अखबारों और सोशल साइट्स पर आज परिवार दिवस की धूम मची हुई थी। शर्मा जी उन खबरों और पोस्ट को पढ़ते हुए अपने परिवार के बारे में सोचने लगे।
विचारों की श्रृंखला उन्हें फ्लैश बैक में ले गई।
वट वृक्ष है उनका परिवार।पूरे सात भाई बहन ।करीब पचास -साठ के दशक में जन्मे हैं सभी भाई बहन ।समय बीतता गया । सभी शिक्षित हुए और आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस भी।
सभी के शादी ब्याह हुए , बच्चे हुए और अब
सभी नाती पोतों वाले हैं अर्थात तीन पीढियां एक साथ ।सब के व्हाट्सएप ,फ़ेसबुक ,इंस्टाग्राम पर एकाउंट हैं और पारिवारिक समारोहों का जरिया है ये सोशल साइट्स।शायद ही कोई महीना खाली हो जब किसी की विवाह वर्षगांठ या जन्मोत्सव न हो।सुंदर चित्रों के साथ बधाई व शुभकामनाएं देना एक अलग ही आनंद देता है।
किन्तु यह क्या? एक -एक करके परिवार के दो सदस्यों का अवसान!!! दो तिथियां खत्म वो भी एक ही महीने की ।एक अनकहा दुख सभी के हृदय में। लेकिन यही तो शाश्वत सत्य है जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है साँसों की गिनती तय है!!!
लेकिन ईश्वर हमे दुखी नही देखना चाहता! उसके अनुसार ,’सेलिब्रशन मस्ट गो ऑन’। उसी महीने की दो तिथियों में अगली पीढ़ी के विवाहोत्सव तय हुआ और वर्षगांठ का सेलिब्रशन ईश्वर प्रदान कर चुका है।
बीती ताहि बिसार दे …..की तर्ज पर उस दुःख को भुलाकर हमें उन्हें लेकर खुश रहना होगा।
लेकिन ….. सोचते हुए आँखें भर आईं शर्मा जी की।
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अभी थोड़े दिनों पहले ही माँ का अवसान हो गया।भरपूर जीवन जी कर गईं लेकिन माँ तो माँ ही है न!
आँसू पोंछ लिए शर्मा जी ने सोच कर ,”माता पिता कहीं नहीं जाते।वे अपने ही परिवार में लौट कर आते हैं।”
अरे हाँ!परिवार में बहू और बेटी दोनों ही खुश खबरी सुनाने वाली हैं।शायद माँ लौट आएं दोनों में से किसी के घर में।
अपने आप ही मुस्कुरा उठे शर्मा जी सोचते हुए
” परिवार से बढ़ कर कोई धन नहीं होता है।”
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ज्योति अप्रतिम
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