की थी… तुरंत ही सरिता का रिश्ता आया और मां पिताजी ने मेरी शादी करवा दी…
शादी की पहली रात को जब मैं अपने कमरे में गया… सरिता खिड़की के पास जमीन पर उदास बैठी थी… मैंने बहुत पूछने की… कुछ बात करने की कोशिश की… पर वह कुछ नहीं बोली… ज्यादा पूछने पर वह रोने लगी… मैंने सोचा शायद घर की ज्यादा याद आ रही होगी…वैसे भी कई दिनों की थकान से मैं भी बोझिल था… उसे मनाते हुए और भी परेशान हो गया… बिस्तर पर लेटते ही मुझे नींद आ गई…
दूसरे दिन सुबह वह बड़े आराम से घर में सबसे मिलती रही… पर रात को मैंने अपने कमरे में दादी की नींद की गोलियों की एक पुरी पैकेट देखी तो मेरा माथा ठनका… सचमुच सरिता सुसाइड करना चाहती थी… इसलिए उसने वह गोलियां दादी को दवा खिलाते हुए निकाल लिया था… सबसे मिलजुल कर वह अपने लिए मरने का औजार ढूंढ रही थी… यह मुझे बाद में पता चला… उसके घर में उसे बिल्कुल नजर बंद रखा गया था… ताकि वह कोई गलत कदम ना उठा ले… पर यहां मौका मिलते ही वह मरने का सामान लेकर आ गई… मुझसे अब नहीं रहा गया…
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उसे पानी में सारे टैबलेट डालता देखकर… मैंने खींच कर ग्लास उसके हाथ से फेंका… और जबरदस्ती करने पर मुझे पता चला… कि वह किसी से बहुत प्यार करती थी… पर लड़का कोई नौकरी नहीं कर सका… इसलिए मां पिता ने उसकी शादी जबरदस्ती मुझसे करवा दी…
मैंने उससे पूछा कि वह वापस जाना चाहती है… और क्या वह उसे अपनाएगा… उसके हां कहने पर मैंने सभी घर वालों से…तीनों जगह बात करके… उसकी दुबारा शादी करवाई… पर सबको मनाने में उसे वापस भेजने में करीब 2 महीने लग गए… मैंने उसे तलाक दे दिया…
मगर संध्या मेरे लिए जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई… मैं तलाकशुदा हूं यह जानकर ही… कोई बढ़िया रिश्ता मेरे घर नहीं आता था…लोग यह जानने की कोशिश भी नहीं करते थे कि इसका कारण क्या है…हमारे समाज में तलाक शब्द आज भी एक गुनाह की तरह है… बस तलाक लिया मतलब मुझ में कुछ कमी होगी…
इसी कारण मैंने शादी करने का इरादा ही मन से निकाल दिया… इसी बीच करीब दो सालों बाद एक दिन सरिता का फोन आया… वह शायद मेरे पास वापस आना चाहती थी… उसने कहा…” राकेश तुम अभी तक क्या मेरा इंतजार कर रहे हो…? मैं वापस आ जाऊं…?”
मुझे बहुत गुस्सा आया… मैंने सुना था कि वह लड़का अभी तक कामयाब नहीं हो पाया था… इसलिए अब सरिता उसको छोड़ना चाह रही थी… मगर मैंने उसे साफ कर दिया कि… मेरी जिंदगी में उसकी कोई जगह नहीं है… जिसका हाथ थामा है उसका हर हालत में साथ दे… फिर दोबारा उसने कभी फोन नहीं किया…
मैंने भी शादी का ख्याल छोड़ ही दिया था… पर मां को कौन समझाए… मां ने मेरी तलाक की बात छुपा कर… वेबसाइट पर मेरा बायोडाटा डाल दिया… जहां से तुमने मुझे देखा और फिर हमने एक दूसरे को पसंद किया…
इसमें धोखा देने वाली कोई बात नहीं संध्या… बस मुझे डर लग रहा था कि पहले से ही यह बात जानकर… कहीं तुम भी मुझे गलत ना समझो… मैं तुम्हें सच बताना चाहता था… मगर तुम्हें खो देने का डर मेरे आड़े आ रहा था…!”
संध्या अपनी शर्तों पर जीने वाली लड़की थी… इसलिए आज तक उसने शादी नहीं की थी… वह पढ़ लिखकर समाज में अपना स्थान बना चुकी थी… पर माता-पिता के लिए तो सबसे बड़ा काम बेटी का ब्याह ही होता है… इसलिए जब तीस की होने के बाद भी… संध्या विवाहके लिए तैयार नहीं हुई… तो उन्होंने उसका भी बायोडाटा वेबसाइट पर डाल दिया था… यहीं से संध्या और राकेश की बात शुरू हुई थी… पिछले तीन महीनों से दोनों एक दूसरे से संपर्क में थे… अगले महीने शादी होने वाली थी…
ऐसे में संध्या को अचानक आज एक दोस्त के माध्यम से पता चला कि… राकेश तलाकशुदा है… यह जानने के बाद संध्या सीधे राकेश से मिलने पहुंच गई थी… वहीं यह बातें हुई…
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सब कुछ बता देने के बाद राकेश बोला…” अब तुम्हारा जो भी फैसला होगा… वह मुझे मंजूर होगा संध्या…!”
संध्या कुछ नहीं बोली… चुपचाप चली गई…
वह कोई भी फैसला करने से पहले एक बार सरिता से बात करना चाहती थी… दो दिनों की मशक्कत के बाद कहीं जाकर सरिता का नंबर मिला… उसने सरिता को फोन लगाकर सीधे सवाल किया…” सरिता तुम राकेश को जानती हो.… कैसा लड़का है वह…?”
सरिता ने बिना किसी झिझक के कहा…” बहुत अच्छा… मेरी जिंदगी को संवारने वाला… मैं उसका जितना एहसान मानूं कम है… मेरी खातिर उसने कितनी परेशानी मोल ली… फिर भी मुझे रास्ते से नहीं भटकने दिया… आज अगर मैं अपनी जिंदगी में… अपने प्यार के साथ… खुश हूं तो सिर्फ राकेश के कारण… तुम शादी करने वाली हो क्या उससे… बेझिझक कर लो… उसके जैसा हमसफ़र तुम्हें दूसरा नहीं मिलेगा…!”
संध्या सरिता की बातों से आश्वस्त हो गई…
उसी दिन राकेश खुद उससे मिलने आया… बुझे मन से बोला…” क्या करोगी संध्या… तुमने अपना फैसला नहीं सुनाया… मां पापा को भी तो बताना होगा… बहुत खुश हैं शादी की तैयारियों में… जितनी देर से बताएंगे दुख और नुकसान उतना ही अधिक होगा ना…!”
राकेश अपने दोनों हाथ अपने पॉकेट में डाले खड़ा था… संध्या ने आगे बढ़कर उसके दोनों हाथ खींच कर अपने हाथों में ले लिए… और कहा…” साथ चलने से दुख और नुकसान थोड़े ही होता है… क्यों राकेश जिंदगी के सफर में… हमें हमसफर बनकर चलना है ना… बनोगे ना मेरे सच्चे हमसफ़र… फिर कभी कोई बात… हमारे प्यार से बढ़कर तो नहीं होगी…!”
राकेश ने उसके हाथों को मजबूती से पकड़ कर कहा…” कभी नहीं…!”
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा
तीन तीन अच्छे और सच्चे पात्रों को पिरोकर एक बहुत अच्छी कहानी लिखी है।
Bakwaas, ise hatao