सबै दिन होत न एक समान – कुमुद चतुर्वेदी

पूजा अपने माँ,बाप की लाड़ली और इकलौती संतान होने के कारण स्वभाव से जिद्दी और मनमौजी हो गई थी।हालाँकि माला उसको गलत बात पर  डाँटती भी थी पर वह पापा से माँ की शिकायत करती तो मनोहर उसीके सामने माला से कहते “अरे हमारी पूजा बहुत समझदार है वह कभी कोई गलती नहीं कर सकती,अभी छोटी है बड़े होने पर सबसे अधिक होशियार बनेगी देखना।मेरी परी को कुछ मत कहा करो,उसे अपना मायके का सुख जीने दो,क्या पता कल को कैसा घर,परिवार मिले।उसे अभी तो माँ,बाप के साथ और साये का आनंद उठा लेने दो।”यह सुन पूजा की माँ माला को चुप ही होना पड़ता नहीं तो पति मनोहर उसके मायके परिवार के एक एक व्यक्ति की लानत मलानत करने से बाज न आता।

       माला मन ही मन बहुत परेशान रहती यह सोचकर कि पूजा शादी के बाद ससुराल में कैसे निभेगी?कई बार उसने मनोहर से इस बारे में बात भी करनी चाही पर मनोहर हमेशा कहता..”अरे तुम क्यों परेशान हो देखना मैं पूजा की शादी ऐसे लड़के से करूँगा जो हमारा घरजँवाई बनने को राजी होगा फिर तो पूजा की हर बात  उसे माननी ही पड़ेगी।हमारी एक ही तो बेटी है।हमारा जो भी बिजनेस और  मकान,पैसा है सब बाद में पूजा का ही तो होगा।”यह कह मनोहर उसे चुप कर देता।           

       पूजा अब ग्रेजुएशन में थी परंतु  आदतें वबी थीं,किसी की न सुनना बस मन की करना।मनोहर भी जितने पैसे पूजा माँगती बिना पूँछे दे देता पर माला यह सब देखकर बहुत परेशान रहती कि कैसे वह पूजा की आदतें सँभाले?पर कहते हैं कि समय कभी एक सा नहीं रहता सो मनोहर को भी बिजनेस में बडा़ घाटा लगा।मनोहर की हालत तो पागलों जैसी हो गई वह अब दिनरात सिर पर हाथ रखे चुपचाप शून्य में घूरता रहता।

दोस्त सारे साथ छोड़ गये,घर के नौकर भी बगैर पैसे कब तक काम करते सब एक एककर चले गये अब बस एक बूढ़ा माली रामू ही रह गया था उसे कहीं जाने की जगह ही नहीं थी।परिवार और गाँव सब भूकंप की भेंट हो चुके थे सालों पहले।वह भी अपने मालिक की हालत से बहुत दुखी था और माला को दिलासा देता रहता था।




     मनोहर को डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने डिप्रेशन बताया और कहा कि  किसी भी प्रकार कोई बुरी खबर या दुखद घटना मनोहर के लिये खतरा है,जहाँ तक हो उसे अकेला न छोड़ें और खुश रखने का प्रयत्न करें।अब माला हर संभव प्रयास करती कि मनोहर को कोई भी  तकलीफ न हो परंतु वह जब भी उससे बात करती तो वह बस हाँ,हूँ ही करता। बोलना तो मानो भूल ही गया था। माला की बातें चुपचाप सुनता रहता था। अब समस्या मनोहर के इलाज और पेट भरने की थी,जितनी जमापूँजी माला की थी सब खत्म हो चुकी थी।इधर पूजा अपने ही रंग में थी।माँ की तो सुनती ही नहीं थी, बाप कुछ समझते नहीं।पर कुछ तो करना ही था,आखिर माला ने अपने कुछ गहने  बेच पैसों का इंतजाम किया और पूजा को समझाकर मनोहर की दवा के लिये पैसे देकर बाजार भेजा।मनोहर को वह अकेला नहीं छोड़ सकती थी इसकारण वह घर पर ही रुक गई।परंतु पूजा को दोस्तों की कॉल आ गई और वह  दवा लाना भूलकर अपने दोस्तों के पास चली गई।जब बहुत देर तक पूजा नहीं लौटी तो माला ने रामू को भेजा पता करने पर रामू  भी जब खाली हाथ लौटा तो वह बहुत परेशान हो गई और मनोहर को सुलाकर रामू को हिदायत देकर दवा लेने खुद गई।वह डॉक्टर से मिली और मनोहर की दवा आदि ले जैसे तैसे घर आई।मनोहर भी अब मानो बिल्कुल बच्चा बन गया था चुपचाप माला की सारी बातें मान रहा था शायद उसके अंतर्मन में कुछ डर बैठ गया था।

   इधर पूजा ने जब आधी रात के बाद कॉलवैल बजाई तो माला ने दरवाजा न खोल अंदर से ही उसे डाँटकर कहा .. “तुम्हारे लिये इस घर के दरवाजे अब हमेशा के लिये बंद हैं तुम्हारे पापा ने तुम्हें सिर पर बिठाया पर फिर भी तुम्हारे मन में उनके लिये न तो इज्जत है और न ही प्यार।मैं तो तुम्हारे लिये बस एक सेविका मात्र ही रही हमेशा,अब तुम स्वतंत्र हो जहाँ मन हो जाओ।” यह सुन पूजा कुछ देर चुप रही फिर रोकर बोली”माँ मुझे माफ कर दो मैं बहुत शर्मिंदा हूँ और पापा से भी पैर पकड़ माफी माँगती हूँ।मेरे दोस्तों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था,मुझे अंदाज ही नहीं था कि पापा और आप इतने परेशान हैं। वह तो अभी रामू  काका ने सब बताया है मुझे।मैं आप दोनों की गुनहगार हूँ बस एक बार पापा को देखकर और उनके पैर छूकर मैं हमेशा के लिये चली जाउँगी।” यह सुन माला ने आँसू पौंछते हुए दरवाजे खोल दिये।पूजा अंदर आकर मनोहर के पैरों से लिपट गई और माफी माँगने लगी यह देख माला ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और कहा..”बस अब हम आज के बाद कभी नहीं रोयेंगे वादा करो।एक दूसरे का सहारा बनकर हर परेशानी का डटकर सामना करेंगे।”पूजा भी पापा के हाथ पकड़ बोली “पापा चिन्ता मत करो।बिजनेस नहीं तो क्या मैं कोई जॉब ही  कर लूँगी और देखना एक दिन फिर से हमारे पापा का नाम सबकी जु़बान पर होगा।”यह सुन मनोहर की आँखों में  चमक आ गई मानो वह भी सब समझ गया हो।

#सहारा 

             ……………कुमुद चतुर्वेदी. 

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