“मम्मी जी, बच्चों के स्कूल में गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गई हैं, परसों वट-सावित्री व्रत पर मायके से भाई आयेगा तो मैं सोच रही थी कि उसके साथ मायके चली जाऊँ। 10-15 दिन रहकर आ जाऊँगी।” मुस्कान ने मीता जी का मन टटोलने की कोशिश की।
“बड़ी बहू, ये छोटी बहू का पहला वट-सावित्री व्रत है… उसके भी भाई आयेंगे। शादी के बाद से वो भी अभी तक अपने घर रहने नहीं जा पाई। अभी उसकी माँ ने बहुत कहा है तो अभी उसे जाने दे, फिर तू चली जाना।” मीता जी ने एक तीर से दो निशाने लगाये।
मुस्कान ने निशा की तरफ देखा। “मम्मी जी, माना की निशा अभी तक मायके नहीं जा पायी। लेकिन ये तो बाद में भी जा सकती है। क्योंकि इसके पास अभी बच्चों की जिम्मेदारी नहीं है। लेकिन मैं तो फिर नहीं जा पाऊँगी। फिर बच्चों का स्कूल का काम और ट्यूशन शुरू हो जायेंगे। निशा मेरे आने के बाद चली जायेगी।”
“नहीं निशा का भाई इतनी दूर से बार-बार थोड़े ही ना आयेगा। अब इस बारे में और कोई बात नहीं करेगा। जाओ जाकर रसोई में खाने की तैयारी करो।” मीता जी ने कहा और अपने फोन में मस्त हो गई।
निशा की शादी को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था। वो अपनी सास और जेठानी की बातें चुपचाप सुन रही थी। उसे दोनों की ही बात ठीक लग रही थी, अभी नई-नई होने की वजह से वो कुछ बहस भी नहीं कर सकती थी। वो भी उठकर अपने कमरे में चली गई।
रात को जब खाना खाकर अपने कमरे में चले गये तो मुस्कान का उतरा हुआ मुँह देखकर आशीष ने पूछा, “क्या हुआ… जो तुम इतनी उदास हो।”
हमारी शादी को 8 साल हो गये और इन 8 सालों में मैं 8 बार भी अपने मायके जाने नहीं रह पाई। शुरू-शुरू में यह कह दिया कि बहू तेरे बिना मन नहीं लगता। लेकिन सब झूठ था, मुझे रोकने के बहाने। फिर बच्चे हो गये तो उनके छोटे होने की परेशानी, फिर बच्चों का स्कूल उनके ट्यूशन और एक्टिविटी क्लास… हर बार मैंने अपने मन को समझा लिया।
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इस बार देवर की शादी हुई, मैंने सोचा देवरानी आ जायेगी तो इन छुट्टियों में मैं आराम से जा सकूँगी। मेरे जाने के बाद घर का ध्यान रखने वाली होगी, लेकिन मम्मी जी ने फिर मना कर दिया। निशा के ऊपर तो कोई जिम्मेदारी नहीं है, वो बाद में भी जा सकती थी। मैं तो इस बात का भी बतंगड नहीं बना रही कि मुझे तो किसी भी त्योहार पर घर जाने नहीं दिया, और निशा को हर त्योहार पर मायका जाने की छूट है। कैसे कहूँ; मम्मी जी, बड़ी बहू की भी मायके जाने की इच्छा होती हैं।” कहते-कहते मुस्कान की आँखों से आँसू निकल आये।
“अरे यार, तुम औरतों को जून का महीना शुरू होते ही मायके जाने की बेचैनी क्यों शुरू हो जाती है। कहीं घूमने के लिए भी नहीं कहती, केवल मायके की रट लग जाती है। आखिर ऐसा क्या है इस जून के महीने में…”
“क्योंकि बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ जून के महीने में पड़ती हैं, इस महीने में हम आराम से मायके जा सकते हैं ना तो बच्चों की पढ़ाई की चिंता और ना उनके ट्यूशन और हॉबी क्लास छूटने का ड़र… जब आपको अपनों से दूर रहना पड़ेगा तो आप मेरे दर्द को समझोगे वरना तब तक तो आप ऐसे ही मेरा मजाक बनाते रहोगे।”
मुस्कान ने कहा और करवट बदलकर लेट गई।
“बात तो मुस्कान की ठीक है, जब तक नानी थी तो हमरी ननिहाल जाते थे। जब नानी ने दुनिया को अलविदा कह दिया, तब से हम ननिहाल कम ही जाते हैं। जब हम अपने माँ-बाप से दूर जाकर नौकरी भी नहीं कर सकते थो ये औरतें तो अपना सब कुछ छोड़कर किसी अंजान के साथ घर बसाती हैं। सही में जून का ही महिना तो होता है जिसमें वो अपने अपनों से मिल सकें, सारे साल तो कभी त्योहार और कभी बच्चों की पढ़ाई और कभी मेहमानों की आवभगत…. लेकिन इनके चेहरे पर शिकन थक नहीं आती। तो क्या हम गर्मियों में 15दिन इनको इनके हिसाब से जीने नहीं दे सकते।”
अगले दिन आशीष ने मीता जी से बात की। निशा को भी बुलाया और उससे पूछा, “क्या तुम थोड़े दिन बाद अपने मायके जा सकती हो।”
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निशा बोली, “हाँ भैया… ठीक है… इन दिनों भाभी का जाना ज्यादा जरूरी है। अगले महीने तीज है, मैं तब चली जाऊँगी।”
“अब बताओ मम्मी, अब तो कोई समस्या नहीं है। मम्मी, अब घर में दो बहुऐं हैं, इन दोनों में थोड़ा एडजस्टमेंट बनाने की आदत बनने दो, वरना एक समय आयेगा; जब इन दोनों के झगड़े में हम पिसेंगे। अभी निशा नई-नई है, जैसी आदत डालोगी, वैसे ही वो ढ़ल जायेगी। मम्मी, इच्छायें तो मुस्कान की भी हैं। अगर उसे ज्यादा इग्नोर किया गया तो वो दिन भी दूर नहीं, जब उसका मन इस घर से उखड़ जायेगा।” आशीष ने अपनी माँ को समझाया।
मीता जी को अब अपनी गलती समझ आ रही थी। उन्होंने मुस्कान को बुलाया और कहा, “बड़ी बहू, तुम मायके जाने की तैयारी करो। और आने की जल्दी मत करना। थोड़े दिन छोटी बहू से अपनी सेवा करवाऊँगी। छोटी बहू अगले महीने चली जायेगी। मैं समधन से बात कर लूँगी।”
सासू माँ की बात सुनकर मुस्कान बहुत खुश हुई। भागते हुए कमरे में गई, अपनी मम्मी को खुशखबरी जो देनी थी, फिर जाने की तैयारी भी तो करनी थी।
सखियों, हम सभी का मन करता है कि छुट्टियों में मायके जरूर जायें चाहे कुछ समय के लिए ही सही। चाहे कोई भी उम्र हो, अपने डेली रूटीन से हटकर माँ और भाई के पास जाकर हम सबकी ऊर्जा बढ़ जाती है, फिर अगले साल तक हमें भी पता है जाने को नहीं मिलेगा।
आप सबकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा। मेरी कहानी मौलिक और स्वरचित है।
धन्यवाद
चेतना अग्रवाल
Nice story mujhe bhi yeh apne hi jaise lag rahi hai mei bui ghar ki badi bahu hu