मनोज पिछले दो दिनों से ही मानसिक पीड़ा से ग्रस्त था,क्या करे कैसे करे,कोई राह मिल ही नही रही थी।घर से उसे वैराग्य सा हो गया था,उसका मन कर रहा था,वह कहीं एकांत में सदैव के लिये चला जाये, फिर अपने बच्चे का ख्याल आता तो कदम रुक जाते।मोनिका पत्नी होते हुए भी उसको समझने को तैयार नही।सोच सोच कर उसका दिमाग फटने को हो जाता।
कामिनी ने अगले सप्ताह ही उसके पास आने के लिये खुद ही फोन किया था,कह रही थी भैय्या आप और भाभी से मिलने को बहुत मन है,तीन दिन रहूँगी आपके पास,कामिनी बड़े हक और प्यार से कह रही थी।मनोज ने भी उसी लाड़ प्यार से कहा अरे कामिनी बहन तेरा घर है कभी भी आ जा,मुझे तो अच्छा ही लगेगा, कह तो मैं तुझे लेने खुद आ जाऊं।कामिनी बोली नही नही भैय्या मैं खुद ही आ जाऊंगी।
बहुत ही उत्साह के साथ मनोज ने अपनी पत्नी मोनिका को कामिनी के आने की बात बताई।पर मोनिका के तो माथे पर ही बल पड़ गये।बोली,मनोज कामिनी को ये अचानक अपने भाई के प्रति इतना प्यार कैसे उमड़ पड़ा।जरूर कोई खास बात होगी,हो सकता है पैसे वगैरह की डिमांड हो।भौचक्के से मनोज ने कहा,मोनिका कैसी बात कर रही हो?ये ठीक है कि कामिनी की हमारे जैसी स्थिति नही है,पर उन्हें अपने लायक कोई कमी भी नही है।फिर वो मेरी बहन है, यदि उसे कोई जरूरत होती भी तो मुझे उसकी सहायता करनी ही चाहिये ना।पर ये बात आ क्यो गयी?
क्यों ना बात आये,पहले भी तुम्हारा भाई आया था और ले गया था एक लाख रुपये,बोलो ले गया था या नही?यहां तो खान खुदी हुई है?सबकी नजर यही लगी रहती है।
मोनिका बस भी करो,तुम्हें मालूम तो है,सचिन यदि एक लाख रुपये ले गया था तो वह एक महीने में ही वापस भी तो कर गया था।
लेकर तो गया था ना?
मनोज ने समझ लिया इस बहस का कोई अंत नही।वह समझ ही नही पा रहा था कि मोनिका को उसकी तरफ के रिश्तेदारों से नफरत है या फिर उसे अपनी अच्छी स्थिति का अहंकार?वह क्या करे,क्या अपने सब रिश्ते नाते खत्म कर ले।
मनोज की फिलहाल टेंशन ये थी कि कामिनी चार पांच दिन बाद आने वाली है और मोनिका ने अपने तेवर दिखा दिये हैं, तो वह समझ ही नही पा रहा था कि कामिनी से कैसे आंख मिला पायेगा,अपनी ही बहन का अपने ही घर मे कैसे सम्मान बचा पायेगा।कामिनी के सामने ही मोनिका ने उसे कुछ भी बोल दिया तो?
मनोज का भेजा भन्ना गया।कोई राह न देख उसने सब भगवान भरोसे छोड़ दिया।वह जानता था कि कामिनी को मोनिका सम्मान देगी नही,और वह अपनी ही बहन को अपने यहां आने से मना कैसे करे,इसी उलझन में उसकी रात की नींद भी उड़ गई,पर मोनिका को इससे कोई मतलब नही था।
एक चीख की आवाज से मनोज हड़बड़ा कर कमरे से बाहर की ओर भागा तो उसके होश उड़ गये, सीढ़ियों के नीचे मोनिका लहूलुहान पड़ी थी।पैर फिसलने के कारण वह सीढियों से गिर गयी थी,उसका सिर फट गया था।तुरंत मनोज उसे हॉस्पिटल लेकर चला गया,
जाते समय अपने दो वर्षीय मुन्ना को पड़ौसी के यहाँ छोड़ दिया।हॉस्पिटल में चेकअप के बाद पता चला कि एक हाथ की हड्डी भी टूटी है और सिर में तो चोट लगी ही थी,एमआरआइ कराने पर पता चला कि सिर फटा जरूर है, पर कोई गंभीर बात नही है।अगले दिन ही कामिनी आ गयी,अपनी भाभी की हालत देख उससे चिपट कर रो पड़ी। घर आकर उसने मुन्ना को और घर को भी संभाल लिया।शाम होते होते मोनिका के माता पिता भी आ गये।
मोनिका की माँ बोली बेटा किसी बात की चिंता मत करना,हम है ना।जब किसी चीज की जरूरत हो तो कहने में संकोच मत करना और हाँ घर के कामकाज और मुन्ना की देखभाल के लिये एक नौकरानी रख लेना।मोनिका बेटे बेफिक्र रह तू जल्द ठीक हो जायेगी।और एक डेढ़ घंटे बिटिया के पास बैठ उसके माता पिता अगले दिन फिर आने को कह कर चले गये।
मनोज पूरे मनोयोग से मोनिका की देखभाल में लगा था,घर की उसे चिंता नही थी,वहां कामिनी जो थी।मोनिका होश में आने के बाद एक दम बोली मनोज हमारा मुन्ना कहाँ है?उसको कौन संभालेगा?मनोज ने बहुत ही प्यार से कहा मोनिका तुम मुन्ना या घर की बिल्कुल ही चिंता मत करो वहां कामिनी है, वह आ गयी है,सब संभाल लेगी।मोनिका एक गहरी सांस लेकर चुप हो गयी।
चार दिन बाद मोनिका होस्पिटल से घर आ गयी,इन चार दिनों में मनोज और उसका खाना पीना कामिनी ही भेजती रही।घर आकर उसने सबसे पहले मुन्ना को अपने पास बुलाया तो कामिनी उसे गोद मे लेकर उसके पास ले आयी।मुन्ना को चार दिन बाद अपने गोद मे ले मोनिका रो पड़ी।
एक हाथ मे प्लास्टर बंधा था,सिर पर पट्टी,सोच रही थी कि कैसे मुन्ना को संभालेगी,घर कैसे चलेगा,माँ तो नौकरानी रख लेना कह कर चली गयी,इतना भी नही हुआ दो चार दिन बेटी के पास रुक जाती,बस औपचारिक रूप से आती है,कामिनी ने जरूर इस समय मुन्ना को और घर को भी सम्भाल रखा है पर वह भी आजकल में चली जायेगी,तब कैसे होगा।नौकरानी तो खैर रख ही लेंगे पर उसमें अपनापन और जिम्मेदारी कहाँ से लायेंगे?
यह उदेढ़ बुन मोनिका के मन मे चल रही थी।इसी प्रकार तीन दिन बीत गये, कामिनी को आये एक सप्ताह हो गया था,नौकरानी भी रख ली गयी थी,कामिनी उससे सलीके से काम ले रही थी और मुन्ना की जिम्मेदारी खुद उठा रही थी साथ ही अपनी भाभी का भी ख्याल रख रही थी।कामिनी मोनिका के कमरे में ही बैठी मुन्ना को खिला रही थी कि उसके मोबाइल की घंटी बजी,शायद कामिनी के घर से फोन था।कामिनी कह रही थी,भाभी ठीक है,जल्द ठीक हो जायेंगी।हाँ-हाँ, मैं अभी पंद्रह दिन बाद ही आ पाऊंगी,भाभी जरा ठीक हो जाये।अम्मा तो है ही वहाँ, वे सब संभाल लेगी।
मोनिका अवाक सी कामिनी को देख रही थी,यह ही वह कामिनी है जिसके आने की खबर से ही उसने घर मे वितंडावाद खड़ा कर दिया था,सगी माँ तो एक दिन भी ना रुकी और यह कामिनी मेरे ठीक होने पर जायेगी।आज मोनिका को अपने पर शर्म आ रही थी।रिश्तेदारी तो किसी से भी हो सकती है,पर अपना पन कौन निभा रहा है या निभा सकता है,इसकी परख में मोनिका चूक गयी थी।
अनायास ही मोनिका ने कामिनी को इशारे से अपने पास बुलाया और उसके मासूम से चेहरे पर प्यार से हाथ फिरा दिया।कामिनी आश्चर्य से भाभी को देख रही थी-बिल्कुल अनजान सी,भला उसे क्या पता कि उसने मोनिका को अपनेपन का क्या सबक सिखा दिया है?
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित