सासु माँ को हमने अच्छा सबक सिखाया – सुल्ताना खातून 

आज तो सुरज पश्चिम से निकल गया था जैसे, आज  सासु मां समोसे ले आईं थी, हमारी बांछे खिल गईं जैसे, और तो और सासु मां ने समोसे ला कर हमें थमा दिया, ये भी कहा अपने लिए निकाल कर हमें भी दे जाना।

हम हैरत के समन्दर में गोते लगाते किचन के तरफ बढ़ गए।

हमारी तरह आपको भी हैरत हो रही होगी कि, भई एक समोसे पर इतनी खुशी क्यों?

तो आइए आपको शुरू से बताते हैं, भई हमे तो दुनिया की सबसे अनोखी सास मिली थी, अनोखी भी कंजूसी के मामले में,  हमे पहली बार जब देखा किसी संबंधी के घर तो दो बार में डेढ़ सौ रुपए थमाए थे, अब आप ही बताएं होने वाली बहू को कोई इतने कम पैसे में टरखाता है भला, वो तो ससुर जी भांप गए, तो अलग से पैसे दिए मुझे।

अब आगे की कहानी सुनिए जब हम व्याह कर इस घर में  आए  बाकि सब अच्छे थे पर, सासु मां के ऐसे ऐसे कारनामे देखे की दंग रह गए।

कुछ भी नेग देना हो तो सासु मां कहती–  हमारे यहां ये नहीं चलता, और जब लेने की बारी  आती तो कहतीं– क्या जरूरत थी देने की, और फिर रख लेती।

हमारे घर से कुछ खाने की चीजें आतीं तो उसमें हजार कीड़े निकालती और जब मेरे बने हुए थोबड़े की तरफ देखती तो कहने लगती– पैसा खर्च होता होगा तुम्हारे पिताजी का अकेले कमाने वाले हैं, और फिर चुपके से खा लेती।

नए कपड़े रखे पुराने होते पुराने कपड़े सिल सिल कर पहनतीं।

पैसे खर्च करने में उनकी जान  निकल जाती, दस रुपए का किराया बचाने के लिए एक किलोमीटर पैदल चल लेती।

घर का कोई काम मजदूर से न करवा कर खुद करती, और बीमार पड़ जातीं, पैसे बचाने के चक्कर में लेने के देने पड़ जाते।



घर वाले उनकी आदत को जानते, इसलिए उन्हीं के बच्चे अगर दो हजार का सामान लाते तो एक  हज़ार बताते।

अब यहां तक तो ठीक था, खाने के मामले में भी कंजूसी, अब हम ठहरे घर के बड़ी संतान खाने पीने के शौक़ीन,हमारे घर जो भी मार्केट जाता हमारे लिए कुछ न कुछ खाने को लाता, यहां तो सब मलियमेट हो गया।

यहां बाहर की चीजे ही नहीं आती, जो भी खाना है घर पर बना कर खा लो। ये भी कोई बात हुई भला।

पतिदेव हमारे लिए कुछ लाते तो छुपा के खिला देते, और हम मां जी को अपनापन दिखाने के चक्कर में उन्हें देकर अपनी बैंड बजवाते, अब सासु मां राग अलापने लगती, मैं बाहर की चीजें नहीं खाती पता नहीं कैसे किसी को पसंद आता है, जबकि हमारे ससुर जी चुप चाप खा लेते।

और फिर यही कहानी चलती रहती, और इसी भ्रम में जीते रहते कि हमारी सासू मां को बाहर की चीजें सच में नहीं पसंद, की एक दिन हमने अपनी आंखों से देख लिया गुलाब जामुन गटकते हुए।

हुआ यूं कि हम एक दिन मार्केट गए थे, अब चुंकि हमें गुलाब जामुन बड़े पसंद हैं, तो हम एक डब्बा ले आए, घर आकर पांच पिस एक प्लेट में ले जाकर सासु मां के कमरे में रख आए ससुर जी के लिए फिर याद आया, ससुर जी तो सुगर के  पेसेंट हैं, और सासू मां बाहर की चीजें खाती नहीं तो प्लेट लेने चल दिए।

हमने अपनी सासू मां के कमरे में झांक कर देखा, ससुर जी थे नहीं और वो बैठी मजे से गुलाब जामुन गटक रहीं थीं, हमे देख कर झेंप गईं और बहाने बनाने लगीं प्लेट साफ जो कर दिया था उन्होंने।

हम भी सोचें ये मिठाइयां फ्रीज से होती क्या है, जबकि ससुर जी मिठाई खाते नहीं, दूसरी बात घर में बाजार की चीजें आती नहीं, और आती है तो ससुर जी कैसे दोगुनी चीजें खा जाते।

फिर हम एक निष्कर्स पर पहुंचे कि सासू मां को बाहर की चीजें अच्छी तो लगतीं हैं, पर जो फ्री में मिल जाए, यानी कोई संबंधी ला दे। और हमारे सामने इसलिए नहीं खाती कि अपने ही बातों में फंस जाती। कुल मिलाकर अपने कंजूस स्वभाव के वजह से पेट काट लेती।

पतिदेव बताते की बचपन से ही अपने बच्चो पर भी कंजूसी दिखाई सासु मां ने, कपड़े खुद से सिल के पहना देती, चिप्स से पेट खराब हो जायेगा, तो फ्रूट से सर्दी लग जाएगी,घर में पैसे की इतनी किल्लत न थी, वो तो स्वभाव से ही कंजूस थी, इसीलिए जब बच्चे बड़े हुए तो चुपके से बाहर से कुछ खा आते, अब पतिदेव हमें भी चुपके से खिलाते तो हमें न सुहाता , हमारी दादी तो पोते पोतियों को खूब खिलाती,घर की चीजें बाहर की चीज़े,हमने ये नहीं देखा इसीलिए हमें ये छुपन छुपाई नहीं भाई।



हमने भी उन्हें सबक सिखाने का सोचा, अब कभी किसी संबंधी के यहां से मिठाई आती, तो अपना हिस्सा खाकर बाकि पड़ोस में बांट देते ये कहकर की कोई खाता तो है नहीं,

किसी के घर जाते तो पहले ही कह देते हमारी सासू मां को ये  मार्केट कि चीजें बिलकुल नहीं खातीं, सादा भोजन स्वस्थ जीवन के फार्मूले पर विश्वास रखती हैं।

हमारे घर वालों को हमने पहली फुरसत में मना कर दिया दिया, कोई भी शगुन लाने की जरूरत नहीं हमारी सासू मां नाराज़ होती हैं, कितनी अच्छी हैं, ना कितना ख्याल रखती हैं, आप लोग का।

पतिदेव से ये भी कह दिया मां जी के कपड़े अगले एक सालों तक खरीदने की जरूरत नहीं, पुराने और नए कपड़े बहुत पड़े हैं इनके पास।

हमारा इतना कहना था कि सासू मां का माथा ठनका उन्हें लगा अब सब कुछ गया हाथ से।

और हमारे इतने दिनों की मेहनत रंग लाई, और आज सासू मां समोसे ले आईं, हमने समोसे पतिदेव को देते हुए आंख मारी जो पहले ही मुस्कुरा रहे थे, आखिर उन्हीं के “सहयोग और समर्थन” से तो ये संभव हो पाया था।

और हमने मन मन अपने एक टीचर को भी धन्यवाद किया, क्यूंकि उन्होंने मेरी शादी पर यही सीख दी थी, और कहा था आज तुम एक नए “””परिवार”””” में जा रही हो, या तो उस परिवार के रंग में ढल जाना या फिर उस परिवार को अपने रंग में ढाल देना… और हमे खुशी है कि हमने सकारात्मक ढंग से उन्हें अपने रंग में रंग लिया…! 

#परिवार 

मौलिक एवं स्वरचित

सुल्ताना खातून 

दोस्तों हमारे आस पास ऐसी बहुत सी महिलाएं होती हैं, जो आवश्यकता से अधिक कंजूस होती हैं, यहां तक कि पेट काटने पर भी बाज नहीं आती,  मैने इस कहानी को हास्य के रूप में लिखने की कोशिश इसलिए की है ताकि एक सकारात्मकता बनी रहे, लेकिन असल में ऐसी सास की बहुओं के पास दो ही रास्ते होते हैं,या तो वह अपने शौक पूरे करने के लिए चोरी के रास्ते अपनाए या तो वह पति के कान भर कर परिवार से अलग हो जाय,

ऐसी समस्या हम से किसी के साथ भी हो सकती है, या फिर मेरे भी साथ ऐसा हो, तो क्यों न एक सकारात्मक तरीके से प्रॉब्लम सुलझाने की कोशिश की जाए।

दोस्तों आपको मेरी लेखन शैली कैसी लगी जरूर बताएं, और मेरी लेखन के त्रुटियों से भी अवगत कराएं, धन्यवाद 

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