सबक – मीनाक्षी राय

“सबक” एक ऐसी कहानी है  जो एक  मां और बेटी पर  मैंने व्यक्त किया हुआ है| जो आप लोग के सामने में प्रस्तुत कर रही हूँ l

आज अपनी समय रहते यदि सरिता ने बिटिया को सच और गलत मे फर्क करना सिखाया होता तो “दीपा” सरिताजी की बेटी अपनी जिंदगी में खुश होती|पर अफसोसयकी बात यह है कि सरिताजी ने दीपा के सामने अपने ससुराल वाले मे केवल बुराइया ही बताई| जिससे दीपा एकदम अपनी माँ  जैसी ही होती जा रही थीl

शादी के बाद जब मैं दीपा ससुराल जाती है तो वह खुद को भी अपनी मां के किरदार में ही डाल लेती है, वह अपनी मां जैसी ही अपनी जिंदगी बना लेती है और यहां तक कि उसने अपनी जिंदगी को इतनी खराब कर ली कि वह ससुराल में किसी को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी| कभी अपने सास लेके परेशान होती तो कभी देवरानी को कोसती| इस तरह से वह  ससुराल में बिल्कुल  अपने और ससुराल  में कभी सामंजस्य नहीं बिठा पाई, और कुछ दिनों बाद वह अपने मां के घर रहने आ गई|

और मां के घर भी वह बहुत चिड़चिड़ी रहने लगी| उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो जो कर लही है वह सही है या गलत| बाकी घर वाले शांत रहते कुछ नहीं बोलते क्योंकि उसको समझाना यानी उसकी मां से दुश्मनी मोल लेना था यानी उस समय उसकी मां से लड़ाई झगड़े करना|

तब एक दिन पड़ोस की सरला बुआ उससे मिलने आई, उसे मालुम था कि दीपा सुराल छोडकर मायका मे ही रह रही है|सरला बुआ ने कहा कि, ‘दीपा  अभी अपने मायके में ही रह रही हो तुम्हारी तो  नई-नई शादी हुई है क्यों नहीं जाती हो ?तक दीपा ने सरला बुआ को अपनी सास और जेठानी की बुराइयां बताने लगी| फिर सरला बुआ ने बड़े प्यार से दीपा को सरिताजी को और घरवालों को अपने  पास बैठाया और समझाया, कि बेटा कभी भी एक आँख  और एक कान से नहीं सुनना चाहिए और ना ही देखना चाहिए |तुम अपना देखो तुम कैसी पढ़ी लिखी हो और कैसे हो गए हैं तुम यदि किसी से प्यार से बात करोगी तो सामने वाला कितना भी गलत रहेगा सही हो सकता है| और इतना कहकर सरला बुआ अपने घर चली गई |

तब दीपा ने अपने बारे में सोचना शुरू किया और विश्वास हुआ कि वह अपनी मां की हर बात मान कर उसने अपनी ही जिंदगी खराब कर ली है| उसने अपनी मां को समझाया   कि आगे से वह अपने ही बात से मतलब रखें मेरी बातों में टांग अडाया करें| फिर वह अपने पति को फोन करती है और उसको बुला कर अपने ससुराल वापस चली  जाती है|

और आज दीपा दो बच्चों की मां है और हंसी खुशी अपने परिवार और बच्चों के साथ ससुराल में रह रही हैं| इसे कहते हैं जिंदगी का “सबक” यदि  सही समय रहते हुए सरिता ने दीपा को समझाया होता तो इतनी तकलीफ नहीं सहनी पड़ती|

 

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