सबक ( अपने लिए खुद लड़ना पड़ता है ) – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi

काव्या जल्दी जल्दी रसोई का काम निपटाने में लगी हुई थी आज उसे अपनी सहेली के घर उसके गृहप्रवेश के कार्यक्रम में जाना था 

काव्या ने रसोई का काम खत्म किया अपने माथे का पसीना  पोंछते हुए गहरी सांस ली वो थक गई थी आज रसोई में काम भी ज्यादा था उसका कहीं जाने का मन नहीं था फिर भी जाना तो था ही उसने काजल से आने का वादा जो कर लिया था। अभी तो उसे अपनी सास से इजाजत लेनी थीं और उनके सवालों के जबाव को भी झेलना यही सोचती हुई काव्या  अपनी सास के कमरे में गई उसकी सास विमला जी बिस्तर पर लेटी कोई पत्रिका पढ़ रहीं थीं उन्होंने काव्या को देखकर भी अनदेखा कर दिया। 

काव्या ने उनकी ये बात नोटिस की पर उसने उस पर ध्यान नहीं दिया वो उनके पास जाकर बोली 

” मां जी मैंने घर और रसोई का सभी काम कर दिया है खाना भी डाइनिंग टेबल पर लगा दिया है”काजल ने धीरे से कहा

” ये सब तुम मुझे क्यों बता रही हो!?” विमला जी ने उसे घूरते हुए पूछा 

“मां जी मैंने कल आपको बताया तो था मुझे अपनी सहेली काजल के घर उसके गृहप्रवेश में जाना है अब मैं काजल के घर जा रही हूं बच्चे जब स्कूल से आएंगे तो आप उन्हें खाना खिला खिला दीजियेगा ” काव्या ने अपनी सास से कहा 

“बहू मेरी क़मर में दर्द  है, मुझसे उठा भी नहीं जा रहा है इसलिए मैं बच्चों को खाना नहीं दे पाऊंगी मैंने कल तुमसे कहा भी था की तुम अपनी सहेली को मना कर दो पर तुम्हें तो घूमने का बहाना चाहिए जब तुम वहां जाओगी तो शाम होने के पहले तो आओगी नहीं शाम की चाय भी मुझे ही  बनानी पड़ेगी ,

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अब मुझसे घर का काम नहीं होता, तुम्हारी घरगृहस्थी है, तुम संभालो, मुझसे कोई उम्मीद न करो, ये सब तुम्हारी जिम्मेदारी है मेरी नहीं, तुम मुझे आर्डर लगा रही हो, अगर तुम्हारा जाना इतना ही जरूरी है तो बच्चों के आने के बाद जाना और रात का खाना बनाने के पहले लौट आना” विमला जी ने गुस्से में तमक कर कहा। 

अपनी सास की बात सुनकर काव्या अवाक खड़ी रह गई उसकी शादी को दस साल हो गए थे आज तक काव्या अपनी हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाती आ रही थी कभी किसी बात की शिक़ायत नहीं की उसके मायके में भी कोई नहीं रह गया था वह अपने मम्मी पापा की इकलौती संतान थी शादी के बाद ही उसके माता-पिता की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी ,तब से वह इसी घर को अपना मायका ,अपना घर समझकर रह रही है उसके पति क्लर्क की नौकरी करते हैं उनकी तनख्वाह ज्यादा नहीं है ससुर को जो पेंशन मिलती है

वो सास-ससुर की दवाईयों और उनकी अपनी जरूरतों पर खर्च हो जाती है। आर्थिक तंगी होने के कारण काव्या ने कोई काम वाली बाई भी नहीं रखी थी उसे लगता था , अपना घर है वह घर का काम करके कुछ पैसे ही बचा लेगी बच्चे अभी छोटे थे इसलिए उसने नौकरी करना भी ठीक नहीं समझा काव्या ने अपनी सभी ख्वाहिशों को अपने मन में ही दफ़न कर दिया था, ये सोचकर जब बच्चे कुछ बड़े हो जाएंगे तो वह भी नौकरी करके घर की आर्थिक स्थिति में सहायता करेंगी और अपनी इच्छाओं को भी पूरा करेगी काव्या ने आज तक कभी भी अपनी सास से एक कप चाय की भी उम्मीद नहीं की थी वह हंसी ख़ुशी घर का सब काम खुद ही करती थी। 

पर उसकी सास विमला जी को हमेशा काव्या से शिकायत ही रहती थी काव्या के ससुर ने अपनी पत्नी को कई बार समझाने की कोशिश भी की थी, उन्होंने अपनी पत्नी विमला से कहा था,” “विमला बहू पर घर के काम का बोझ बहुत है तुम रसोई के काम में उसकी कुछ मदद कर दिया करो,” 

अपने पति की बात सुनकर विमला जी ने गुस्से में तमककर  कहा,” मैंने बहुत किया अब मैं घर के किसी काम में हाथ नहीं लगाऊंगी बहू आ गई है अब वो घर की जिम्मेदारी सभांले ” 

अपनी पत्नी की बात सुनकर काव्या के ससुर चुप हो गए वो जानते थे अगर उन्होंने ज्यादा कुछ कहा तो घर में महाभारत शुरू हो जाएगी।

तब उन्होंने काव्या को समझाने की कोशिश  की थी उन्होंने काव्या से कहा,”बहू तुम अपनी खुशी के विषय में भी सोचा करो जब तक तुम स्वयं अपने विषय में नहीं सोचोगी दूसरा कभी भी तुम्हारे लिए नहीं सोचेगा बच्चे को भी मां तभी दूध पिलाती है जब बच्चा रोकर दूध मांगता है” अपने ससुर की बात सुनकर काव्या हंस कर नज़रंदाज़ कर जाती कहती कुछ नहीं 

आज पहली बार काव्या ने  थोड़ा समय अपनी खुशी के लिए मांगा था , शादी के बाद तो काव्या ने अपनी सहेलियों से भी मिलना जुलना छोड़ दिया था उसे घर की जिम्मेदारियों से समय ही नहीं मिलता था । इसलिए वो कहीं आती जाती नहीं थी।अभी दो महीने पहले  एक दिन उसकी सहेली काजल उसे बाजार में मिल गई थी काव्या भी घर का सामना लेने बाजार गई हुई थी वहीं दोनों सहेलियों की मुलाकात हो गई, तब काजल ने उसे

बताया था की वो भी अब इसी शहर में रहेगी वह इसी शहर में अपना मकान बनवा रही है दोनों सहेलियों ने एक दूसरे का फोन नम्बर लिया और उसके बाद दोनों की फोन पर बातचीत होने लगी कल काजल ने उसे फोन करके बताया था ,” काव्या मेरे घर पर गृहप्रवेश की पूजा है तुम अपने परिवार के साथ जरूर आना मैं तुम्हारा कोई बहाना नहीं सुनूंगी”, तब काव्या ने कहा था,” बच्चों के टेस्ट चल रहें हैं , पतिदेव आफिस के काम से बाहर गए हैं ,वो आ नहीं पाएगी,” तब काजल ने जोर देकर कहा था उसे आना ही पड़ेगा,काजल के बहुत आग्रह करने पर उसने काजल से वादा किया,”वो अकेली थोड़ी देर के लिए पूजा में ज़रूर आएगी। 

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लेकिन अपनी सासू मां की बात सुनकर आज काव्या का मन बहुत दुखी हो उठा उसने कभी भी अपनी खुशियों की परवाह नहीं की थी वह अपने से पहले दूसरों के लिए सोचती थी यही उसकी सबसे बड़ी ग़लती थी लेकिन अब वह अपने लिए भी सोचेंगी उसके ससुर सही कहते हैं  जबतक हम खुद को प्यार नहीं करेंगे स्वयं को महत्व नहीं देंगे तो दूसरा हमारी अच्छाई का नाजायज फायदा उठाएगा ।आज काव्या को भी सबक मिल गया की घर परिवार की खुशियों के साथ साथ अपनी खुशियों के लिए सोचना भी हमारा कर्तव्य है। 

यह विचार मन में आते ही काव्या ने कुछ सोचकर  मुस्कुराते हुए अपनी सास से कहा ,” ठीक है मां जी जब बच्चे स्कूल से आ जाएंगे तो मैं बच्चों को लेकर वहां चली जाऊंगी एक बात और बताना है मैं आज रात काजल के घर पर ही रहूंगी कल रविवार है बच्चों की छुट्टी भी है मैं कल शाम तक वापस आऊंगी “

” ये तुम क्या कह रही हो बहू तुम रात अपनी सहेली के घर पर रूकोगी!? विमला ने काव्या को घूरते हुए कहा

” हां मां जी” काव्या ने कहा और वहां से जाने लगी 

” बहू तो रात का खाना कौन बनाएगा!!?” विमला ने गुस्से में पूछा

” वो मैं नहीं जानती आप चाहें तो खुद बना लें या बाहर से मंगवा लीजिएगा ” काव्या ने व्यंग्यात्मक  लहज़े में कहा

  ” बहू तुम्हारा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया है जो मुझसे ऐसी बातें कर रही हो!!?” विमला जी गुस्से में बोली 

  ” मां जी मेरा दिमाग पहले ख़राब था अब ठीक हो गया है ,आज से पहले मैं आप की खुशियों के विषय में ज्यादा सोचती थी अब मैं अपनी खुशियों के बारे में सोचूंगी,आज के बाद सप्ताह में एक दिन मैं खुद को दूंगी अपने शौक पूरे करूंगी, बाहर घूमने जाऊंगी अपनी सहेलियों से मिलूंगी ,

मैं भी इंसान हूं ,कोई कठपुतली नहीं, मैं काजल के घर जाने की तैयारी करने जा रही हूं बच्चों के आते ही उन्हें लेकर चली जाऊंगी अब मैं आज शाम को नहीं कल शाम को वापस आऊंगी ” इतना कहकर काव्या अपनी सास को गहरी नजरों से देखते हुए कमरे से बाहर चली गई दरवाज़ें पर उसके ससुर खड़े, सब सुन रहे थे काव्या ने देखा उनके चेहरे पर भी एक मुस्कान थी जैसे वो कह रहें हों ये काम तुम्हें बहुत पहले करना चाहिए था। 

काव्या की सास विमला जी अपनी बहू की बात सुन स्तब्ध रह गई उनके चेहरे पर घबराहट साफ़ दिखाई दे रही थी,

तभी विमला जी के पति ने व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ उनसे कहा  “आज बहू ने सही निर्णय लिया है जब घी सीधी अंगुली से न निकले तो अंगुली टेढ़ी करनी ही पड़ती है आज बहू ने वही किया ये काम उसे बहुत पहले कर लेना चाहिए था चलो कोई बात नहीं देर आए दुरुस्त आए”

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अपने पति की बात सुनकर विमला के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव दिखाई देने लगे,”उन्होंने अपनी शर्मिंदगी छुपाते हुए गुस्से में कहा, ” आप मुझे सुना रहें हैं, आपने देखा बहू ने किस लहज़े में मुझसे बात की क्या उसे ऐसा कहना चाहिए था!?, मुझे लगता है अब बहू  के भी  पर निकल आए हैं मैं भी उसकी सास हूं उसके परों को काटकर रहूंगी ” 

  ” कहीं ऐसा न हो तुम्हारा ये सपना धरा का धरा रह जाए”  उनके पति ने उन्हें घूरते हुए कहा

  ” आप कहना क्या चाहते हैं साफ-साफ कहिए पहेलियां बुझाने की जरूरत नहीं है!?” विमला जी ने चिढ़कर पूछा

  ” भाग्यवान कहीं तुम्हारे तानाशाही रवैए से तंग आकर बहू अपने पति और बच्चों के साथ इस घर को छोड़कर उड़ न जाए तो तुम क्या करोगी!?” काव्या के ससुर ने अपनी पत्नी को देखते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में कहा

  ” नहीं ऐसा कभी नहीं होगा मेरा बेटा मुझे छोड़कर कहीं नहीं जा सकता वो पत्नी के लिए अपनी मां को नहीं छोड़ सकता ” विमला जी ने घबराई हुई आवाज में कहा

  ” ये तुम कह रही हो!!?, मुझे लगता है तुम अपना समय भूल गई हो !!?,जब तुम्हारी जिद्द के आगे मुझे भी अपनी मां को छोड़ना पड़ा था तुमने भी तो मेरी मां की तानाशाही से तंग आकर मुझे अलग रहने के लिए मजबूर किया था तुम अच्छी तरह से जानती हो मैंने तुम्हारा साथ क्यों दिया था ,उस समय गलत तुम नहीं मेरी मां थी ,लेकिन आज तुम गलत हो, मेरी बहू नहीं, तुम अपनी बहू के साथ वही कर रही हो जो मेरी मां ने तुम्हारे साथ किया था वही गलती आज तुम दोहरा रही हो जो ठीक नहीं है ,  तुम्हारे कारण बहू बेटे ने घर छोड़ा तो मैं भी उनके साथ चला जाऊंगा तब तुम अकेले इस घर में अपनी तानाशाही चलाती रहना ” विमला जी के पति ने कठोर शब्दों में कहा

  अपने पति की बात सुनकर विमला जी घबरा गई उन्होंने जल्दी से कहा,” नहीं-नहीं मैं वो गलती कभी नहीं करूंगी मैं अपने अहंकार में रिश्तों के महत्व को भूल गई थी मैंने कभी बहू को बेटी समझा ही नहीं अब मैं उसे बेटी की तरह प्यार करूंगी अपने बच्चों से अलग नहीं रह पाऊंगी अब मैं अपने आपको बदल लूंगी घर के कामों में भी बहू का हाथ बटाऊंगी जिससे उस पर काम का ज्यादा बोझ न पड़े मुझे अपनी ग़लती का अहसास हो गया है अब मैं अपने रिश्तों को सहेज कर रखूंगी मैं वही गलती दोहरा रही थी जो मेरी सास ने मेरे साथ किया था मैं अपने अहंकार में रिश्तों की अहमियत भूल गई अब ऐसी ग़लती कभी नहीं करूंगी आप मुझे माफ कर दीजिए”

“विमला तुम्हें समय रहते अपनी ग़लती का अहसास हो गया तुम रिश्ते की अहमियत को समझ गई इसकी मुझे खुशी है पर  माफी तुम मुझसे नहीं बहू से मांगों जिसके साथ तुमने गलत किया है ” विमला जी के पति ने कठोर लहज़े में कहा

अपने पति की बात सुनकर विमला जी उठकर कमरे से बाहर जाने लगी विमला जी को बाहर जाता देख उनके पति ने आश्चर्य से पूछा”अब तुम कहां चल दी!!?

” मैं बहू के पास जा रहीं हूं अपनी ग़लती सुधारने” विमला जी ने मुस्कुराते हुए जबाव दिया 

  

#मैं अपने अहंकार में रिश्तों के महत्व को भूल गई थी 

डॉ कंचन शुक्ला

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश

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