सच से सामना – बालेश्वर गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

 माँ, मुझे दो दिन यहां आये हुए हो गये हैं, मैं देख रही हूं,भाभी तुम्हारा कोई विशेष ध्यान  नही रखती है।मुझे ये अच्छा नही लग रहा।

        अरे नहीं,सुशी बेटी,ऐसा नही है,माधवी मेरा पूरा ध्यान रखती है।वो तो तुम आयी हुई हो ना,इसलिये काम बढ़ गया है, वह इसी में लगी रहती है।फिर इससे हम माँ बिटिया को भी तो खूब समय मिल रहा है।

      ओह,तो ये बात है,मेरे आने से काम बढ़ गया है।यानि विलेन तो मैं हो गयी।

     पता नही क्या बोले जा रही है,सुशी तेरी भाभी बहुत अच्छी है,तू बैठा कर ना अपनी भाभी के पास।

        यशवंत जी सरकारी नौकरी में एक अच्छे पद पर थे।अच्छा वेतन था।एक बेटा राघव व बेटी सुशी के पिता थे।पत्नी पार्वती यूँ तो गृहणी ही रही,यदि चाहती तो जॉब कर सकती थी,पर उन्होंने बच्चो की परवरिश को ही प्राथमिकता दी।अपने दोनो बच्चो को यशवंत जी एवम पार्वती बेइंतिहा प्यार करते थे।

समय के अनुसार उन्होंने पहले बेटी की शादी एक अच्छे परिवार में कर दी,हालांकि बेटी सुशी बेटे राघव से उम्र में दो वर्ष छोटी थी,पर लड़की जल्द जवान दीखने लगती है,सो उन्होंने सुशी की शादी कर दी।एक वर्ष बाद ही यशवंत जी ने राघव की शादी माधवी से कर दी।माधवी सुंदर एवम संस्कारवान लड़की थी।माधवी अपने सास ससुर का पूरा ध्यान रखती,साथ ही घर का रख रखाव में भी रुचि रखती।सच तो यह है कि माधवी के आ जाने से उन्हें सुशी की कमी खलती ही नही थी।

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        अब होता ये है शादी के बाद भी बेटी अपने माँ पिता पर पूरा अधिकार समझती ही है,इतना ही नही घर पर भी अपना पहले जैसा ही हक जमाती है।कुछ दिन को बेटी आती है और साथ ही पेट की जनी होती है तो बेटी को मायके में शादी से पूर्व से अधिक लाड़ प्यार मिलता ही है।इसी मनोविज्ञान के कारण सुशी अपनी मां के सामने अपनी भाभी माधवी की मीनमेख निकाल रही थी।

माँ पार्वती ने सुशी को समझाने की कोशिश की थी कि माधवी उनका पूरा ख्याल रखती है तथा वह बहुत अच्छी है।इस प्रसंशा से सुशी और चिढ़ गयी।अब उसने माधवी को सीधे ही किसी न किसी बात पर टोकना शुरू कर दिया।माधवी,ऐसा तो था नही कि सुशी के व्यवहार को नही समझ रही थी,पर वह समझ कर भी सुशी के व्यवहार की अनदेखी करती रही।

इससे सुशी का हौसला बढ़ता गया,अब वह तेज आवाज में भी माधवी से बोलने लगी।यह व्यवहार पार्वती को भी पसंद नही आया,उन्होंने इस बात का जिक्र अपने पति यशवंत जी से भी अकेले में किया।यशवंत जी को भी सुशी का व्यवहार उचित नही लगा।उनका विचार था कि अगले हफ्ते सुशी चली ही जायेगी सो अभी इस बात को नजरअंदाज किया जाये, कुछ दिनों की बात है, बेटी नाराज होकर जाये, ये भी ठीक नही होगा।बात आयी गयी हो गयी।

      एक दिन हद हो गयी सुशी किसी बात पर अपनी भाभी पर लगभग चिल्लाकर बोल रही थी,यह व्यवहार सुशी की माँ को नागवार गुजरा।उन्होंने सुशी को अपने कमरे में बुलाया।उस समय यशवंत जी भी घर पर ही दूसरे कमरे में मौजूद थे।सुशी को माँ ने समझाने का प्रयत्न किया कि उसे अपनी भाभी से इस प्रकार का व्यवहार नही करना चाहिये।

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माधवी से उन्हें कोई शिकायत नही है।पर सुशी ने पलटकर मां को भी तेज स्वर में जवाब देने लगी,माँ तुम पर तो माधवी का भूत सवार हो गया है,जबकि वह बिल्कुल फूहड़ है। आप मुझे क्यो रोक रही हैं, क्या  यहां मेरा कोई अधिकार नही है?पार्वती अपनी बेटी का मुँह ताकती रह गयी।तभी ये सब वार्तालाप सुन सुशी के पिता यशवंत जी कमरे में आ गये।वे बोले तुम ठीक कह रही हो बेटी,भला तुम्हारा हक यहां क्यो नही है,तुम्हारा हक है बेटी,भले ही तुम्हारी शादी हो गयी हो।

पर बेटा तुम्हारा हक तुम्हारी शादी के बाद भी मेरी इस घर और संपत्ति में है, जो हमने वसीयत भी कर दी है,आधा हिस्सा तुम्हारा है।पर बेटा  तुम्हारा हक हमारी भावनाओ को ठेस पहुचाने या अपनी भाभी को अपमानित करने का नही है।बेटी तुम्हारा घर है,हम तेरे माता पिता है हमेशा तेरा स्वागत है, तू कभी भी आ पर बेटी तुझे अपनी ससुराल में वहां के अनुसार आचरण रखना होगा तो यहां आकर तुझे यहां के अनुसार रहना होगा।यही मर्यादा है, मेरी बच्ची।

     सुशी अवाक हो एक बार अपनी माँ को देखती तो दूसरी बार अपने पिता के चेहरे को देखती।इस प्रकार के संवाद की कल्पना उसे थी ही नही।लेकिन पिता का कहा गया एक एक वाक्य उसकी चेतना को झंकृत कर रहा था।उसे लग रहा था कि वास्तव में उसने लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया है।यशवंत जी ने आगे बढ़कर अपनी बेटी सुशी के सिर पर हाथ रख कमरे से बाहर चले आये।अचंभित सी पार्वती अपने पति की इतनी साफ बाते सुन सुशी की ओर देखने लगी।सुशी माँ के कंधे पर सिर रखकर फफक पड़ी।पार्वती को समझ ही नही आ रहा था कि वह कैसे सुशी को ढाढस बंधाये?वह तो बस सुशी को थपकती रह गयी।

          शाम को माधवी के कमरे के बाहर से गुजरते हुए पार्वती ने सुना अंदर सुशी अपनी भाभी से कह रही थी,भाभी मुझे माफ़ कर दो,मेरा व्यवहार आपके प्रति गलत था।असल मे तो इस घर की मालकिन भी आप हो और हमारी संरक्षक भी।

    खुशी के आंसुओं के साथ पार्वती वहां से हटकर रसोई की ओर बढ़ गयी।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

*#ससुराल वाले अपनी बेटी की चिंता करेंगे या बहू की,बहू तो दूसरे की बेटी है* साप्ताहिक वाक्य पर आधारित कहानी:

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